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अभय कान्त झा दीपराज कृत-

         हनुमान , राम को संदेशा दो......
               
हनुमान,  राम  को   जाकर  ये  संदेशा  दो-   प्रभु  आ  जायें |
भक्तों   पर,  भारी  विपदा  है,   प्रभु   दूर   करें   ये  विपदायें ||

कहना  प्रभु,  पाप  बढ़ा  भारी,  फिर पुण्य विवश हो  रोता है |
मानवता  है  फिर  संकट  में  और  धैर्य  न्याय  का खोता है ||
इस  संकट   को  कैसे  जीतें  हम ?  आकर  प्रभु  ये बतलायें |
भक्तों  पर,  भारी   विपदा  है,   प्रभु   दूर   करें   ये  विपदायें || १ ||

कहना प्रभु,  धेनु-धर्म  पर  फिर,  असुरों  ने  संकट डाला है |
संकट  में  फिर  है  मर्यादा,   संकट   में   अबला - बाला  है ||
रोता  है  दिल  माताओं का,  प्रभु  आकर  उनको  समझायें |
हनुमान,  राम  को  जाकर  ये  संदेशा  दो-   प्रभु  आ  जायें || २ ||

कहना प्रभु, राजनीति फिर से छल और प्रपंच का नाम हुआ |
दुर्बल मानवता  का  शोषण  करना  शासक का  काम  हुआ ||
अन्यायी  के  बंदी  गृह  से  प्रभु  मुक्त   न्याय   को  करवायें |
भक्तों   पर,  भारी   विपदा  है,  प्रभु   दूर   करें   ये  विपदायें || ३ ||

कहना प्रभु,  पाप  बुलंद  हुआ,  है  नज़र  धर्म की झुकी हुयी |
डर   से   सहमे  मासूमों   की,  साँसें  हैं  भय  से,  रुकी  हुयी ||
प्रभु के बिन कौन ?   सहारा  अब,  प्रभु आयें धीर बंधा जायें | 
हनुमान,  राम  को  जाकर   ये  संदेशा  दो-   प्रभु  आ  जायें || ४ ||

कहना  प्रभु  से  प्रभु,  वादा  था-  जब  भक्त कहेंगे,  आओगे |
दीनों - दुखियों,  भक्तों - संतों के,   तुम   संताप   मिटाओगे ||
आ गया समय प्रभु आ जायें  और  ध्वजा  धर्म  की फहरायें |
भक्तों   पर,  भारी  विपदा  है,   प्रभु   दूर   करें   ये  विपदायें || ५ ||

हनुमान,  राम  को  जाकर  ये  संदेशा  दो-   प्रभु  आ  जायें |
भक्तों  पर,  भारी  विपदा  है,   प्रभु   दूर   करें   ये  विपदायें ||

                         रचनाकार - अभय दीपराज

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