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प्रभु की रेल.

थक जाते हैं लोग जब, कष्ट हजारो झेल,
कम बिगड़ते देख कर ,बुद्धि होती फेल.
दुश्मन धक्का मारता,हँसे ठठाय ठठाय,
हित भी मुखड़ा फेरता ,स्नेह न ह्रदय समाय.
अपना तन बैरी बने,  रुक जाए सब काम.
बर्बादी  के समाय में ,टेट भयो बिनु दाम.
दम भर सब संघर्ष रत, मनवां भयो निराश,
बड़ा कठिन यह खेल है, डिग जाए विश्वास.
भय छाया घबरा गया,पाया प्रभु का गोद,
छल सब माया कर रही,प्रभु का रहा विनोद.
दर्द गया दुःख मिट गया,हर्ष हुवा अपार,
सुखी समय है स्वर्ग का,दुखी समय संसार.
यह निश्चित है सर्वदा,प्रभु की आये रेल,
झक झक कर चलने लगी,ख़तम हो गया खेल.

 --------आर .एन .तिवारी

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Replies to This Discussion

waah waah tiwari ji bahut khoob likha hai aapne

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