For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रशान्त भूषण पर हालिया हमले ने उनके बयान को समूचे भारत में बहस का केन्द्र बना दिया है. प्रशान्त भूषण का बयान था कि काश्मीर मसले पर जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए. परन्तु तथाकथित हिन्दुत्ववादी काश्मीर मसले पर इतना उद्वेलित हो उठे हैं कि उन लोगों ने कभी मानवाधिकार और उनका सम्मान करना सीखा ही नहीं. जबरन अपनी बात मनवाने के आदी ये हिन्दुत्ववादी कश्मीर के लोग क्या चाहते है इस बात को सुनने के लिए ये तैयार हीं नहीं हैं. अपनी बात हथियारों और सैन्य बलों के बूटों तले मनवाना चाहते है. जाहिर है भारत सरकार आजादी के बाद से ही काश्मीर के लोगों के साथ यह रवैया अपना रही है. प्रति तीन व्यक्ति पर एक फौज की तैनाती के बाद भी कश्मीर से तथाकथित आतंकवादी को जड़ से समाप्त कर पाने में भारत सरकार सक्षम नहीं हो पा रही है. सरेआम आम कश्मीरियों को गोली से उड़ाया जा रहा है, उनकी इज्जतों को तार-तार किया जा रहा है. उनके मां बहनों के साथ सैन्य बल दुव्र्यवहार कर रही है इसके बाद भी आप कहते हैं कि काश्मीर हमारा है. काश्मीर पूरे भारतवासियों के होने के पहले स्वयं वहां के निवासी कश्मीरियों का है. हमें कश्मीरवासियों का सम्मान करना सीखना होगा. उनसे बातें करनी होगी और यह तरीका कहीं न कहीं जनमत संग्रह ही है. वगैर काश्मीरियों का सम्मान किये आप उन्हें खुद से प्रेम करना नहीं सीखा सकते. अगर आप यह चाहते हैं कि काश्मीर भारत के अभिन्न अंग हो तो यह उनके मानवाधिकारों का सम्मान और उनके साथ प्रेम दर्शा कर ही यह कर सकते हैं. परन्तु प्रशान्त भूषण पर हालिया हमले ने यह साफ कर दिया है कि तथाकथित हिन्दुत्ववादी काश्मीरियों का सम्मान तथा उनके साथ प्रेम को कतई जायज नहीं मानते, उन्हें अपनी बात कहने के योग्य नहीं मानते और उनके साथ बल प्रयोग करना ही अपना धर्म मानते हैं. ऐसे में आप कभी भी काश्मीर में शांति बहाल नहीं कर सकते. हरगिज नहीं. चाहे आप काश्मीर को फौजियों से ही क्यों न पाट डाले.

Views: 715

Reply to This

Replies to This Discussion

स्पष्ट कर दूँ, मैं प्रशांत भूषण पर हुए हमले की तरह की किसी बेवकूफ़ाना हरकत का हामी नहीं. किन्तु,  इस घटना पर प्रस्तुत हुए आपके निहायत एकांगी लेख ने मुझे बहुत ही हतोत्साहित किया है.  बग़ैर संतुलन के सामयिक परिस्थितियों या घटनाओं पर लिखे किसी लेख से जानकारी होना बाद में अव्वल तो दुख होता है. 

 

आप निम्नलिखित प्रश्नों पर ग़ौर करें, फिर अपने लेख पर ध्यान दें. यदि आप कुछ कह पाये तो मैं उपकृत होऊँगा. (भारतीय राज्य का नाम वस्तुतः काश्मीर नहीं, कश्मीर है, जिसे वहाँ की भाषा में कशीर भी कहते हैं) 

१.  क्या कश्मीर में तब जनमत संग्रह की आवश्यकता थी जब सन् सैंतालिस में राजा हरिसिंह ने उसे स्वायत्त घोषित कर दिया था? उसी वर्ष पाकिस्तान के आक्रमण के दौरान औकात समझ में आ जाने पर भारत से बचाने की बिना शर्त गुहार की थी ? उनके भारत से हुए एग्रीमेंट में उनकी ओर से कहा गया था कि वे अपने पूरे ’देश’ का भारत में विलय कर रहे हैं.  और कहना न होगा उस समय की कश्मीरी जनता ने खुशियाँ मनायी थी.  इशारा कर दूँ कि ऐसा ही एक और विलय सौराष्ट्र का हुआ था जहाँ जनता अपने ’देश’ का भारत में पूर्ण विलय चाहती थी लेकिन वहाँ के नवाब हैदराबाद के निज़ाम की तरह अलग ’देश’ भी नहीं बल्कि पाकिस्तान में विलय चाह रहे थे.  सौराष्ट्र की जनता ने बग़ावत कर दिया था और नवाब को जनता के सामने झुकना पड़ा था.

२.  कश्मीर में सन् अड़तालिस से लागू सरकारी ढुलमुल नीतियों के कारण स्थायी निवासियों को ’भगाया’ जाने लगा. जो कि सत्तर और अस्सी के दशक में अपने चरम पर जा पहुँचा. आज पूरी कश्मीर घाटी में मूल निवासी का प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से दस प्रतिशत तक नहीं है. प्रतिस्थापित निवासियों और आततायियों से प्रभावित जनता से निर्पेक्ष जनमत की आशा क्या भारत के लिये आत्म-संहारक नहीं होगा? जब किसी राष्ट्रीय हिस्से की पूरी की पूरी डेमोग्राफी ही बदल चुकी हो वहाँ किस जनमत-संग्रह की बात हो सकती है?

३.  जहाँ अल्पसंख्यकों की बेहतरी के नाम पर पिछले साठ सालों से लगातार लापरवाह राजनैतिक और आर्थिक विधियाँ अपनायी जा रही हों, और, जहाँ ’राष्ट्रीय संपत्ति-लुटेरों’ की नयी जमात तैयार हो चुकी हो, वहाँ किस निर्पेक्षता की आशा हो रही है?

 

जनता की आशाओं के साथ अवश्य खिलवाड़ नहीं होना चाहिये. क्योंकि ’जनता’ राष्ट्र की अवधारणा के महत्त्वपूर्ण चार अवयवों में से प्रमुख अवयव होती हैलेकिन किस ’जनता’ की बात हो रही है?  षडयंत्र के तहत घुसपैठियों की?  

आँखें मूँद कर अंधा कैसे बनते हैं इसकी सर्वश्रेष्ठ मिसाल देखना हो तो भारत की तथाकथित केन्द्रीय सरकार के आजतक के कुल प्रयासों पर दृष्टि डाल ली जाय.

 

कश्मीर की मूल जनता तो अपने देश में ही खानाबदोश की तरह भटक रही है और आतताइयों और भारतीय संसद पर के हमलावरों के पोषक पैदा हो गये हैं.  यह अवश्य मानता हूँ कि इण्डियन-आर्मी की तरफ़ से सबकुछ सात्विक नहीं हो रहा है. लेकिन आर्मीमेन से सात्विकता कोई सोचे भी क्यों? वे तो राजसिक और तामसिक प्रवृति की उग्र जमात होते ही हैं.  तभी तो उनके हाथ में हथियार दिया जाता है. और उनका मुख्य मक़सद ही मनोवैज्ञानिक हालात पैदा कर शारीरिक दबाव बनाना होता है.  

सामयिक घटनाओं पर लिखना आसान होता है, परन्तु ऐसा तथ्यपरक लिखना कि वो लिखा समीचीन भी हो, पारिस्थिक अध्ययन के अलावे ऐतिहासिक अध्ययन की भी मांग करता है. मैं आपको अनावश्यक रूप से दुखी नहीं करना चाहता. किन्तु, संतुलित लेख लिखने की तैयारी बन सके, यही आशय है.  व्यवस्था के खिलाफ़ होने और लिखने का अर्थ यह कत्तई नहीं कि हम एकांगी हो कर भविष्य की नज़रों में गुनाहग़ार होते चले जायँ.

रोहित शर्मा जी का प्रतिउत्तर जो गलत जगह पोस्ट हो गया था

सर,आपकी प्रतिक्रियाऐं काफी अच्छी है. परन्तु इस विषय की त्रासदी यह है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर भारत सरकार काफी जद्दोजहद कर रही है. हजारों लोगों ने अपने खून बहाये हैं. यह विषय कहीं न कहीं हम भारतवासियों को सालती भी है, और कश्मीर के अलग होने की बात सुनकर ही मायूस हो उठते हैं या हिंसक हो उठते हैं. फिलवक्त मेरे पास कुछ दस्वावेज उपलब्ध नहीं हो पाये हैं. दस्तावेज उपलब्ध होते ही इस पर तथ्य को भी रखूंगा. परन्तु मेरा कहना यह नहीं है कि कश्मीर को जनमतसंग्रह के माध्यम से अलग देश बना दिया जाय, वरन् मेरा यह कहना है कि किसी को भी आप अपने प्रेम और समुचित सम्मान के माध्यम से ही खुद को जोड़ सकते हैं, हथियार के बल बूते नहीं, जो कश्मीर के मामले में, पूर्वोत्तर राज्यों के मामले में या फिर नक्सलवादियों का मामले में भारत सरकार कर रही है. हम कश्मीर ही क्यों अपने आस-पास ही क्यों न देख लें सरकार की नीतियों का परिणाम किस रूप में विभत्स होता जा रहा है. कश्मीर के मामले में भी यह सच है. चाहे सुनने में यह कितना ही बुरा क्यों न लगे पर यह सच्चाई है कि कश्मीर सहित अन्य मामले भारत सरकार की अपनी नीतियों की विफलताएं हैं. आम जनता अपनी बुनियादी जरूरतों (रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा, इंसाफ आदि जैसे) के लिए संघर्ष करेगी ही, इसमें सरकार की विफलताएं आन्दोलन में जन्म देगी, चाहे हम कितने भी बल प्रयोग द्वारा उसे क्यों न दबाना चाहे. सर, आपकी प्रतिक्रिएं जानकर मैं काफी खुश हूँ. खासकर बात रखने की आपकी शानदार शैली के. मैं आगे आपकी शैली को अपनाने की जरूर कोशिश करूंगा. खासकर अपने गहन अध्ययन के मामले में. धन्यवाद सर.

 

पाकिस्तानी घुसपैठियों  नें आज कश्मीर को मिनी पाकिस्तान बना दिया है वि इसे छोटा पकिस्तान कहते भी हैं! कुछ दिनों पूर्व मैंने  कश्मीर के एक पुल का चित्र देखा था जिस पर किसी व्यक्ति नें लिखा हुआ था "छोटा पकिस्तान" "Indian dogs are not allowed " . ऐसे परिवेश में हम किस जनमत संग्रह की बात कर रहे हैं ? कहीं इसके पीछे कोई और तो नहीं ? बाकी रही बात कश्मीरियों की समस्याओं की तो मैंने बी० एस० ऍफ़० के कुछ जवानों  के संपर्क में रहकर यह अवश्य जाना है कि वहाँ के बहुतेरे निवासी पाकिस्तानी घुसपैठियों की मदद तो करते ही हैं साथ साथ मौका मिलने पर भारतीय जवानों पर हमला भी कर देते हैं जबकि वही भारतीय सेना प्रत्येक विषम स्थिति में उनकी मदद करती है ! यदि उनकी समस्याएं हैं तो वे सैन्य अधिकारियों को भी बता सकते हैं !

प्रशांत भूषण जी पर आक्रमण की निंदा  बहुत ज़रूरी है ....प्रशांत भूषण जी एक बुद्धिजीवी है ,उनकी काबिलियत पर किसी को किसी तरह की शंका नहीं है , अगर वह कह रहे हैं कि कश्मीरियों को जन मत संग्रह का अधिकार मिलना चाहिए और वो भी बिना किसी दबाव या भय के.....तो यह उनका अतिशय उदार एवं मानवता वादी विचार है...लेकिन यदि पूरा कश्मीर पाकिस्तान को खैरात में देने देने कि उदारता ही दिखाना है तो बेहतर है कि कश्मीर के उन पूर्व नागरिको को जो पाकिस्तान में बस चुके है और पाकिस्तानी सोच में ढल चुके हैं को कश्मीर विधान सभा के प्रस्ताव के  अनुसार कश्मीर में बस तो जाने दें ...भारतीयता से प्रेम करने वाले हिंदुओं या कश्मीरी पंडितों को तो वहाँ से बेईज्ज़त करके निकाला ही जा चुका है..और उनके पुनर्वास की चिंता प्रशांत भूषण जी एवं रोहित शर्मा जी सहित किसी तथाकथित  धर्मनिरपेक्षता वादी बुद्धि जीवी को है नहीं ....अलगाव परस्तों के हित चिंतन में उनका दुबला होना स्वाभाविक ही है...रोहित जी राष्ट्रवादियों को कोसने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 146

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !! ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियालिसवाँ आयोजन है.…See More
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-152

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dr. Ashok Goyal's blog post ग़ज़ल :-
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
AMAN SINHA posted a blog post

पुकार

कैसी ये पुकार है? कैसा ये अंधकार है मन के भाव से दबा हुआ क्यों कर रहा गुहार है? क्यों है तू फंसा…See More
Saturday
Nisha updated their profile
Friday
Nisha shared Admin's discussion on Facebook
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। दोहे के बारे में सुझाव…"
Thursday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"सार्थक दोहे हुए, भाई मुसाफिर साहब ! हाँ, चौथे दोहे तीसरे चरण में, संशोधन अपेक्षित है, 'उसके…"
Thursday
Chetan Prakash posted a blog post

कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाः

दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है…See More
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।फूँका उन के  कान  में, तम ने कैसा मंत्र।१।*जीवनभर  बैठे  रहे,…See More
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर उपस्थितिभाव.पक्ष की कमी बताते हुए मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक…"
Wednesday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service