For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आकलन:अन्ना आन्दोलन भारतीय लोकतंत्र की समस्या और समाधान: --- संजीव 'सलिल'

आकलन:अन्ना आन्दोलन

 

 

भारतीय लोकतंत्र की समस्या और समाधान:

 

-- संजीव 'सलिल'

*

अब जब अन्ना का आन्दोलन थम गया है, उनके प्राणों पर से संकट टल गया है यह समय समस्या को सही-सही पहचानने और उसका निदान खोजने का है.

 

सोचिये हमारा लक्ष्य जनतंत्र, प्रजातंत्र या लोकतंत्र था किन्तु हम सत्तातंत्र, दलतंत्र और प्रशासन तंत्र में उलझकर मूल लक्ष्य से दूर नहीं हो गये हैं क्या? यदि हाँ तो समस्या का निदान आमूल-चूल परिवर्तन ही है. कैंसर का उपचार घाव पर पट्टी लपेटने से नहीं होगा.

 

मेरा नम्र निवेदन है कि अन्ना भ्रष्टाचार की पहचान और निदान दोनों गलत दिशा में कर रहे हैं. देश की दुर्दशा के जिम्मेदार और सुख-सुविधा-अधिकारों के भोक्ता आई.ए.एस., आई.पी.एस. ही अन्ना के साथ हैं. न्यायपालिका भी सुख-सुविधा और अधिकारों के व्यामोह में राह भटक रही है. वकील न्याय दिलाने का माध्यम नहीं दलाल की भूमिका में है. अधिकारों का केन्द्रीकरण इन्हीं में है. नेता तो बदलता है किन्तु प्रशासनिक अधिकारी सेवाकाल में ही नहीं, सेवा निवृत्ति पर्यंत ऐश करता है.

 

सबसे पहला कदम इन अधिकारियों और सांसदों के वेतन, भत्ते, सुविधाएँ और अधिकार कम करना हो तभी राहत होगी.

 

जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता के तत्काल बाद की तरह जेब से धन खर्च कर राजनीति  करना पड़े तो सिर्फ सही लोग शेष रहेंगे.

 

चुनाव दलगत न हों तो चंदा देने की जरूरत ही न होगी. कोई उम्मीदवार ही न हो, न कोई दल हो. ऐसी स्थिति में चुनाव प्रचार या प्रलोभन की जरूरत न होगी. अधिकृत मतपत्र केवल कोरा कागज़ हो जिस पर मतदाता अपनी पसंद के व्यक्ति का नाम लिख दे और मतपेटी में डाल दे. उम्मीदवार, दल, प्रचार न होने से मतदान केन्द्रों पर लूटपाट न होगी. कोई अपराधी चुनाव न लड़ सकेगा. कौन मतदाता किस का नाम लिखेगा कोई जन नहीं सकेगा. हो सकता है हजारों व्यक्तियों के नाम आयें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. सब मतपत्रों की गणना कर सर्वाधिक मत पानेवाले को विजेता घोषित किया जाए. इससे चुनाव खर्च नगण्य होगा. कोई प्रचार नहीं होगा, न धनवान मतदान को प्रभावित कर सकेंगे.

 

चुने गये जन प्रतिनिधियों के जीवन काल का विवरण सभी प्रतिनिधियों को दिया जाए, वे इसी प्रकार अपने बीच में से मंत्री चुन लें. सदन में न सत्ता पक्ष होगा न विपक्ष, इनके स्थान पर कार्य कार्यकारी पक्ष और समर्थक पक्ष होंगे जो दलीय सिद्धांतों के स्थान पर राष्ट्रीय और मानवीय हित को ध्यान में रखकर नीति बनायेंगे और क्रियान्वित कराएँगे.

 

इसके लिये संविधान में संशोधन करना होगा. यह सब समस्याओं को मिटा देगा. हमारी असली समस्या दलतंत्र  है जिसके कारण विपक्ष सत्ता पक्ष की सही नीति का भी विरोध करता है और सत्ता पक्ष विपक्ष की सही बात को भी नहीं मानता.

 

भारत के संविधान में अल्प अवधि में दुनिया के किसी भी देश और संविधान की तुलना में सर्वाधिक संशोधन हो चुके हैं, तो एक और संशिधन करने में कोई कठिनाई नहीं है. नेता इसका विरोध करेंगे क्योकि उनके विशेषाधिकार समाप्त हो जायेंगे किन्तु जनमत का दबाब उन्हें स्वीकारने पर बाध्य कर सकता है. 

 

ऐसी जन-सरकार बनने पर कानूनों को कम करने की शुरुआत हो. हमारी मूल समस्या कानून न होना नहीं कानून न मानना है. राजनीति शास्त्र में 'लेसीज़ फेयर' सिद्धांत के अनुसार सर्वोत्तम सरकार न्यूनतम शासन करती है क्योंकि लोग आत्मानुशासित होते हैं. भारत में इतने कानून हैं कि कोई नहीं जनता, हर पाल आप किसी न किसी कानून का जने-अनजाने उल्लंघन कर रहे होते हैं. इससे कानून के अवहेलना की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गयी है. इसका निदान केवल अत्यावश्यक कानून रखना, लोगों को आत्म विवेक के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता देना तथा क्षतिपूर्ति अधिनियम (law of tort) को लागू करना है.

 

क्या अन्ना और अन्य नेता / विचारक इस पर विचार करेंगे?????????????...

 

Acharya Sanjiv Salil

 

**********

 

 

Views: 2068

Reply to This

Replies to This Discussion

आजकल जिस तरह से OBO  पर चर्चायें हो रही हैं, मुझे नहीं लगता के इनसे कोई उद्देश्य पूर्ण होने वाला है..मुझ जैसा नया और बुद्धिहीन सदस्य जब आप गुणीजनों की बात चर्चा परिचर्चा देखता हूँ तो मौन रह जाता है...आत्म मुग्धता, आत्म आकलन, आरोप प्रत्यारोप.क्या येही होता है परिचर्चाओं का उद्देश्य ..आज ADMIN  साहब के हस्तक्षेप के बाद कुछ बोलने की हिम्मत कर पा रहा हूँ..मेरा राज्य, मेरी भाषा, मेरा धर्म.... क्या कवी हृदय होते हुए भी कम अज कम OBO के सदस्य इसके ऊपर नहीं सोच सकते...

इमरानभाई, आप अपनी उक्तियों को अन्योक्तियों के वर्ग में न रखें. ध्यान रहे, आप आचार्यवर की चर्चा पर अपना मत दे रहे हैं.  जो कहें, जिससे कहें, इंगित सदा-सदा स्पष्ट रहे.

आपकी नम्रता ने मुझे सदा ही मुग्ध किया है और वह मेरे व्यक्तिगत गर्व का कारण रही है. 

मेरे आशय को समझियेगा.    .. धन्यवाद.

आदरणीय आचार्यवर,

सर्वप्रथम, स्पष्ट करदूँ, माननीय,  कि मैं इस समय लम्बे दौरे पर हूँ और आवश्यक समय नहीं दे पा रहा हूँ. आपके लिखे को हमने समय पर ही पढ़ लिया था. चूँकि, चर्चा विषद स्पष्टिकरण तथा जागरुक संलग्नता की मांग करती है अतः परिचर्चा में भाग नहीं लिया है.

 

आज, अभी, चर्चा के दौरान  मुझे जो कुछ भी पढ़ने का संयोग मिला है उसकी अंतर्धारा ने मुझे इस चर्चा के संदर्भ में आपके सानिध्य में आने को बाध्य किया है.

माननीय, आपके विचारानुसार दल के अनुसार तथा दल की प्रक्रिया अपने देश की अधिकंश समस्याओं की जड़ है. सही हो सकता है या यों कहें कि यह बहुत कुछ सही भी है.  इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि आज देश के प्रति समग्रता में जो तीव्र-भावना होनी चाहिये थी वह जन-मानस के अन्दर आरोपित और जमीन से कटे नेताओं की तमाम कारगुजारियों के कारण लगातार डिफ्यूज होती चली जा रही है.  उस पर तुर्रा यह कि राष्ट्र की बात करना अथवा सांस्कृतिक-सांस्करिक विन्दुओं पर अपने विचार रखना मत-विशेष के पोषक होने का परिचायक मान लिया जाने लगा है.

 

जिस विन्दु के अंतरगत संविधान-संशोधन की बात आपने की है. वह कितना मान्य है इसपर  मैं इतना ही कह सकता हूँ कि इसी कारण स्वयं गाँधीजी  ने स्वतंत्रता के तुरत बाद कांग्रेस और राजनैतिक अन्यान्य पार्टियों के एक सिरे से भंग कर देने की बात की थी. जिसे उस समय के सभी कद्दावर नेताओं (कांग्रेसी पढ़ें) द्वारा अमान्य कर दिया गया था.

 

कुछ बातों पर मैं आगे समय मिलने पर कहूँगा.  आपके प्रस्तुत लिखे से मैं कुछ और समृद्ध हुआ हूँ, आदरणीय.

किन्तु कुछ विन्दुओं पर मेरी राय आपके मत से अवश्य-अवश्य ही भिन्न है.  उन विन्दुओं पर आपकी सादर दृष्टि चाहूँगा. कृपया मुझे निर्देशित करेंगे. या मेरे विचार उचित लगें तो कृपया अनुमोदित करेंगे.

 

सादर.

 

आदरणीय सौरभ जी,
वन्दे-मातरम.
आपके संतुलित और सारगर्भित चिंतन हेतु आभार.
बापू ही नहीं एक समय अटल जी ने भी राष्ट्रीय सरकार की बात की थी. हर काल में पक्ष और विपक्ष दोनों में ईमानदार और योग्य व्यक्तित्व रहे हैं. यदि वे सब किसी एक सरकार का अंग होते तो क्या श्रेष्ठ सरकार न बनती? अस्तु...

मुड़े-मुंडे मतिर्भिन्ना... एकं सत्यम विप्र बहुधा वदन्ति... आप जैसे सुलझे चिन्तक और विचारक की हर बात सारगर्भित होती है. धन्यवाद. 

सादर वन्दे !

आपने मेरी पाठकधर्मिता को मान दिया है आचार्यवर. हम प्रस्तुत मंच के माध्यम से कई विन्दुओं पर चर्चा करेंगे. अभी दौरे पर होने के कारण थोड़ा व्यस्त हूँ.

सादर.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
32 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
37 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
39 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
43 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service