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आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 49 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  15 मई 2015 दिन शुक्रवार से 16 मई 2015 दिन शनिवार तक

इस बार के आयोजन के लिए पुनः शक्ति छन्द का ही चयन किया गया है. 

 

शक्ति छ्न्द के आधारभूत नियमों को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें

एक बार में  अधिक-से-अधिक  चार (4)  शक्ति छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है. 

ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.

 

 आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 मई 2015 से  16 मई 2015 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]

अति आवश्यक सूचना :

  • आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक प्रविष्टि, न कि एक ही दिन में दो प्रविष्टियाँ.
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.  आयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  • आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  • इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  • रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  • रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion

हार्दिक धन्यवाद, गणेश भाई.. रचना पसंद आयी. वैसे इस रचना के प्रस्तुत होने के कारण आप समझ सकते हैं.

आ तूँहों काल्हु से कहवाँ रहलऽ !?

जय-जय

Chitr ko saarthak karti behad prabhaavshali prastututi hetu bahut bahut badhaai aadarneey Saurabh ji. network disturbing.. I m in Mud IsLand Marve right now.using Mobile.

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आयोजन की प्रस्तुति पर आपसे अनुमोदन पाना अपने आप में एक प्रतीक्षित प्रक्रिया है.
मन प्रसन्न है कि आपकी मढ आइलैण्ड, मलाड में होने के बावज़ूद आयोजन में बनी हुई हैं. आपकी संलग्नता अनुकरणीय है.
रचना आपको संतुष्ट कर पायी यह मेरे लिए भी अत्यंत संतोष की बात है. सादर धन्यवाद आदरणीया.


एक बात, आप जहाँ अभी हैं, वहीं सुभाष घई का निवास एवं प्रोडक्शन हाउस है. साथ ही, कई रिसोर्ट हैं, जहाँ हर समय शूटिंग चलती रहती है. क्या हम आने वाले दिनों में बड़े पर्दे पर आँखें जमाये रहें ?! क्या पता आदरणीया के दीदार हों..  :-))
हा हा हा.....
सादर

आदरणीय सौरभ भाई जी, वाह !!!! सौ सुनार की , एक लुहार की ....आपके छन्दों में कुछ ऐसी ही बात होती है. छन्द ही क्या अतुकांत में भी यही बात दिखती है. आपकी कलम को नमन.

समन्दर सरीखी हुई ज़िन्दग़ी
अगर नाव जर्जर करें बन्दग़ी
नहीं तन सबल.. ज़ोर है भाव में
तभी है भरोसा हमें नाव में  

पता है, कठिन क्लिष्ट संसार है
यही जग मगर सींचता प्यार है
पिता-माँ नहीं पर सगे हैं भले
उन्हीं पर भरोसा करें, मिल गले

इन छन्दों के लिये विशेष रूप से मेरी दाद स्वीकार कीजियेगा...सादर......

आदरणीय अरुणभाईजी, आपके अनुमोदन से मन बावरा हुआ अब अतिरेक में जीने लगा. ये तो गलत बात है, भाईजी. ये अच्छे लच्छन नहीं लगते.. :-))

आदरणीय,  आपके कहे को मैं एक आत्मीय प्रतिक्रिया समझ सादर स्वीकार करता हूँ. आपका साथ मुझे और मेरी रचना प्रक्रिया को सदा सचेत और ऊर्जस्वी करता रहे.
शुभ-शुभ

नहीं दीप हारा......[प्रथम प्रस्तुति]

अगर प्यार टूटा जुड़ा भी यहां।
मिले हम वहीं पर उजाला जहां।।
सहारा मिला भ्रात का सत्य का।
निभाता वही देवता कथ्य का।।1

धरा पर पिता-मात बिछड़े सभी।
मगर हम अकेले नहीं हैं कभी।।
सभी मिल रहे जो पराये लगे।
सही अर्थ में अब पराये सगे।।2

ढहे घर हवेली मिनारे बड़ी।
धॅसीं हर सड़क आज सहमी घड़ी।।
उदासी रूॅआसी खड़ी सोचती।
अमरता जिसे दी वही कोसती।।3

वनों को उजाड़ा ढहाया शिखर।
नदी-ताल, झरने बॅधे सिंधु-सर।।
हवा, चॉद-मंगल हमारे हुए।
नहीं दीप हारा सदा मन छुए।।4

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय केवल प्रसाद भाई

विध्वंस और उसके कारणों को और  बच्चों की व्यथा को सुंदर शब्द दिए, 

इस प्रस्तुति  के लिए हृदय से बधाई 

 

आ0 अखिलेश भाई जी,  आपका बहुत-बहुत आभार, सादर

प्रदत्त विषय पर एक अच्छी रचना हुई है आदरणीय केवल प्रसाद जी, बहुत बहुत बधाई।

आ0  सत्यनारायण भाई जी,  आपका तहेदिल से बहुत -बहुत आभार. सादर

भाई केवल प्रसादजी, आपकी उपस्थिति से आयोजन समृद्ध हुआ है.
रचना के भाव चित्र के भाव को सामने ला ही रहे हैं, चित्र की भावना को भी साझा कर रहे हैं --

वनों को उजाड़ा ढहाया शिखर।
नदी-ताल, झरने बॅधे सिंधु-सर..

सही बात. समस्त प्राकृतिक आपदाओं के मूल में मनुष्यों की लापरवाही और लोभातिरेक ही है.
प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद

आ0  सौरभ सर जी,  आपकी उपस्थिति मात्र से उत्साह बढ जाता  है.  आपका तहेदिल से बहुत -बहुत आभार. सादर

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