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सुन  शहरी  बाबू जा देख गाँव के   नज़ारा |
देखि    बताव   कईसे    होई तोहार    गुज़ारा |
 पहिरेल रंग   विरंगे   ही  नया        परिधान |
शहर  में    भूलल    कईसे   रहेला    किसान | 
होला    केतना    सुधार   जानेला   सारा  जहान |
रोटिये  बा फिर  भी  जग  में   सबके  सहारा |
सुन  शहरी  बाबू जा देख गाँव के   नज़ारा |
हर  मौसम   में   रोज़   काम   करेके  पडेला |
सुबह  से   शाम  तक  रोज़  खेत  में  बितेला |
पानी  के साधन  बिना कभी     फसल सुखेला |
जानवर आके   कभी     सारा   फसल  चुगेला |
कईसे चली  काम  घर में  ही सो   के  तुम्हारा |
सुन  शहरी  बाबू जा देख गाँव के   नज़ारा |
गाँव में बिजली के भी  हफ़्तों रहेला ना पाता |
देख  अन्हरिया   में  तोहरा  केतना  बुझाता |
बनावल  सगरी  योजना  भी  फेल  हो जाता |
गाँव के  सुधार  खाली कागज में ही लिखाता |
का करब   जा  के   शहर से  अब  तू बेचारा |
सुन  शहरी  बाबू जा देख गाँव के   नज़ारा |
जब  आवेला  बाढ़  सब   फसल  बही जाला |
केतने  लोग  के  घर में  लागी  जाला ताला |
सारा सोचला पर लोग के पानी फिरी जाला |
चारों  ओर  देख  उफनेला नदी और नाला |
वर्मा  गाँव  में का  करब लोगन के सहारा |
सुन  शहरी  बाबू जा देख गाँव के   नज़ारा |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Replies to This Discussion

Kavta mein maati ki sugandh ha.  achcha laga.

बाह !! बहुते सुन्दर पस्तुति ...बधाई रउआ  के | सादर 

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