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कजरी व्यंग्य

कोइल कूक रही निबिया की डारी पिया

करै छेड्खानी पिया  ना  !

१ – पूछी कोइलिया से मै

    आज निबिया पे तैं

    कहे स्वाद बदलने को

    यहां आई  पिया  ! करे .....

२ – संगे निमिया कै डार

    कोइल झूलै आर –पार

    ह उवा संग कम्पटीसन लडा.ए पिया !  करे ......

३ – कूकै डारि डारि ऊ

     कहै ऊ ला-ल्ला ऊ

    मिरची जइसे लागी निमिया क पात पिया ! करे ......

४ – अमवा रहा भकुआय

     काहे छोड. गई हाय

     ठाड. जोह रहे पयडे. में बाट पिया  !  करे .....

५ – कोइलिया इतराय

     इत उत रही धाय

     रस भर मञ्जरी भईलीः आम पिया  ! करे ...

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Replies to This Discussion

" बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… "

बनारसी कजरी के अदभुत नमूना रउआ प्रस्तुत कईले बानी, शब्द शब्द से रस चुवत बा, हमरा बहुते नीक लागल इ रचना, बधाई सवीकार करी आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी ।  

एह गीत में कजरी के टेक आ आज के भासा के रंग एकवरिये खूब सानी-पानी कइले बा, आदरणीया मंजरी जी.  :-)))

सादर

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