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आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाला जी,
क्षमा कीजिएगा, कल कुछ व्यस्तताओं के चलते आपके दोहे नहीं देख सकी,
भाव बहुत अच्छे हैं इन दोहों के, पर मात्रिक गणना में त्रुटियाँ है, और कहीं कहीं प्रवाह भी बाधित है....आप मात्रिक सुधार कर दोहों को ३-४ बार जोर से बोल कर देखें, अपेक्षित परिवर्तन स्वयमेव ही समझ आने लगेंगे...
उदाहरण स्वरुप पहले दोहे को अपनी समझ अनुसार परिवर्तित किया है.
उपजता द्वेष (२+१=३)मन में, क्रोध करो जब आप,..............प्रथम चरण में मात्र १२ हो रही है
क्रोध आवे जब मन में, करों राम का जाप |
द्वेष भाव उपजे ह्रदय, क्रोध करें जब आप
मन आवे जब क्रोध तो, करें राम का जाप
मोह जाल में फंस (२+१=३) गये, रहे न कोई साथ,...प्रथम चरण की मात्रा १४ हो रही है, यहाँ फँस कर लें तो मात्रा १३ हो जायेगी
अकड़े मद में चूर हो , क्यों दे कोई साथ |
लालच मन में आगया, जा गिरेगा गर्त(२+१=३),...........द्वितीय चरण की मात्रा १० ही है
लालच की सीमा नहीं, होगा बेडा गर्क |
काम वासना में लिप्त(२+१), घोर नरक का द्वार,.........दोहे के प्रथम व तृतीय चरण का अंत दीर्घ लघु से नहीं करते, यहाँ १२ या १११ ही प्रयुक्त ओता है .
घोर नरक का द्वार है, होता न कभी उद्धार(२+२+१=५) | ....यहाँ सम चरण में मात्रा १२ हो रही है
कडवाहट जब घर करे, तेरे मन के द्वार,
चिंतन से जब हल करे, खुल जाय मन द्वार |...................यहाँ सम चरण की मात्रा १० है
लोकप्रियता(२+१+२+१+२=८) पाने का, बड़ा शातिर रोग,....विषम चरण की मात्रा १४ तथा सम चरण की मात्रा १० है
सुख चैन खातिर ही, छोडो ऐसा रोग |...................विषम चरण की मात्रा ११ है
छोडो ऐसे रोग को , कर ले नैय्या पार,
सच्चा सुख पाने को, हो जाओ तैयार | ................विषम चरण की मात्रा १२ है
आपका निरंतर प्रयास जल्दी ही आपको इस छंद में सिद्धहस्तता दे , ऐसी शुभकामना है..सादर.
आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण जी
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