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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १५( Now closed with Record 1063 Replies for Mushayra )

 परम आत्मीय स्वजन,

"OBO लाइव महाउत्सव" तथा "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता में आप सभी ने जम कर लुत्फ़ उठाया है उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १५ और इस बार का तरही मिसरा २६ नवम्बर १९५२ को राय बरेली उत्तर प्रदेश में जन्मे प्रसिद्ध शायर जनाब मुनव्वर राना साहब की गज़ल से हम सबकी कलम आज़माइश के लिए चुना गया है | तो आइये अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदियों तक पहुंचा दें |

इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये

२१२२            २१२२              २१२२         २१२

 
 फायलातुन फायलातुन  फायलातुन फायलुन
( बहरे रमल मुसम्मन महजूफ )
कफिया: आर (अखबार, इतवार, बीमार आदि)
रदीफ   : होना चाहिये

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ सितम्बर दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० सितम्बर दिन शुक्रवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १५ जो तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्यअधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ सितम्बर दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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                                                                                                                मंच संचालक    

                                                                                                              योगराज प्रभाकर

                                                                                                              (प्रधान संपादक)

                                                                                                         ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

मेरा इशारा "कुछ खार होना चाहिए" के संदर्भ में था मान्यवर  !

एक खार होना चाहिए
दो चार होना चाहिए
कुछ खार होना चाहिए
कई खार होना चाहिए
मुझे बालकोचित जानकारी के अनुसार इनमें से कोई गलत नहीं प्रतीत हो रहा. शेष आप बतायें.

एक खार होना चाहिये --  आदरणीय, इसी को मेरी ओर से मत.

कुछ बहुवचन को संसुस्त करता है, सो आदरणीय योगराजभाई का कहना उस ओर इशारा कर रहा है.

कि, फूल कई हैं तो  ’कुछ खार भी होने चाहिये थे’. ..

सादर

 

is bindu par naveen jee ka mat;

navin
mujhe jaanaa chaahiye,
logon ko jaanaa chaahiye,
mujhe ek pedaa chaahiye,
mujhe saare pede chaahiye :)

संजीव जी चाहिये में तो कुछ दिक्कत ही नहीं है

दिक्कत तो होना में है

आदमी अच्छे होना चाहिए.  --बहुवचन

सही वाक्य यह होगा आदमी अच्छे होने चाहिए

सादर

क्यों डरें आतंक से हम? सामना डटकर करें.
सर कटा दें पर सलामत यार होना चाहिए..

 

काश की ऐसी सोच भारत के हर नागरिक की हो जाये तो आतंक का अंत हो जाये ! मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये सर

//ज़हर को जब पी सके कंकर 'सलिल' शंकर बने.
त्याग को ही राग का शृंगार होना चाहिए..

लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..
//

वाह वाह आदरणीय 'सलिल' जी. . बहुत खूब रचना है आपकी.. मेरी हार्दिक बधाई आपको..

 

मूर्छा से जो निकाले काव्य है संजीवनी,
गद्य व शब्दार्थ का सत्कार होना चाहिये.

परम आदरणीय श्री सलिल जी, बहुत उम्दा मुक्तिका पढने को मिली...हर बार पहली पंक्ति अगली पंक्ति को विवश कर रही है सन्देश देने के लिए.. सबसे सामयिक शेर //आम लोगों को न नेता-दल-सियासत चाहिए. फ़र्ज़ पहले बाद में अधिकार होना चाहिए..// बहुत पसंद आया..हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये 

क्यों डरें आतंक से हम, सामना डट कर करें 

 

बहुत ही पते की बात कही है 

आचार्य सलिल जी आपने .... 

और 

'फ़र्ज़ पहले , बाद में अधिकार होना चाहिए..." 

कर्तव्य बोध की परिभाषा से साक्षात्कार करवाते हुए 

ये अमूल्य शब्द ..... और उत्तम शैली .... 

नमन कहता हूँ .

 

उत्साहवर्धन हेतु आभार.
वही है दानिश कि जो हिम्मत-समझ से काम ले.
'सलिल' लहरों का न पारावार होना चाहिए.

बहुत खूब सलिल जी, सारे शेर दमदार हैं। बधाई स्वीकार करें

 //लयरहित कविता हमेशा गद्य लगती है हमें.
गीत हो या ग़ज़ल रस की धार होना चाहिए..

क्यों डरें आतंक से हम? सामना डटकर करें.
सर कटा दें पर सलामत यार होना चाहिए..//

वाह वाह वाह आदरणीय आचार्य जी ! क्या खुल कर शेर कहे हैं आपने ! ग़ज़ल का हर एक शेर अपने आप में बेमिसाल है ! कृपया इस निमित्त हार्दिक बधाई स्वीकार करें !

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"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
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