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आदरणीय साथियो, 

 

ओबीओ लाइव महा-उत्सव  अंक 10 का आयोजन दिनांक 07 जुलाई से 09 जुलाई 2011 तक श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी के संचालनाधीन आयोजित किया गया ! जैसा कि सब जानते हैं कि इस आयोजन में एक विषय देकर रचनाकारों को उस पर कलम-आजमाई करने का अनुरोध किया जाता है ! लेकिन इस बार हम लोग कुछ अलग करने की सोच रहे थे अत: इस बार रचनाधर्मियों को "रक्षा बंधन" का विषय देकर उन्हें केवल छंदाधारित रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था ! दरअसल, इस बार लगभग अपने वीटो पॉवर का उपयोग कर मैंने केवल छंदबद्ध काव्य रचनाओं को ही सम्मिलित करने के लिए ओबीओ प्रबंधन टीम को राज़ी किया था ! सहमति होने के बावजूद मेरे अन्दर कहीं न कहीं एक डर ज़रूर था ! क्योंकि छंदों पर आधारित रचना कहने वालों की संख्या ओबीओ पर थोड़ी सीमित ही है ! क्योंकि विभिन्न भारतीय भाषाओं और साहित्यिक विधाओं में लिखने वालों को प्रोत्साहित करना हमारा लक्ष्य रहा है, अत: इस बार हमने केवल भारतीय शास्त्रीय काव्य छंदों पर आधारित काव्य-कृतियों को ही इस आयोजन में शामिल करने का निर्णय लिया !

आयोजन के प्रारंभ होने के कुछ समय बाद ही मेरे अन्दर का डर जाता रहा जब पहले ही दिन रचनाधर्मियों ने बढ़-चढ़ कर अपने छंद प्रस्तुत करने शुरू किए ! आयोजन का शुभारम्भ श्री गणेश बागी जी की एक बहुत ही सुन्दर घनाक्षरी छंद से हुआ, जिसका आनंद सभी कविता प्रेमियों ने लिया तथा इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी हुई ! उसके बाद आया इस आयोजन का "सरप्राईज़ पैकेज" - इस बार ओबीओ के एक पुराने सदस्य श्री रवि कुमार गुरु जी एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं पूरे सात घनाक्षरी छंद लेकर मंच पर नमूदार हुए ! सातों के सातों छंद एक दम सधे हुए, भाषा प्रौढ़, भाव स्तुत्य, शिल्प की दृष्टि से लगभग निर्दोष, और अलग अलग रंगों में रंगे हुए ! जिनमे राखी के बारे में परम्परागत बातें, रक्षा बंधन का महत्व, भाई-बहन का प्यार, भाई-बहन की नोंकझोंक, ऐतिहासिक और पौराणिक बातों का सुन्दर मिश्रण देखने को मिला ! श्री रवि कुमार गुरु जी का उच्च स्तरीय छंद कहना अगर इस आयोजन की उपलब्धि मानी जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी !       

दोहा, कुण्डलिया, चौपाई, सोरठा, घनाक्षरी, बरवै, छप्पय, सवय्या, गीतिका, हरिगीतिका सहित लगभग हर शास्त्रीय छंद पर रचनाएँ प्रस्तुत की गईं ! जहाँ भाई धर्मेन्द्र शर्मा जी एवं आशीष यादव ने पहली बार दोहा कहने का प्रयास किया वहीं आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ने भी पहली बार लेकिन सफलतापूर्वक सवय्या छंद पर कलम-आजमाई की जोकि हम सब के लिए हर्ष का विषय है !

आयोजन के आगे बढ़ने के साथ-साथ डॉ संजय दानी जी, श्री अतेन्द्र कुमार सिंह रवि जी, श्री आशीष यादव जी, श्री अरुण कुमार पाण्डेय अभिनव जी, खाकसार योगराज प्रभाकर, श्री बृज भूषण चौबे जी, श्री सतीश मापतपुरी जी,  श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी, मोहतरमा मुमताज़ नाजा जी, श्री नवीन चतुर्वेदी जी, डॉ बृजेश त्रिपाठी जी, श्री संजय मिश्र हबीब जी भी अपनी-अपनी छंद आधारित रचनाओं के साथ हाज़िर हुए, जिनकी रचनाओं का पाठक वर्ग ने पूरा-पूरा आनंद लिया ! यही नहीं, हमारे वरिष्ठ सदस्यों आदरणीय अम्बरीष श्रीवास्तव जी, गणेश बागी जी एवं सौरभ पाण्डेय जी ने लेखकों को अपने बहुमूल्य सुझावों से भी नवाज़ा ! सही मायनो में पूरा आयोजन आपके मज़बूत कन्धों पर चल कर ही अपनी मंजिल-ए-मक़सूद तक पहुंचा जिसके लिए आप सभी को मेरा नमन !

इस आयोजन में हमें आदरणीय आलोक सीतापुरी जी और आचार्य संजीव सलिल जी के उत्कृष्ट छंद-काव्य पढने का भी अवसर मिला ! आपकी रचनाओं ने इस आयोजन को एक विलक्षण ऊँचाई प्रदान की ! इस आयोजन की एक और विशेष बात रही श्री प्रमोद बाजपेई द्वारा लुप्तप्राय या बहुत ही कम प्रचलित छंद "बरवै" पर आधारित रचनाएँ - ऐसे पुरातन शास्त्रोक्त छंद पर आधारित रचना का इस आयोजन में सम्मिलित होना हम सब के लिए हर्ष एवं गर्व का विषय है !

अंत में मैं ज़िक्र करना चाहूँगा उन दो महानुभावों का जिन्होंने इस आयोजन पर अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है - श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी एवं आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ! आयोजन की कोई भी रचना ऐसी नहीं रही जिनका आप दोनों ने सारगर्भित विश्लेषण न किया हो ! कुंडली के जवाब में कुंडली, दोहे के जवाब में दोहा, चौपाई के जवाब में चौपाई तथा घनाक्षरी के जवाब में घनाक्षरी - आप दोनों ने पूरे आयोजन के दौरान वो समा बाँधा जो देखते ही बनता था ! आपने कोरी वाह-वाही से ऊपर उठ ओबीओ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने बहुमूल्य सुझावों से भी नवोदित लेखकों का जिस तरह मार्गदर्शन किया है, वह वन्दनीय है ! श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी और आदरणीय सौरभ पांडे जी ने भी अलग-अलग छंदों में अपनी शाहकार रचनाएँ प्रस्तुत कर आयोजन को सदा गतिमान रखा ! आपकी रचनाएँ भाव, भाषा, शैली और शिल्प की दृष्टि से इतनी परिपक्व थीं कि सभी ने न केवल उनका पूरा आनंद लिया बल्कि दिल खोल कर उनकी तारीफ भी की !

इस सफल आयोजन की सफलता में मंच संचालक श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी के अभूतपूर्व योगदान का उल्लेख न करना भी ग़लत होगा ! आप एक मल्टी नेशनल कम्पनी के कंट्री जनरल मेनेजर के पद पर आसीन हैं, आपके ऊपर काम का कितना रहता हैं,  मैंने स्वयं देखा है ! लेकिन समयाभाव के बावजूद जिस तरह से आपने अपने दायित्व का निर्वाह किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है ! पूरे तीन दिन आपने जिस तरह रचनाकारों का उत्साह बढ़ा कर आयोजन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया - उसके लिए मैं आपको ह्रदय से साधुवाद देता हूँ ! अंत में मैं उन सब महानुभावों का जिन्होंने इस आयोजन में रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जिन्होंने अपनी बहुमूल्य टिप्पणियाँ दीं एवं समस्त पाठकगण जो हम से जुड़े हैं - ह्रदय से धन्यवाद करता हूँ ! अंत में ओबीओ के संस्थापक श्री गणेश बागी एवं प्रीतम तिवारी जी को भी इस सफल आयोजन पर बधाई देता हूँ ! जय ओबीओ ! सादर !

योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)

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Aadarniy pradhan sampadak mahoday ji, is aayojan ko safal bnane me aap ka bhi mahan sahyog tha. Jis tarah se sanchalak mahoday ne apne kam ko sachchai k sath anjam diya kabiletarif tha. Hmare guru ji ne to gajab ka utsah dikhaya. Rassi patthar ko kat deti h, bs nirantarta ki jarurat hoti h. Unhone siddh kr diya. Sabhi logo ka mahan yogdan rha.
Itni sundar samiksha karne k liye dhanywad.
Naman

बहुत बहुत आभार आशीष भाई - आप सब के योगदान से ही यह आयोजन सफल रहा है, जिसके लिए आप भी बधाई के पात्र हैं !

ओ बी ओ लाइव महा , उत्सव अंक  दस का    

भाव रक्षा बंधन की  , था छंद का ही काम  ,

 

आयोजन की अवधि, था तिन दिनों का ,                 

सुरु रविवार और ,  अंत मंगल साम , 


दोहा रोला कुंडलिया , कवित्त/घनाक्षरी भी  ,

हरिगीतिका सवैया , आये सरे आम ,


भाई बागी सुरु किये , सर्वोतम धनाक्षरी ,

गुरु की चाहत उन्हें , सत सत प्रणाम ,


योगराज प्रभाकर , और भाई सौरभ जी , 

बाकि सब दोस्तों को , गुरु का सलाम ,

 

 

दोस्तों  नमस्कार  राम  किसे ना भाए मेरा कहने का तात्पर्ज हैं बारे सुनना सबको अच्छा लगता हैं , और भैया योगराज जी ने जी कदर मुझ पे भरोसा दिखाए हैं मैं फुल कर कुप्पा हो गया हूँ , ये मैं सवीकार करता हूँ की मुझमे बहुत कमियां हैं लेकिन भैया योगराज जी , भैया सौरभ जी , भाई गणेश जी और भी सारे दोस्त जिस तरह मेरी कमियों को गिन गिन कर दिखाए , और मैं उसपे अमल करने की कोशिश किया आज देख रहा हूँ की एक राह के पथल में अब चमक आने लगी हैं इसके लिए सभी दोस्तों का आभारी हूँ ,

 

 

 

रवि भाई, आपको को "लिफ्ट" इस आयोजन से दौरान मिली है मुझे पूरा विश्वास है कि आप उसका "दुरूपयोग" न करके भविष्य में भाषा एवं व्याकरण की त्रुटियों से रहित उच्च स्तरीय साहित्य का सृजन ही करेंगे ! जिस तरह आप लगभग हरेक चीज़ का लिंग परिवर्तन कर देते हैं, उसको इस बार तो आपकी घनाक्षरी से किसी प्रकार मैंने सुधार दिया लेकिन भविष्य में यह काम आपको खुद ही करना होगा ! अब जवाब में "Dhanybad sirjee" लिख कर पल्ला मत झाड लेना - आशा है कि मेरा आशय आप समझ गए होंगे ! बहरहाल, आपने आयोजन में जो सहयोग और उत्साह दिखाया, उसके लिए मैं आपको ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ !

मैं आपकी बातो पे अमल करने की पूरा कोशिश करूँगा 

 

ह्रदय से आपका आभारी हूँ रवि भाई !

//ओ बी ओ लाइव महा, उत्सव अंक दस का
भाव रक्षा बंधन की , था छंद का ही काम ,

आयोजन की अवधि, था तिन दिनों का ,
सुरु रविवार और , अंत मंगल साम ,

दोहा रोला कुंडलिया , कवित्त/घनाक्षरी भी ,
हरिगीतिका सवैया , आये सरे आम ,

भाई बागी सुरु किये , सर्वोतम धनाक्षरी ,
गुरु की चाहत उन्हें , सत सत प्रणाम ,

योगराज प्रभाकर , और भाई सौरभ जी ,
बाकि सब दोस्तों को , गुरु का सलाम ,

दोस्तों नमस्कार राम किसे ना भाए मेरा कहने का तात्पर्ज हैं बारे सुनना सबको अच्छा लगता हैं , और भैया योगराज जी ने जी कदर मुझ पे भरोसा दिखाए हैं मैं फुल कर कुप्पा हो गया हूँ , ये मैं सवीकार करता हूँ की मुझमे बहुत कमियां हैं लेकिन भैया योगराज जी , भैया सौरभ जी , भाई गणेश जी और भी सारे दोस्त जिस तरह मेरी कमियों को गिन गिन कर दिखाए , और मैं उसपे अमल करने की कोशिश किया आज देख रहा हूँ की एक राह के पथल में अब चमक आने लगी हैं इसके लिए सभी दोस्तों का आभारी हूँ ,//

गुरु जी इतना मत कुप्पा हो जाइये कि गुड़ गोबर हो जाये, यह आपने क्या कर दिया है, जो काम उस दिन शाम में शुरू हुआ है, उसे स्वीकार तो कीजिये, तात्पर्य है कि तीन दिन पत्थर को घिसा गया है उसमे चमक दिखनी चाहिए |

आदरणीय योगराज जी,यह आयोजन अपने आप में एक त्योहार रहा...वही जोश वही ऊर्जा...आपको और इस आयोजन में शामिल सभी को हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ.

 

ओबिओ पर इसी तरह आपसी स्नेह बढ़ता रहे.

 

सादर

 

आराधना

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आराधना जी, मगर पूरे आयोजन के दौरान आपकी कमी बहुत खलती रही !

योगराज जी,

हमें भी हिस्सा ना ले पाने का अत्यंत खेद है. परंतु हम ने सारी कविताओं का रसास्वादन अवश्य किया.

भविष्य मे अधिक प्रयत्नशील रहेंगे.

सादर,

आराधना

शुक्रिया आराधना जी !

भाई योगराज जी नें, सुन्दर रपट जो दी,
कुछ भी ना छोड़ा देखो, उनको प्रणाम है.

त्वरित रपट लिखी, त्वरित ही करी पोस्ट,
ऐसे गुरुदेव जी को, सबका सलाम है.

सबको सहारा दे के, ओ बी ओ पे समां बाँधें
यारों के हैं यार
योगी, भाई जी का नाम है.

गजलों के माहिर जो, छंदों के महारथी हैं,
ऐसे भाई योगी जी का, पटियाला धाम है.

इस छंद महोत्सव को सफल बनाने के लिए भाई योगी जी के साथ-साथ, भाई बागी जी, भाई सौरभ जी, भाई आलोक जी, भाई धरम जी, भाई प्रमोद जी, आचार्य सलिल जी, भाई नवीन जी, श्रीमती शन्नो जी, मोहतरमा मुमताज अज़ीज़ जी, भाई ब्रजेश जी, भाई आशीष जी, भाई भाई रवि गुरू जे , भाई अतेन्द्र जी, भाई 'अभिनव' जी व भाई बृज भूषन जी सहित सभी ओ बी ओ के वाहकों को कोटिशः बधाई व हृदय से आभार ......:-)    

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