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bhai sahab itna jwalant mudda uthane ke liye aapko koti koti dhanyavaad
भाई राजीवजी, कश्मीर की मौज़ूदा परिस्थितियों पर आपके तथ्यपरक तथा सम्यक विचार आज दुबारा पढ़ रहा हूँ. पहली दफ़ा इसे पढ़ कर मैंने टिप्पणी भी प्रेषित की थी लेकिन कुछ कारणों से वह टिप्पणी मुझ से ही डिलीट होगयी जिसका मुझे आज तक दुख है.
कश्मीर के पूरे परिदृश्य पर जिस तरीके से आपने बातें रखी हैं उससे आपकी विश्लेषण क्षमता की गहराई का पता चलता है. आपकी बातों से इत्तफ़ाक रखते हुए मैं इतना ही कहना चाहत हूँ कि तारीख या इतिहास को बहुत दिनों तक छुपा कर नहीं रखा जा सकता.
सन् सैंतालिस में कश्मीर के नरेश हरिसिंह के कश्मीर के आज़ाद देश हो जाने के भ्रम के टूटते ही भारत सरकार को जो दूरंदेशी दिखानी चाहिये थी वह लुंज-पुंज नेतृत्त्व के कारण हाशिये पर चली गयी. सरदार पटेल जैसा दृढ़ व्यक्ति भी नेहरुजी के भटकाव भरे कदम पर ठगा सा रह गया था. उस दशा का भरपूर दोहन किया था शेख अब्दुल्ला ने, जिसके प्रति नेहरूजी का कोमल भाव कभी छुपा हुआ नहीं था. यही शेख बाद में देशद्रोह के आरोप में जेल मेंडाल दिये गये थे. उनके पुत्र फ़ारुख या पौत्र उमर को कोई नई बात नहीं सीखनी. पिछले तीन दशकों में कश्मीर से जिस तरह से क्षेत्रीय लोगों को हकाल-हकाल कर निकाला गया है और पूरी डेमोग्राफी ही बदल डाली गयी है, उसके बाद आज लोकतंत्र की दुहाई देकर जनमत-संग्रह की बातें करना नहीं सुहाता. सर्वप्रथम, अपने ही देश में विस्थापन का असह्य दुख झेल रहे लोगों को कश्मीर में पुनर्स्थापित किया जाय फिर कोई सकारात्मक चर्चा की जाय. अन्यथा, कश्मीर पर कोई चर्चा थोथी ही साबित ही होगी.
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