For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार पैंसठवाँ आयोजन है.

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

16 सितम्बर 2016 दिन शुक्रवार से 17 सितम्बर 2016 दिन शनिवार तक

इस बार पिछले कुछ अंकों से बन गयी परिपाटी की तरह ही दोहा छन्द तो है ही, इसके साथ ताटंक छन्द को रखा गया है. - 

दोहा छन्द और ताटंक छन्द

 

ताटंक छन्द पर आधारित रचनाओं के लिए बच्चन की मधुशाला का उदाहरण ले सकते हैं. 

 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है. 

प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

  

ताटंक छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 16 सितम्बर 2016  दिन शुक्रवार से 17 सितम्बर 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12090

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीया प्राचीजी

आपका अनुमोदन उत्साहवर्धक है । आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। छंद को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।

बहुत सुंदर रचना ताटक छंद में | सुंदर शुभारम्भ के लिए हार्दिक बधाई 

आदरणीय लक्ष्मण भाईजी

आपको रचना पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ। छंद को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।

बचपन की यादें ताजा हैं, पापा सुबह जगाते थे।
खूब मनाती मम्मी दादी, तब हम पढ़ने जाते थे॥
कभी बहाना बीमारी का, दर्द कहीं बतलाते थे।
कोई अंग नहीं छूटा सब, सुन सुन कर मुस्काते थे॥ 
 ........ वाह .... वाह .... जेहन में बचपन सजीव हो उठा है . कितना फर्क है अब के बच्चे और हम में . मैं प्रायमरी  में गांव में पढता था . स्कूल  में एक ही मास्टर साहेब थे . जब पता चलता था कि वो  बीमार हैं मन हर्षित हो उठता था . बहुत सुन्दर आगाज़ ....... बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..... बधाई आदरणीय श्रीवास्तव साहेब .

दोहे

'क' हमें देता पाठ ये,करें भला कुछ काम
जग में ताकि अमर रहे , सदा हमारा नाम

'ख' से खुल गये द्वार सब ,रहा न कोई भेद
लाभ न कोई ले सका ,इसका मुझको खेद

'ग' ये हमको सिखा रहा,ये दुनिया है गोल
उसकी क़ुदरत देखिये, कहीं न आया झोल

'घ' से घुंघरू बाँध के , करते हैं वो रक़्स
कोई इसको फ़न कहे ,कोई कहता नक़्स

'त' से तलब है प्यार की ,रहता मन बेचेन
दिन मेरा कटता नहीं ,डसती है ये रेन

'थ' इक थकन है जन्म की,बदन थकन से चूर
चलते रहना काम है ,मंज़िल कोसों दूर

'द' है दुआ माँ बाप की,बनते बिगड़े काम
इनकी सेवा कीजिये,होगा जग में नाम

'ध' से धनुष को तोड़ना,मुश्किल था ये काम
अहंकार के बिम्ब का ,देख लिया अंजाम

नाम किशन था प्यार से ,नटवर कहते लोग
जो उससे मिलता उसे,लगा प्रेम का रोग

रक़्स :- नाच
नक़्स :- ऐब
तलब :- इच्छा


मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय समर कबीर जी सादर।चित्रानुरूप सुन्दर दोहों के सृजनारर्थ बहुत बहुत बधाई।
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवास ।

आदरणीय समर साहब, आपके संयत और सुगढ़ दोहों से मन मुग्ध है. प्रदत्त चित्र के हर अक्षर से प्रारम्भ होने वाले दोहों से आपने समां ही बाँध दिया है. वाह वाह ! मैं फिर से आपकी रचना पर आ रहा हूँ. 

सादर

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,आपकी प्रतिक्रया से मन प्रसन्न हो गया,आपका इंतिज़ार रहेगा,सराहना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।

क' हमें देता पाठ ये,करें भला कुछ काम
जग में ताकि अमर रहे , सदा हमारा नाम

अमर रहे .. ? अमर का उच्चारण अ+मर होने से संयोजन गड़बड़ हुआ. यहाँ ऐसा शब्द आना था जिसका वज़न २१ हो. देखिये ’रहे अमर’ करने से वह ज़रूरत पूरी हो जाती है.

'ख' से खुल गये द्वार सब ,रहा न कोई भेद
लाभ न कोई ले सका ,इसका मुझको खेद

यह दोहा बहुत ऊँचे कथ्य की ओर इशारा कर रहा है. लेकिन अस्पष्टता रोड़े अटका रही है. आप इसी बात को शेर में धाँसू ढंग से कह देते मुझे इसका भान है. लेकिन यहाँ भी आपका प्रयास दंग कर रहा है.

'ग' ये हमको सिखा रहा,ये दुनिया है गोल
उसकी क़ुदरत देखिये, कहीं न आया झोल

वाह वाह ! ’उसकी’ का ज़वाब नहीं है आदरणीय. ’हरि ऊँ तत्सत’ यानी, ’उसी’ हरि का प्रतीक सत्य है ! ग़ज़ब !

'घ' से घुंघरू बाँध के , करते हैं वो रक़्स
कोई इसको फ़न कहे ,कोई कहता नक़्स

सही बात. मीरां के लिए जो देव-भक्ति का माध्यम है, वही रक्कासा के लिए पेट भरने और जीने का साधन. फ़न में ऐब नहीं समझ में ऐब हुआ करता है.

'त' से तलब है प्यार की ,रहता मन बेचेन
दिन मेरा कटता नहीं ,डसती है ये रेन

वाह वाह वाह ! बहुत खूब आदरणीय ! बहुत खूब !  अलबत्ता, बेचैन और रैन कर लें. ये टंकण त्रुटि है.

'थ' इक थकन है जन्म की,बदन थकन से चूर
चलते रहना काम है ,मंज़िल कोसों दूर

बढ़िया !

'द' है दुआ माँ बाप की,बनते बिगड़े काम
इनकी सेवा कीजिये,होगा जग में नाम

सही बात ..

'ध' से धनुष को तोड़ना,मुश्किल था ये काम
अहंकार के बिम्ब का ,देख लिया अंजाम

अहंकार के बिम्ब का ! कमाल है .. :-))
बहुत सुन्दर

नाम किशन था प्यार से ,नटवर कहते लोग
जो उससे मिलता उसे,लगा प्रेम का रोग

भिन्न-भिन्न के आयाम तो उसने दिखाये भी, और सिखाये भी.
एक समृद्ध दोहा हुआ है.

आदरणीय समर साहब, कहन आपकी समस्य तो कभी हैं ही नहीं. आप शिल्प और विधा कोआत्मसात कर लें आपके दोहे कमाल करेंगे

इस आयोजन में मौज़ूदग़ी दर्ज़ कराने केलिए हार्दिक धन्यवाद

जनाब-ए-आली,मेरे प्रयास पर आपकी प्रतिक्रया मेरे लिये किसी सौग़ात से कम नहीं,तारीफ़ करने वाले बहुत हैं लेकिन जो तारीफ़ के साथ कमियों के बारे में बताए वही सच्चा मित्र होता है,आपने मेरे प्रयास को सराहा मुझे बहुत ख़ुशी हासिल हुई,इसके लिये में आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
आपकी बताई हुई त्रुटियों को दुरुस्त करने की कोशिश की है, एक नज़र देख लें,अगर सही हों तो इन्हें संकलन के समय सुधारने का निवेदन करूँगा :-
'क'हमें देता पाठ ये,करें भला कुछ काम
आदर से सब लें सदा,जग में अपना नाम
'ख'से खुले हैं द्वार सब,रहा न कोई भेद
लाभ न कोई ले सका, इसका मुझको खेद
'ग'ने सबक़ ये दे दिया,ये दुनिया है गोल
उसकी क़ुदरत देखिये,,कहीं न आया झोल
तीसरे दोहे पर बहना का ऐतराज़ है,और दूसरे दोहे में बहना की इस्लाह है, अब आप ये बताने का कष्ट करें कि अब ये दुरुस्त हो गए या और सुधारा जाये ?

बहुत खूब ! 

इस दोहे को ऐसे करें - 

'ख'से खुले हैं द्वार सब,रहा न कोई भेद
लाभ न कोई ले रहा, इसका मुझको खेद..  

’ले सका’ से तात्पर्ययह हो रहा है कि यह बीते समय की बात थी. ’ले रहा’ करने से यही बात आज की हो जायेगी. इस दोहे का मेयार और बढ़ जायेगा. यह बहुत बड़ा दोहा हुआ है आदरणीय समर साहब. बहुत कुछ समझाता हुआ. ’द्वार’ से जो कुछ इशारा है वह हक़ीक़ी दुनिया से रूहानी दुनिया की ओर का है. वहाँ का द्वार तो सबके ही लिए खुला ही है लेकिन लोग उसका लाभ लेने की जगह छोटी-छोटी बहसों में उलझे समय ज़ाया कर रहे हैं.

'ग'ने सबक़ ये दे दिया, ये दुनिया है गोल .. को ऐसे लिखा जाय ..  ’ग’ दे सभी को ये सबक, ये दुनिया है गोल .. शायद इससे आपकेकहे का भाव और अच्छी तरह से बाहर आयें. आप बताइयेगा.

सादर

 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदाब। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service