For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परम स्नेही स्वजन,
आज दसवीं तारीख है और वक्त आ गया है कि दिसम्बर के तरही मिसरे की घोषणा कर
दी जाय, तो जैसा कि पहले ही संपादक महोदय ने महाइवेंट के दौरान एक मिसरे को
तरही के लिए चुना था तो उन्ही की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए पेश है आपके
समक्ष तरही मिसरा|

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
१२२ १२२ १२२ १२२
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
बहर: बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम
हिंदी में इसे भुजंगप्रयात छन्द के बाण छन्द  के नाम से जाना जाता है जिसका विन्यास है यगण(यमाता) ४ बार|
अब रही बात रद्दीफ़ और काफिये की तो इसे फ़नकारो की मर्ज़ी पर छोड़ा जा रहा
है चाहे तो गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कह दें या रद्दीफ़ के साथ, बस इतना ख़याल
रखें की ये मिसरा पूरी ग़ज़ल में मिसरा ए ऊला या मिसरा ए सानी के रूप में
कहीं ज़रूर आये|

इस बार नियमों में कुछ बदलाव भी किये गए हैं अतः निम्न बिन्दुओं को ध्यान से पढ़ लें|

१) मुशायरे के समय को घटाकर ३ दिन कर दिया गया है अर्थात इस बार मुशायरा दिनांक १५ से लेकर १७ दिसम्बर तक चलेगा|
२) सभी फनकारों से निवेदन है की एक दिन में केवल एक ग़ज़ल ही पोस्ट करें अर्थात तीन दिन में अधिकतम ३ गज़लें|

आशा है आपका सहयोग मिलेगा और यह आयोजन भी सफलता को प्राप्त करेगा|
यह बताने की आवश्यकता नहीं है की फिलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद रहेगा और १४-१५ की मध्यरात्रि को खुलेगा|
तो चलिए अब विदा लेते हैं और मिलते है १४-१५ की मध्यरात्रि को|

Views: 9464

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

चलिए ये भी एक पाठ हो गया और हम सब विद्यार्थी  काफी कुछ सीख रहें हैं |

Amitabh Tripathi 


आदरणीय आचार्य सलिल जी,
आपकी इस तथाकथित ग़ज़ल (क्षमा करियेगा) में कोई निश्चित काफिया नहीं है| मेरी समझ से 'स्तकारी मुहब्बत' या 'श्तकारी मुहब्बत' इसका रदीफ़ है| इसके पहले का जो तुकांत होगा उसे काफिया कहेंगे| अब आप स्वयं निर्णय लेलें कि इसमे काफ़िया क्या है? जो शब्द या शब्दांश हर शे'र के अंत में अविकल दुहराया जाय उसे रदीफ़ कहते हैं| मंच के अन्य ग़ज़लगो कवि इस पर अपना विचार देंगे ही|

आदरणीय अमिताभ त्रिपाठी जी को नमन !

मैं जितना जानता हूँ उसके अनुसार रदीफ़ शब्दांश नहीं होता बल्कि पूरा शब्द ही होता है और काफिया शब्दांश , अक्षर , मात्रा कुछ भी हो सकता है |

रदीफ़ और काफिया चुनने का सीधा सा तरीका है | मतले के दोनों मिसरे को एक साथ देखा जाय ,दोनों मिसरे के अंत मे जो समान शब्द हो वह रदीफ़ और रदीफ़ के ठीक पहले आने वाला समान शब्दांश मात्रा सहित / अक्षर /मात्रा काफिया निर्धारित होता है |

यदि मैं गलत हूँ तो उस्ताद और जानकार लोग जरूर बताये जिससे मेरा संदेह भी स्पस्ट हो |

मुझे तो भाईयों गज़ल पढकर मज़ा गया |तकनीकी बाते गज़ल के इंजीनीयर-उस्ताद जाने |एक बात कहूँ अधिक समीक्षा से कभी कभी रचना की ताजगी पर असर भी पड़ता है |मुझे नहीं मालूम कबीर को दोहे की तकनीक का ,तुलसीदास को चौपाई की तकनीक का या ग़ालिब को गज़ल की टेक्नोलोजी का ज्ञान था या नहीं| लेखक को लेखन पर ध्यान देना चाहिए बाकी बातें समय के साथ आ जाती हैं |लेखन और लेखन पर समीक्षा दोनों अलग काम हैं और अलग अलग लोगों को करना चाहिए |

नवीन भाई आई एम् आलवेज विथ यू आप कभी गलत हो नहीं सकते और ओ.बी. ओ. तो हम सबका परिवार है एक सीखने का मंच आपस में ही एक दूसरे को मांजने का काम हम कर रहे हैं इससे बढ़कर अच्छी बात क्या हो सकती है |मेरे ख़याल से बागी भाई को ओ.बी.ओ. इवेंट को गीनीज  बुक में स्थान दिलाने का प्रयास करना चाहिए |ऐसा जीवंत साहित्य रचना समीक्षा का मंच और इतनी आबादी वाला शायद यह पहला होगा |यह सुझाव गंभीरता से दिया है बागी जी ध्यान दें |मेरी अग्रिम शुभकामनाएं |

दिल मुग़ल गार्डन हो गया नवीन जी आपकी तारीफ़ सुनकर !!! वैसे मैं थोडा साम्यवादी हूँ पर हर इंसान को उसकी तारीफ अच्छी लगती है हा हा हा ...

नवीन भैया रदिफ़ स्तकारी मुहब्बत नही है, रदीफ़ तो मुहब्बत ही है, हा अगर मतले मे स्तकारी हटाने पर बचा हर्फ़ सार्थक होता और वो भी  दोनो कफ़िये, तो यह पर रदीफ़ "स्तकारी मुहब्बत" हो जाता और ईता का दोश बनता। परन्तु यहा पर ऐसा नही है। अमिताभ जी आप भी गौर फ़रमायें।

मैं क्या कहू समझ में नहीं आती दोस्तों ,
आप लोगो को लिखा खूब भाती दोस्तों ,
मैं शायर नहीं ना ग़ज़ल लिखने आता ,
मगर लिख रहा हु आप को प्यारे दोस्तों ,

मुहबत की चाह उनसे नजर जो मिलाया ,
क्या गजब हुई जब उनको साथी बनाया ,
मुहबत मिली नहीं नौकर बन गया हूँ मैं ,
आठो पहर अब उनका हुक्म बजा रहा हूँ मैं ,

गज़ल

नए दौर एक नयी सी दिखावट

कहाँ रह गयी अब मोहब्बत इबादत |

 

वो हुस्नो अदा नाज़ नखरे हया सब

मोहब्बत कभी थी पोशीदा निहायत |

 

हर एक बात पे शुक्रिया और तोफे

ये जज़्बात की हो रही है नुमायश |

 

कभी मुद्दतों बाद होता था मुमकिन

मगर आजकल इश्क होता फटाफट |

 

निकाह और तलाक हो गये हाई टेक हैं

ये घनघोर कलयुग कहाँ आ गये हम |

 

बड़े शौक़ से उसने इसको गढा है

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |

 

 

मैंने इस गज़ल को शौक़ से गढा है कुछ तकनीकी खामियां हैं मुझे भी ऐसा लगता है |पर इवेंट में इसे डालने से अपने को रोक नहीं पा रहा |

अच्छी अभिव्यक्ति ।  इसे हम आज़ाद नज़्म तो कह ही सकते हैं ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
10 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
3 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service