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चिड़िया रानी चिड़िया रानी,हमको ख़ूब सुहाती हो
निकल सवेरे खुले गगन में,उड़ती-उड़ती जाती हो।
चहक-चहक कर जब बोलो तो,हम को भी तुम भाती हो
उछल-कूद यूँ फुदक-फुदक कर,चुनकर दाना खाती हो।
शाम हुए तब लेकर चुग्गा,अपने घर को जाती हो
अपने प्यारे बच्चों को तुम, दाना बहुत खिलाती हो।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर,इक्कट्ठा कर जाती हो
नीड़ पेड़ ऊँचे पर बुनकर,घर फिर वहाँ बनाती हो।
जीवन में कष्टों के होते,जीना तुम सिखलाती हो
मेहनत होती है कैसे ये,हम सबको बतलाती हो।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी,हमको ख़ूब सुहाती हो
निकल सवेरे खुले गगन में,उड़ती-उड़ती जाती हो।।


मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

वाह खूब सुंदर रचना हुई है आदरणीय सतविंदर जी | बधाई स्वीकारें | 

अनुमोदन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया कल्पना दीदी।नमन

बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें

बहुत-बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण जी।

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