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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-47

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 47 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा-ए-तरह जिस ग़ज़ल से लिया गया है उसके शायर हैं जनाब दानिश 'अलीगढ़ी' | पेश है मिसरा-ए-तरह ........

 

"फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं"

212 1222 212 1222

फाइलुन मुफाईलुन फाइलुन मुफाईलुन

(बह्रे हज़ज़ मुसम्मन् अशतर)

रदीफ़ :- समझती हैं 
काफिया :- इयाँ (डालियाँ, पुतलियाँ, हिचकियाँ आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २४ मई दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २५ मई दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २४ मई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

अपने अंदाज में  शानदार गजल कहने हेतु दिली दाद कबूल करें आदरणीय अशोक जी 

बारिशें अचानक की बदलियाँ समझती हैं

द्वार पर पड़ी दस्तक पत्नियाँ समझती हैं...... बहुत खूब 

आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी सादर, गजल पसंद कर हौंसला देने के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर.

कड़कडा रही हैं अब जोर जोर से देखो,

कौन मस्जिदो मंदिर बिजलियाँ समझती हैं  

बहुत खूब आदरणीय रक्ताले साहब, बधाई स्वीकार करें..

आदरणीय भुवन निस्तेज जी सादर, उत्साहवर्धन करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार. 

शानदार गज़ल के लिए आपको ढेरों बधाइयाँ आदरणीय रक्ताले जी

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, गजल पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर.

आदरणीय अशोक रक्ताले भाई , मतला से पुछल्ला तक सभी अशआर लाजवाब हैं , पूरी ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रया से रचना कर्म सार्थक हुआ. सादर आभार. 

जो मिला सुकूने दिल फूल पर उन्हें उसकी,

कैफियत सभी उड़ती तितलियाँ समझती हैं, वाह सर क्‍या खूब कहा आपने प्रणाम स्‍वीकार करें

 

आदरणीय अखंड गहमरी साहब सादर, गजल पसंद कर उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर. 

आइना तराशेगा चाँद सा फकत मुझको,

आइना खफा हो तो लड़कियाँ समझती हैं,

 

कड़कडा रही हैं अब जोर जोर से देखो,

कौन मस्जिदो मंदिर बिजलियाँ समझती हैं  

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय रक्ताले सर 

आदरणीया वन्दना जी सादर, उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर.

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