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"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-९ (रपट)

आदरणीय साथिओ !

"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-९ जिसका संचालन श्री राणा प्रताप सिंह जी के द्वारा किया गया, १५ मार्च २०११ से शुरू हो १७ मार्च २०११ को संपन्न हुआ ! यूँ तो इस से पहले भी ओबीओ द्वारा ८ मुशायरे आयोजित करवाए जा चुके है और खुश-किस्मती से मैं उन सब में शरीक भी रहा हूँ ! लेकिन जो आनंद इस बार आया, वो पहले किसी भी आयोजन से कहीं ज्यादा रहा ! होली को मद्देनज़र रखते हुए इस बार जो तरही मिसरा रचनाधर्मियों को दिया गया था वाह भारत के मश'हूर मिज़हिया शायर जनाब हुल्लड़ मुरादाबादी साहिब की एक ग़ज़ल से लिया गया था, जो की इस प्रकार था:

''रोज़ पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जाएगा !''

ओबीओ जैसे गंभीर साहित्यक मंच पर का विषय होली के माहौल में वो रंग जमा वो समा बंधा कि देखते ही बनता था ! एक तो "पव्वा" ऊपर से होली का हुडदंगी माहौल, बताने की ज़रुरत नहीं कि शुरका ने क्या क्या खरमस्तियाँ की होंगी ! शक्ल-ओ-सूरत से निहायत ही संजीदा दिखने वाले और निहायत ही गंभीर विषयों पर लिखने वाले शायरों ने भी उस माहौल को वो रंगत दी कि मन बाग़ बाग़ हो उठा ! होली से पहले ही होली का माहौल अगर कहीं पैदा हो जाए तो उस में दाद देनी पड़ेगी उन शायरों को जिन्होंने इसे मुमकिन बनाया ! जिन लोगों को शायद चाय तक से भी परहेज़ रहा, उन्होंने भी "पव्वे" से "बोतल" तक का सफ़र इस महारत से तय किया कि देखते ही बनता था ! भले ही सारी रचनाएँ हुडदंगी रंग से रंगी हुई थी, मगर एक पल के लिए भी किसी ने शालीनता और भद्रता का साथ नहीं छोड़ा तथा मंच की मर्यादा का पूरा पालन किया !

पूरे आयोजन के दौरान माहौल बहुत ही हल्का-फुल्का, खुशनुमा और खुला-खुला सा रहा ! रचनायों के इलावा उन पर मसालेदार और चुटकीदार टिप्पणियों ने भी "आईसिंग ऑन द केक" वाला काम किया ! खासकर वीनश केसरी और राणा प्रताप सिंह द्वारा तकरीबन हरेक शायर की मिज़हिया खिंचाई इस आयोजन की एक यादगार बन कर रह गई ! समय समय पर श्री प्रीतम तिवारी द्वारा की गई चुहलबाजियों ने भी इस आयोजन की ताजगी को आखिर तक कायम रखा ! तकरीबन हर रचना को मुशायरे में शामिल सभी साथियों के साथ साथ अन्य पाठकों ने भी ना केवल खिले माथे स्वीकार ही किया बल्कि खुले मन से दाद भी दी ! यही नहीं बहुत सारी रचनायों के तो एक एक शेअर की समीक्षा हुई ! यहाँ मैं यह बताना भी ज़रूरी समझता हूँ कि किसी एक ग़ज़ल के सभी शेअरों की स्वतंत्र समीक्षा का चलन भी अंतरजाल पर ओबीओ ने ही शुरू किया है - जिसका मुझे हमेशा फख्र रहेगा !

उस से भी ज्यादा गर्व की बात इस बार यह रही कि आप सब के सहयोग और आशीर्वाद से इस OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-९ ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ६४१ एंट्रीज़ के साथ एक नया कीर्तिमान भी स्थापित किया है !


मेरी दृष्टी में यह तरही मुशायरा हर तरह से निहायत कामयाब रहा ! इसकी कामयाबी का सेहरा हर उस शायर के सर जाता है जिन्होंने इस में शिरकत कर इस में चार चाँद लगाए ! मैं दिल से बधाई देता हूँ श्री गणेश बागी जी और प्रीतम तिवारी जी को जिनकी देखरेख में ये सारा आयोजन हुआ ! अंत में मैं बधाई देता हूँ श्री राणा प्रताप सिंह जी को जिन्होंने इस तरही मुशायरे को बहुत ही सफलता से संचालित किया ! भविष्य में भी ओबीओ ऐसे ही स्तरीय आयोजनों द्वारा साहित्य की सेवा करती रहे - यही मेरी कामना भी है और आशा भी ! अंत में आप सभी को होली की बहुत बहुत बधाई, ईश्वर आप सब की जिंदगियां मंगलमय करे ! सादर !

योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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आदरणीय योगी सर 

सबसे पहले तो इस शानदार और द्रुत रपट के लिए धन्यवाद

 

जिस तरीके से आपने हर छोटी छोटी बातों को समेटा है वो काबिल-ए- दाद है| यह बात भी काबिल ए दीद है की इस बार आई गज़लें पिछले मुशायरों की बनिस्बत अधिक स्तरीय रहीं और यही ओ बी ओ और इस मुशायरे का उद्देश्य था|

इस सफलता का श्रेय आपको भी जता है|

 

आपको और सभी ओ बी ओ सदस्यों और उनके परिवारों को होली की शुभकामनाएं|

राणा भाई, मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ की इस बार रचनायों का स्तर वाकई बहुत उच्च-स्तरीय रहा ! आपको भी होली बहुत बहुत शुभकामनाएं|
आदरणीय प्रभाकर सर ,
                                     इतनी सरल एवं संपूर्ण रिपोर्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | होली के रंगों को समेटने का जो ओ बी ओ परिवार का मकसद था , वो पूरी तरह सफल हुआ है | इसके लिए आपको और सभी मित्रो को हार्दिक बधाई एवं सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनायें | 
वीरेन्द्र भाई, जितना आनंद इस बार आया वो पहले कभी भी नहीं आया होगा ! होली से पहले ही हम सब होली के रंगों में रंग गए, और मुशायरा एक मील का पत्थर साबित हुआ ! आपको औ आपके समस्त पविवार को भी होली मुबारक !
आदरणीय योगी भैया....

इस रपट के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका...हर छोटी से छोटी बात को जिस तरह से आपने समेत कर लिखा है उसके लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाये कम है....

और इस आयोगन की सफल सफलता का सबसे बड़ा श्रेय आपको जाता है....
आप सभी को होली की शुभकामनायें.....
प्रीतम भाई, इन छोटी छोटी बातों ने ही पूरे दिन दिन समां बंधे रखा ! इस मुशायरे की सफलता का श्रेय उन सभी को जाता है जिन्होंने  अपना कीमती समय इस आयोजन को दिया ! आपको भी होली बहुत बहुत मुबारक !
पेश है हुल्लड़ मुरादाबादी साहब की वो गज़ल जिसके एक मिसरे पर इतना बड़ा आयोजन संपन्न हुआ

इश्क मत करना किसी से बावला हो जायेगा
तू जवानी के दिनों में पिलपिला हो जायेगा

यह तो पानी का असर है तेरी गलती कुछ नहीं
मुंबई में जो रहेगा बेवफा हो जायेगा

दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटों के लिए
इसको जब कुर्सी मिलेगी भेड़िया हो जायेगा

हर तरफ हिंसा, डकैती, हो रहे हैं अपहरण
रफ्ता रफ्ता मुल्क सारा माफिया हो जायेगा

जनवरी छब्बीस अब तो तब मानेगी देश में
जब यहाँ हर भ्रष्ट नेता गुमशुदा हो जायेगा

लीडरों के इस नगर में है तेरी औकात क्या?
अच्छा खासा आदमी भी सिरफिरा हो जायेगा

शख्स वो जो बक रहा है टुन्न होकर गालियाँ
चाहे दिल्ली में रहे पर आगरा हो जायेगा

है बहुत रिस्की ये व्हिस्की शिष्य पीना छोड़ दे
रोज पव्वा पी लिया तो पीलिया हो जायेगा

पेलकर पन्त्रह लतीफे मंच पर तो जम गया
गोष्ठी में हूट लेकिन शर्तिया हो जायेगा


पैंट का कपड़ा न लेना बोम्बे वी टी से कभी
धीरे धीरे वह सिकुडकर जांघिया हो जायेगा

बोझ लादे फिर रहा है जो दुखों का हर समय
आदमी होते हुए भी वह गधा हो जायेगा

क्या पता था शायरी में आयेंगे ऐसे भी दिन
हर गज़ल का शेर हुल्लड़ मर्सिया हो जायेगा
राणा जी इस प्रस्तुति के बिना तरही अधूरी रहती आपने उसे पूर्णता प्रदान की | तरही के सफल सञ्चालन के लिये बधाइया और होली की शुभकामनाये |
दो टंकण त्रुटि रह गयी हैं उनपर ताकीद है कि:
ठीक कर ले शेर दो तू, तुझको 'हुल्‍लड़' की कसम
वरना महफिल की नज़र में बेवड़ा हो जायेगा।

दम (दुम) हिलाता फिर रहा है चंद वोटों के लिए
इसको जब कुर्सी मिलेगी भेड़िया हो जायेगा
और
पलकर (पेलकर) पन्त्रह लतीफे मंच पर तो जम गया
गोष्ठी में हूट लेकिन शर्तिया हो जायेगा
तिलक जी त्रुटियों की तरफ इशारा करने के लिए धन्यवाद....सही कर दी हैं ...कसम से बेवड़ा नहीं हूँ ....बस १ बोतल रोज पी लेता हूँ

ठीक कर ले शेर दो तू, तुझको 'हुल्‍लड़' की कसम
वरना महफिल की नज़र में बेवड़ा हो जायेगा।

 

वाह वाह वाह कपूर साहिब - बहुत खूब !

मक्‍ते का शेर बीच में आ गया है उसे अंत में कर दें।

क्या पता था शायरी में आयेंगे ऐसे भी दिन
हर गज़ल का शेर 'हुल्लड़' मर्सिया हो जायेगा

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