For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

Views: 8797

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
आँख नभ पर जमी तो जमी रह गई.
सांस भू की थमी तो थमी रह गई.
*
सुब्ह सूरज उगा, दोपहर में तपा.
साँझ ढलकर, निशा में नमी रह गई..
*
खेत, खलिहान, पनघट न चौपाल है.
गाँव में शेष अब, मातमी रह गई..
*
रंग पश्चिम का पूरब पे ऐसा चढ़ा.
असलियत छिप गई है, डमी रह गई..
*
जो कमाया गुमा, जो गँवाया मिला.
ज़िन्दगी में तुम्हारी, कमी रह गई..
*
बेहतरीन !!!! एक बार फिर से कमाल

रंग पश्चिम का पूरब पे ऐसा चढ़ा.
असलियत छिप गई है, डमी रह गई..
अद्भुत!
सलिलजी नमस्ते.
>>जो कमाया गुमा, जो गँवाया मिला.
ज़िन्दगी में तुम्हारी, कमी रह गई..
आपने वो कुछ कहा है सलिलजी जिसे समझने में बरसों लगें.. इस गूढ़ विचार को इतनी आसानी से कहने के लिए धन्यवाद.
सर्वप्रथम मेरा प्रणाम,
नवीनजी आप की सारी ग़ज़लें पढ़ी मैंने दुसरे मुशायरे में | सब नहले पे दहला थी| और तीसरे मुशायरे में भी क्या गज़ब शुरुवात की है|
किसी भी शे'र में कोई कमी नहीं| मगर यह शे'र बहुत अच्छा लगा --------
वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी|
इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी|३|
नवीन भाई, मुशायरा लूटने का इरादा है क्या ? क्या ज़बरदस्त ग़ज़ल कही है ! मतले से मकते तक मोती पिरो दिए हैं आपने, हर शेअर आपने आप में मुकम्मिल और कामयाब है ! इस ग़ज़ल में मेरे सब से पसंदीदा दो शेअर :

//वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी
इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी !
बन्दरी, जो मदारी के 'हत्थे' चढी|
ता-उमर, कूदती-नाचती रह गयी !//

वाह वाह वाह !
बड़े भैया मै जितना आपको जानता हूँ यकीनी तौर पे कह सकता हूँ की ये ग़ज़ल आपकी मास्टर पीस है|
हर शेर पूरी ग़ज़ल के बराबर दाद पाने की कुव्वत रखता है ..किसको छोड़ें...और किसको उठायें|
अद्भुत कारीगरी
बधाई हो| jay hoooooo |
bahut khub navin jee..
नवीन जी! हर शे'र एक से बढ़कर एक... पूरी ग़ज़ल दिल तक पहुँचाने में समर्थ है. बधाई.
नविन भईया मेरा बस चले तो यह मुशायरा आप के एक शे'र पर लुटा दूँ ,
वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी|
इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी|३|

क्या ख्यालात है, बहुत ही उम्द्दा शे,र कहा है आपने , पूरी ग़ज़ल का निचोड़, वाह वाह के आलावा और क्या कहूँ, बधाई, लिखा लीजिये २-४ एकड़ ,
//वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी
इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी !
बन्दरी, जो मदारी के 'हत्थे' चढी|
ता-उमर, कूदती-नाचती रह गयी !// mujhe samjh me nahee aa rha ki tareef ke liye shbd kanha se laun .. mere paas lafzon kee kamee ra gai .. kamal lazwab
वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी|
इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी|३|

दोष माँ-बाप का हो, या औलाद का|
नस्ल तो, अस्ल में, मतलबी रह गयी|५|

जब 'तजुर्बे' औ 'डिग्री' का दंगल हुआ|
कामयाबी, बगल झाँकती रह गयी|६|

बहुत खूब नवीन भाई। एक और शानदार, जानदार, ईमानदार ग़ज़ल के लिए बधाई।
नविन चतुर्वेदी जी २ शेर और कहते है

दिल है कि मानता नहीं...........

काबा-काशी वही हैं, मगर दोस्तो|
बन्दों में हीं, नहीं, बन्दगी रह गयी||

बेकरारी का आलम, न हो, तो हो क्या|
अब कहाँ, लोगों में - सादगी रह गयी||

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
16 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
21 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service