For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 30 की समस्त रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 22 सितम्बर 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 30 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इस बार के छंदोत्सव में भी दोहा छंद पर आधारित प्रविष्टियों की बहुतायत थी.

आयोजन में 18 रचनाकारों की निम्नलिखित 10 छंदों में, यथा,

दोहा छंद

मत्तगयंद सवैया छंद

दुर्मिल सवैया छंद

वीर या आल्हा छंद
सार या ललित छंद

उल्लाला छंद

कुण्डलिया छंद

चौपाई छंद

त्रिभंगी छंद

पंचचामर छंद


में यथोचित रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध और सफल हुआ.

पाठकों के उत्साह को इसी बात से समझा जा सकता है कि इस माह से आयोजन को तीन दिनों के बजाय दो दिनों का ही किये जाने के बावज़ूद प्रस्तुत हुई रचनाओं पर कुल 649 प्रतिक्रियाएँ आयीं.

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

रचनाओं को संकलित और क्रमबद्ध करने का दुरुह कार्य ओबीओ प्रबन्धन की सदस्या डॉ. प्राची ने बावज़ूद अपनी समस्त व्यस्तता के सम्पन्न किया है.

ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति आभारी है. 

सादर

सौरभ पाण्डेय

संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

********************************

1. श्री अविनाश बागडे जी
छंद - दोहा
संक्षिप्त विधान - दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में 24 मात्राएँ होती हैं. हर पद दो चरणों में बंटा होता है. उसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं.
--
बढे अनुभवी हाथ जब ,संभले है नवजात ।
सेतु नेह का जो बना ,मुखरित हुआ प्रभात
--
स्पर्श पीढ़ियों का सदा ,महक बांटता जाय।
सम्बन्धों के बीच में ,अन्तर कभी न आय।।
--
स्पर्श -चिकित्सा का सुना ,हमने थोडा नाम।
सुघड़ रहे मन आपका , देखा है अंजाम।।
--
हाथ लिये यूँ हाथ में , होकर भाव विभोर
देख रहा है एक पिता ,निज बालक में भोर !
--
पीढ़ी का अंतर मिटे , सुखमय बने समाज।
आवश्यक सबसे अधिक ,यही बात है आज।।
*****************************
2.

कल आज और कल हुआ ,गठबंधन साकार।
वर्तमान है जोड़ता, दो पीढ़ी के तार।।
--
मिले मुलायम हाथ दो ,संग खुरदुरे हाथ।
इक अनुभव की झुर्रियाँ ,दूजा कल का साथ।।
--
दो धन दो जब चार हुए ,गुणा-भाग सब दूर।
नहीं गणित का खेल ये ,जीवन है भरपूर।।
--
मुखरित होता चित्र कहे , इन हाथों को थाम।
मुझे किसी ने हाथ दिए ,अब ये मेरा काम।।
--
पांच पांच कुल दस हुये , दस्तक देती बात।
जरा कदम पीछे हटे , हुई नयी शुरुवात।।
**************************************
2. श्री अरुण कुमार निगम जी
आल्हा छंद (16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति अनिवार्य)
--
बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||

सत्-पथ पर पग नहीं धरा औ’ कदम चूम लेती है जीत
अधर प्रकम्पित हुये नहीं औ , बात समझ लेती है प्रीत ||

है स्पर्शों की भाषा न्यारी , जाने सिखलाता है कौन
बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||

कहें झुर्रियाँ हमें पढ़ो तो , जानोगे अपना इतिहास
नहीं भटकना तुम पाने को , कस्तूरी की मधुर सुवास ||

बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||

बूढ़े पर हैं अनुभव धारे , छू कर पा लो उच्च उड़ान
छाँव इन्हीं की सारे तीरथ , इनमें ही सारे भगवान ||
*****************************************
3. आदरणीया वंदना जी
छंद - सार / ललित छंद
विधान - प्रत्येक चरण में 16+12=28 मात्रा
तथा चरण के अंत में 2 गुरु वर्ण या लघु लघु गुरु का विधान

नभ आँगन को छूकर चहकूँ, थामे हाथ तिहारा
नाजुक न्यारा हम दोनों का, रिश्ता दादू प्यारा
महावीर गौतम कोलंबस, सुनूँ सभी गाथाएं
ब्लॉग आपके लिखकर सीखूं, रसभीनी कवितायें
सभी जटिलताएं जीवन की, अनुभव से सुलझाना
कंप्यूटर पर हम ढूंढेंगे, कोई खास पुराना
विश्वास जगाता है हरदम, ये बाँहों का घेरा
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर सम, गुरुद्वार तुम मेरा
चलो न दादू झूलों पर हम, ऐसे पेंग बढ़ाएं
सूरज चंदा बाँध पोटली, साध उजाले गायें
********************************************************
4. सौरभ पाण्डेय जी
छंद - उल्लाला
संक्षिप्त विधान - चार पदों का सममात्रिक छंद, जिसमें प्रति पद १३ मात्राएँ होती हैं. पद की ग्यारहवीं मात्रा अनिवार्यतः लघु.
======
जीवन का आधार क्या, उद-बुद क्या, संसार क्या ?
अणु से अणु को सींचना, कारण-कर्म उलीचना ?

उर्ध्व ब्रह्म के गर्भ में, संभव के संदर्भ में -
वृत्ति चराचर व्यापती, काल क्षितिज तक मापती !

संसृति को स्वीकारती, जीवन सहज सँवारती ।
मंत्र-कर्म से शुद्ध कर, सार्थक जिये प्रबुद्ध स्वर ॥

तमस-रजस के योग में, देह-मनस के भोग में -
संस्कारों का मूल है, जन्म तभी अनुकूल है ॥

प्राण पीढ़ियों से लिये, शोणित मर्यादा जिये !
नव का स्वागत सत्य है, शाश्वत शुद्ध अमर्त्य है !!

आज सदा गत नींव में, प्रवहमान संजीव में ।
प्रकृति लीला लहर चरम, नूतन शिव-सुन्दर परम ॥

नव-अंकुर के हेतुकम, पूर्वज-वंशज सेतु हम ।
परम्परा संचालते, वंश विगत को पालते !

देह सदा साधन, सही, बूझे जो ’जीये’ वही ।
यही सत्य आधार है, जीवन का विस्तार है ॥

*************************************

5.श्री रविकर जी
1. कुण्डलियाँ छंद
विधान - दोहा +रोला; आदि और अंत शब्द समान.
--
जन्नत बन जाता जहाँ, बसते जहाँ बुजुर्ग ।
इनके रहमो-करम से, देह देहरी दुर्ग ।
देह देहरी दुर्ग, सुरक्षित शिशु-अबलायें ।
इनका अनुभव ज्ञान, टाल दे सकल बलाएँ ।
हाथ परस्पर थाम, मान ले रविकर मिन्नत ।
बाल-वृद्ध सुखधाम, बनायें घर को जन्नत।।
***********************************
दुर्मिल सवैया
(दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगणों (।।ऽ) से बनते हैं और 12, 12 वर्णों पर यति होती है)

*दसठौन हुआ शिशु सम्मुख आय दशोबल पाय बुलावत है ।
इक गोल मटोल मुलायम है इक झुर्रित देह दिखावत है ।
तब अंजर-पंजर चेतन हो खुद से खुद को उठवावत है ।
मकु दर्पण आज दिखाय रहा कल का हर हाल बतावत है ॥

दसठौन = प्रसव के दस दिन के बाद प्रसूता को सौरी घर से दूसरे घर में जाने की क्रिया
दशोबल = दान शील क्षमा वीर्य ज्ञान प्रजा उपाय बल प्रणिधि और ध्यान

कुण्डलियाँ
ढीली ढाली गुर्रियाँ, पंचेन्द्रियाँ समेत ।
कर्म-चर्म पर झुर्रियां, परिवर्तक संकेत ।
परिवर्तक संकेत, ज़रा-वय का परिवर्तन ।
हो जाऊं ना खेत, पौध हित कर लूँ चिंतन ।
बन जाए वटवृक्ष, अभी तो मिट्टी गीली ।
रविकर देखे दृश्य, डोर जीवन की ढीली ।

दोहे
दो बित्ते दो सेर की, देह सींच दे वक्त ।
चार हाथ दो मन मगर , होता गया अशक्त ॥
ज़रा पाय रविकर डरा, कहाँ मिटें यह कष्ट ।
जरा जरा देगा मिटा, होय मिटा के नष्ट ॥

सप्तधातु षड्गुण त्रिमद, षडरिपु से श्रीहीन ।
वात पित्त कफ़ कर रहे, पंचतत्व अकुलीन । ।
चौपाई
रक्त माँस रस वसा बिचारे ।
मज्जा शुक्र अस्थि भी हारे ।
श्री ऐश्वर्य ज्ञान यश धरमा ।
गुण वैराग्य गया अब शरमा ।।
छाया त्रिमद देख परिवारा ।
धन विद्या पर पारी पारा ।
काम क्रोध मद लोभ विकारा
षडरिपु सहित बने हत्यारा ॥
सप्त-धातु = रस रक्त मांस वसा अस्थि मज्जा और शुक्र
षड्गुण=ऐश्वर्य ज्ञान यश श्री वैराग्य धर्म
त्रिमद=परिवार विद्या और धन का अभिमान
षडरिपु=काम क्रोध मद लोभ आदि मनोविकार
****************************************
6. आदरणीया कल्पना रामानी जी
दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।

वृद्धावस्था का यही, सबसे सुखद प्रसंग,
नन्हाँ शिशु कर थाम जब, चले आपके संग।

शिशु के कोमल स्पर्श से, होते वृद्ध प्रसन्न,
खुद को ही वे मानते, दुनिया में सम्पन्न।

हर शिशु चलना सीखता, थाम बड़ों का हाथ,
नई पुरानी पौध का, जनम-जनम का साथ।

शैशव को बस चाहिए, सहज स्नेह की डोर,
चल देता है बेखबर, नव जीवन की ओर।

भोला बचपन भेद से, होता है अनजान,
मुसकानें है बाँटता, सबको एक समान।

बुजुर्ग या मासूम शिशु, कहलाते नादान,
हाव-भाव या चाह में, बालक वृद्ध समान।

नवयुग का प्राचीन से, बना रहे यूँ प्यार,
यही सार संसार का, बाकी सब निस्सार।
**********************************
7.आदरणीया ज्योतिर्मयी पन्त जी
दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं
--
कोमल बाल हथेलियाँ,बड़े जनों के हाथ
लिए सहारा बढ़ चलें ,चिंता रहे न माथ.

हाथ पकड़ दिखला रहे ,अनुभव हैं अनमोल
ये बुजुर्ग सिखला रहे ,सीख बड़ी बिन मोल .

झुर्री रेखा कह रहीं ,जीवन का इतिहास
सन्तति हित शुभ कामना ,मात- पिता की आस.

बूढ़ी पीढ़ी सौंपती ,परंपरा सौगात
बच्चे इसे सँवार दें ,तो सुख की बरसात.

बच्चे और बुजुर्ग ही ,जाने कीमत प्यार
इक दूजे का साथ हो ,हाथों भरा दुलार .
***************************************
8.श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी
आल्हा छन्द (16-15 मात्राएँ) छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु (ऽ) तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु (।)से

प्रौड़ अवस्था के हार्थों में, होता शिशु का जब कोमल हाथ |
लगता जैसे अब मुझको भी, मिला आज कान्हा का साथ ||
वय का ध्यान न रहता मुझको, शिशु बनकर मै करता बात |
बाते करते कब सो जाते, नींद हमें दे जाती मात ||

क्यों का प्रश्न ख़त्म ना होता, तब करता मन झुन्झलाहट |
बाबा पोते झगड़ रहे क्यों, सुने तब बाहर से आहट ||
शांत हो जब जिज्ञासा इसकी, तभी बनेगी कोई बात |
डग भरता तब सपना मेरा, कट जाती यूँ मेरी रात ||

खिलती जाए कलियाँ देखो, करे जो हम सार संभाल |
लाठी बनते वह बूढ़े की, बन सकता वह घर की आन ||
सुयोग्य शिक्षित बन जाए तो, अधरों पर होगी मुस्कान
प्रगति करेगा देश हमारा, तभी बढ़ेगी जग में शान ||
*************************************************
9.श्री गिरिराज भंडारी जी
दोहे – दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।
--
कौन सहारा मांगता ,और दे रहा कौन
मैं कैसे जानूँ भला, रहे चित्र जब मौन

राह दिखाती झुर्रियाँ, कोमल तन जब होय
सबल बनोगे जब कभी , भूल न जाना कोय

कोमल तन कोमल मना, निश्छल प्रेम बहाय
छुवन कहीं मिल जाय तो, मन दुगुना हो जाय

पहले दे फिर ले उसे , जीवन की ये रीत
पहले दादा देत है , फिर पोता दे प्रीत

मैं बूढ़ा बच्चा हुआ , तू बच्चा ही होय
आ चल खेलें साथ में,मन आनंदित होय
*******************************************
10.आदरणीया राजेश कुमारी जी
दोहे- दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।
*******
दिखा रहा आवा गमन , सबको चित्र विशेष।
बूढी चौखट दे रही ,नव गेह में प्रवेश॥

नन्हीं नन्हीं उँगलियाँ ,थामे बूढ़े हाथ।
नवल पुरातन का मिला ,कैसा अद्दभुत साथ॥

झुर्रियों भरी उँगलियों,में दो नन्हे फूल।
महकायेंगे वंश को ,छाया है अनुकूल॥

वृक्ष मूल जर्जर हुआ, कोमल कोमल पात।
फिर भी मूलों से मिले ,जीवन की सौगात॥

आज चलाऊं मैं तुझे ,तेरी ऊँगली थाम।
कल संभाले तू मुझे ,जाऊं तीरथ धाम॥
**************************************
11. श्री चन्द्र शेखर पाण्डेय जी
छंद - त्रिभंगी
प्रथम यति 10 मात्रा पर, दूसरी 8 मात्रा पर, तीसरी 8 मात्रा पर तथा चौथी 6 मात्रा पर। हर पदांत में गुरु तथा जगण (ISI लघु गुरु लघु ) वर्जित।
--
जब वर्तमान ने, वर्धमान ने, कहीं भूत का, मान हरा।
जब प्रखर सूर्य के, प्रबल तूर्य ने, अस्ताचल का, भान हरा।
नव उदित दिवाकर, सन्मुख आकर, थाम गया है, हाथों को।
उस काल गाल में, विगत हाल में,बीती काली,रातों को।।

सब का जाना तय, कैसा अब भय, वर्तमान भी, जाएगा।
फिर नया सवेरा, नया बसेरा, लिए जगत पर, छाएगा।
जब मनुज पस्त हो, धीर अस्त हो, अकुलाएगा, व्यग्र यहां।
फूटेगा अंकुर, नव उमंग उर, वीर प्रकट हो, अग्र यहां।।
*******************************
12. श्री केवल प्रसाद जी

पंचचामर छंद - १ २ के यानि लघु गुरु के आठ जोड़े छंद शास्त्र में पंचचामर छंद का कारण बनते हैं- इसे यों भी कहा जाता है .
जगण रगण जगण रगण जगण गुरु
यानि
१२१ २१२ १२१ २१२ १२१ २

कहानियां सुना रहीं बुजुर्ग दादियां यहां।
बता रहीं पुराण सी परी सयानियां यहां।।
जहाज काठ की लिए फिरे इधर-उधर परी।
विभोर आसमान - भू, हसीन वादियां हरी।।
सवा गुनी विशाल सी विभीषिका संवारती।
विचार बोधगम्य से, लुभाय हसितयां-सती।।
सुगीत ज्ञान के रचे, सही दिशा दिखा रही।
रहीम-राम शेष से, सभी निशानियां गही।।
उतुंग निर्झरों सुनो, रूको नहीं बढ़े चलो।
कबीर प्रेम में सदा, निरीह हाथ थाम लो।।
सुभाष वीर भी कहें, प्रताप शान से जिए।
चिघाड़ती सुभाषिनी, संहार शकितयां लिए।।
धरोहरे संजोय जो, भारतीयता मिशाल है।
युवा सदा बहार से, सुशिल्प-वीर भाल है।।
सुहास जिन्दगी यहां अपार ज्ञान-ध्यान है।
करें जरा विशाद, घोर दण्ड का विधान है।।
*********************************************
13. महिमा श्री
दोहा – दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।
--
उँगली तेरी थाम के, घूम रहा संसार
कंधों पे चढ के करूँ, खिलकौरी किलकार
.
मेरी वाणी तोतली, करती नए सवाल
मेरी दुनिया तुझी से, मैं तेरा गोपाल
.
गोदी में वात्सल्य की, किस्से सुनू हजार
संस्कारों में पल रहा , पाता लाड़- दुलार
.
जीवन हो जाये सरल, बड़ो की मिले छाँव
हर मंजिल आसान हो , भटके क्यूँकर पाँव
.
बड़ा भाग्यशाली समझ , जिनको मिलता प्यार
दे बुजुर्ग आशीष तो, , जीत जाय संसार
*******************************************
14. श्री रमेश कुमार चौहान जी

मत्तगयंद (मालती) सवैया
(इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं. हर चरण में सात भगण के पश्चात् अंत में दो गुरु वर्ण होते हैं.)
--
ले शिशु देखत स्नेह पिता उसके कर हाथ लगा कर भाई ।
हाथ लगे कुछ आस जगावन पावन पावन प्यार जगाई ।
ले ममता शिशु देकर आस नवीन दुलार दुलार लुभाई ।
कोमल स्पर्श जगात दुलार लुभात उसे ममता अधिकाई ।

2.कुण्डलिया
(कुण्डली छः पंक्तियाँ व बारह चरण का विषम-मात्रिक मिश्रित छंद है । पहले दो पंक्तियाँ दोहा होता है व अगले चार पंक्तियाँ रोला होता है। )

थाम परस्पर हाथ हम, दादा पोता साथ ।
बीतते स्वर्णिम पल एक, एक नवीन एहसास ।।
एक नवीन एहसास, नई उमंगे जगाये ।
बीते अनुभव सभी, जीवन कला सीखाये ।
‘रमेश‘ खुश हो बहुत, मस्ती करे सरेआम ।
मिलकर दोनों साथ, जब एकदूजे को थाम ।।
*************************************
15. आदरणीय राज बुन्देली
मत्त-गयंद सवैया :
शिल्प विधान : ७ भगण २ गुरु तुकान्त कॆ साथ १२ वर्णॊ पर यति
--
१)
नाजुक-नाजुक दॊ-कर कॊ सखि,दॊ-कर बृद्ध खिलाय रहॆ हैं ॥
बालक कॆ सँग आपहुँ बालक, भाव भरॆ बतियाय रहॆ हैं ॥
थामि लईं अँगुरी अस लागत, चाल सुचाल सिखाय रहॆ हैं ॥
माँनहु चंद मराल शिशू गहि, गॊद प्रमॊद उठाय रहॆ हैं ॥
२)
बॊझ उठाइ लियॊ बहुतै अब, जीवन बॊझ समान भयॊ है ॥
अंतिम साँस कहैं चलिबॆ तब,आनँद आँगन आज जयॊ है ॥
दॆख लियॆ दुख कॆ सब सागर,आज हरी सुख मॊहि दयॊ है ॥
काँपत काँपत नाजुक नाजुक, दॊ कर दॊ कर चूम लयॊ है ॥
३)
बाल हियॆ हुलसाइ रहॊ अरु, हाँथ उठाय कहॆ सुन दादा !!
मॊरि भरॊस करॊ सच माँनहु,जानहु पूर करौं निज वादा !!
तॊरि उसारि करौं सब भाँतहिं,हॊय नहीं उर एक बिषादा !!
आशिष दॆहु बढ़ौं दिन रातहिँ, चापउँ रॊजहिं पंकज पादा !!
**********************************************
16. श्री अरुन अनन्त जी
आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति
--
दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।

फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।

शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।

सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।

जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
***********************************************

17. श्रीमती अन्नपूर्णा वाजपेयी
ललित छंद - मात्राएं - 16 + 12 = 28 अंत मे दो गुरु । प्रथम प्रयास ।

दुलारे शिशुवर, तुम समझाओ, केशव रूप नन्द लाला ।
राह अनोखी तुम दिखलाओ, आनंद कंद जसुमति लाला ।

पुरातन मै हो चला , बाबा हूँ नटवर तुम्हारा ।
भूमि के भावी राजा नव जीवन संभारा ।

**************************************************
18. श्री अजीत शर्मा 'आकाश'जी
दोहे - दोहे में दो पद होते हैं। इसके प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है। उसके पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।

चन्दन-चन्दन तन लगे, मन में उपजे हर्ष
जब भी मेरे कर करें, शिशु कर तेरे स्पर्श.

पिछ्ली पीढ़ी से मिली, हमको जो सौगात
आओ तुमको सौंप दें, दो हाथों में हाथ.

तन पर छायी झुर्रियाँ, कहती हैं यह बात
वक़्त कभी रुकता नहीं, दिन हो चाहे रात.

भूतकाल का क्यों करे, वर्तमान उपहास
सच तो यह है भूत ही, रचता है इतिहास.

तिरस्कार मत कीजिए, वृद्धों का श्रीमान
इनको मिलना चाहिए,मान और सम्मान.

वृद्धों का सम्मान कर, सदा नवायें शीश
उन्नति-पथ पर हम चलें, ले इनका आशीष.

*****************************************************************

Views: 1699

Replies to This Discussion

माननीय सौरभ सर को समारोह के सफल संचालन व कुशल नेतृत्व के लिए हार्दिक बधाई व आभार। सभी प्रतिभागियों और सदस्यों को भी बहुत बहुत बधाई।

हार्दिक धन्यवाद, भाई चन्द्रशेखरजी. आपकी रचनाओं का सहज रसास्वादन रुचिकर लगता है.

संकलन के क्लिष्ट कार्य में आदरणीया प्राचीजी का महती योगदान होता है.

आप गुरु्जनों का आशीर्वाद प्राप्त करना, हमारे रचनाकर्म का एक प्रधान प्रेरक तत्व होता है। पुन: प्रेरित करने के लिए आपका हार्दिक आभार सर। आदरंणीया प्राची मैम को भी इस महती कार्य और सुन्दर संकलन के निर्माण हेतु हार्दिक बधाईयां व कोटिश: आभार प्रेषित करता हूं। नमन।

शुभकामनायें आदरणीय-

सादर आदरणीय

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 30 की समस्त रचनाओं को एक सूत्र में पिरोने के श्रम साध्य कार्य हेतु आदरणीय सौरभ जी बधाई के पात्र हैं| 

आपके संदश से आप्लावित हुआ, आदरणीया.. और आप द्वारा पूरी पंक्ति को शाब्दिक किया जाना रोचक लगा ... :-)))))))

परमसम्माननीय सौरभजी, आपके द्वारा भारतीय साहित्य के स्वर्णिम युग के इस छंद विधा को संरक्षित पल्लवित करने का सतत असाध्य कार्य किया जा रहा ह। आपको शत् शत् नमन

आपका स्वागत है, आदरणीय रमेश भाई.

कार्य-प्रयास और उसके अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद. छंदो के पुनरुत्थान पर हो रहा कार्य इस मंच पर का समवेत प्रयास है. मेरा व्यक्तिगत योगदान तो अत्यंत न्यून है. 

शुभ-शुभ

बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||.

आदरणीय अरुण निगम सर की पंक्तियों ने चित्र के मर्म को बहुत सुन्दर ढंग से शाब्दिक किया है फिर आदरणीय सौरभ सर की ये पंक्तियाँ उसे पूर्णता प्रदान कर रही है-

नव-अंकुर के हेतुकम, पूर्वज-वंशज सेतु हम ।
परम्परा संचालते, वंश विगत को पालते !

बढिया है..  जो आप पुराने अंकों को देख रहे हैं..

शुभ-शुभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service