For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(ये कहानी मैं ब्लॉग्स में पोस्ट कर चुका हूँ परन्तु इस समूह के लिए मुझे ये उपयुक्त लगी इसीलिए यहाँ भी आप सभी के बीच, आपके विचार जानने और एक स्वस्थ डिस्कशन के लिए पोस्ट कर रहा हूँ, यूँ समझें कि लेख नहीं बल्कि इस कहानी के माध्यम से ही मैं अपने विचार रख रहा हूँ)

रोज की तरह आज भी मैं उसे पढ़ाने उसके घर पहुँचा और वो भी आदतन पहले ही दरवाज़े के पास खड़ा मेरा ही इंतज़ार कर रहा था. उसने आनन-फ़ानन में दरवाज़ा खोला और बिना दरवाज़ा बंद किए ही पुस्तकें लाने अन्दर की ओर भागा. वो यही कोई 6-7 साल का बहुत ही प्यारा और कुशाग्र बुद्धि का बालक था. उसका नाम दर्शन था. मैं उसे जो भी पढ़ाता था, वो सब बड़े गौर से सुनता और सहेज कर रखता था. प्रश्नों की खान था वो बच्चा और उसकी जिज्ञासाएँ कभी शांत नहीं होतीं थीं और यही उसकी सबसे बड़ी ख़ासियत थी कि वो आसानी से संतुष्ट नहीं होता था. वो मुझसे बहुत बहुत जुड़ा हुआ था और मैं भी. मैं हमेशा उसे अच्छी से अच्छी बातें बताता और अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करता था ताकि उसका बालमन अभी से सही-ग़लत, उचित-अनुचित का भान करना सीखने लगे. बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जैसे और जिस रूप में चाहो, गढ़ लो. निर्भर शिक्षकों पर, और उससे भी पहले परिवार(माता-पिता-भाई-बहन इत्यादि) अथवा अभिभावकों पर करता है कि हम गढ़ क्या रहे हैं, एक अच्छा इंसान या हैवान.

हस्ब-ए-मामूल(आदत के मुताबिक) वो बिस्तर के बीचोंबीच अपनी समाज अध्ययन की पुस्तक खोल कर बैठ गया. आज मैं उसे सामाजिक सद्भावना एवं सर्वधर्म समभाव पर आधारित एक अध्याय पढ़ा रहा था. मैंने उसे पढना शुरू करने को कहा तो उसने जोर-जोर से पढना शुरू किया. अभी मुश्किल से कुछ ही पल बीते होंगे कि बगल वाली मस्जिद से शाम की नमाज़ से पहले की अज़ान की आवाज़ आने लगी. अज़ान की आवाज़ उसके कानों में पड़ते ही उसके चेहरे के भाव एकाएक बदलने लगे. मैंने गौर किया कि अभी तक जहाँ मासूमियत एवं प्रेम रूपी उजाला फैला था, वहीँ उसी प्यारे से मुखड़े पर घृणा एवं क्रोध मिश्रित तमस का प्रसार हो रहा था. मैंने उसके चेहरे की ओर गौर से देखते हुए पूछा ‘क्या हुआ दर्शन?’, उसने उसी नफरत भरी तीखी आवाज़ में कहा ‘देख नहीं रहे हैं सर, कितना हल्ला कर रहा है ई मीयाँ लोग? ई सब को तो मार-मार के पाकिस्तान भगा देना चाहिए’

उसका अप्रत्याशित उत्तर सुनते ही मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे पूरे शरीर में बिजली का करंट दौड़ा दिया हो. मैंने अपने दुःख मिश्रित गुस्से पर काबू पाते हुए उससे पूछा ‘मुसलमानों को “मीयाँ” कहना किसने सिखाया तुम्हें? और ये सारी बातें कौन बताता है तुम्हें?’

अब वो स्वयं को थोड़ा संयत करते हुए मुझे बताने लगा ‘सर, मेरे घर में तो सब मींयाँ हीं कहते हैं मुसलमन्ना सब को, पापा-मम्मी तो हमको हरदम कहते रहते हैं कि स्कूल में और हर जगह मींयाँ सब से दूर ही रहना, और ये भी कहते हैं कि मुसलमन्ना सब छोटा-छोटा बच्चा सब को पकड़ के, बोरा में बंद कर के ले जाता है, उनको कुट्टी-कुट्टी(टुकड़े-टुकड़े) काट के, बोरा में बंद कर के फेंक देता है. मेरी दीदी तो मींयाँ सब को कट्टा कहती है’.

मैं अवाक्, आश्चर्यचकित सा उसका चेहरा हीं देखता रह गया जहाँ से सारी मासूमियत ग़ायब हो चुकी थी एवं घृणा का वीभत्स रूप दिख रहा था. मेरे दिमाग ने काम करना लगभग बंद कर दिया था, सामाजिक अध्ययन की वो पुस्तक ‘सामाजिक सद्भावना एवं सर्वधर्म समभाव’ का अध्याय खोले मुझे मुँह चिढ़ा रही थी और मैं मुँह छुपाता सा उठकर चल चुका था. क़दम मन मन भर के हो रहे थे, उठाए नहीं उठ रहे थे, सारे दृश्य बदल चुके थे.

मेरी दाहिनी ओर सड़क पर, ‘सामाजिक सद्भावना’ एक किनारे बैठा दहाड़ें मार-मार कर रो रहा था, ‘सर्वधर्म समभाव’ अपना सिर सड़क से टकरा-टकरा कर लहूलुहान कर चुका था और ‘धर्मनिरपेक्षता’ का तो जैसे किसी ने चेहरा ही भद्दे तरीके से कुचल दिया था.
मेरे पैर लड़खड़ा रहे थे, आँखों के सामने अँधेरा छा रहा था और सिर पर बचपन में पढ़ा एक वाक्य दनादन हथौड़े बरसा रहा था-

“परिवार प्रथम पाठशाला है”

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 693

Replies to This Discussion

यह सत्य हैं की परिवार प्रथम पाठशाला हैं किन्तु नफरत की वंशबेल इतनी छोटी भी नहीं की काटकर फेकी जा सके यह विष हमारी जड़ों में रिसते रिसते पहुँच चूका हैं जिसका प्रभाव बालमन पर परिलक्षित हो रहा हैं।मित्र मुझे तो यह ऐसा नासूर लगता हैं जो धरा के अंत के साथ ही खत्म होगा क्योकि यह जीवन के हर क्षेत्र में अपनी जड़े जमा चूका हैं।

आ. अर्चना जी, आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है लेकिन हर एक को इस तरह की मानसिकता को ख़त्म करने के लिए आगे आना होगा. कुछ भी असंभव नहीं यदि इरादे फ़ौलादी हों..

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service