For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिवेदन साहित्य-संध्या ओबीओ लखनऊ-चैप्टर, फरवरी 2021 ई०  प्रस्तोता :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

                 (संचार माध्यम से युगपत साहित्यिक गतिविधि)

दिनांक – 21 फरवरी 2021 ई० (रविवार)   संचालक – सुश्री आभा खरे   

समय – 3 बजे अपराह्न                 अध्यक्ष – श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव ’विकल’                                                    माँ वीणापाणि के सम्मान में आज सुश्री आभा खरे जी ने श्री आनन्द पाठक द्वारा रचित वाणी-वन्दना प्रस्तुत की और इसी के साथ साहित्य संध्या का समारंभ हुआ I इसके प्रथम चरण में संचालिका ने कवयित्री सुश्री निर्मला शुक्ल की कविता- ‘फूल बनो‘ पर परिचर्चा आरंभ की I इसमें सभी उपस्थित सदस्यों ने प्रतिभाग किया और जो उपस्थित नहीं थे, उनमें से कुछ लोगों ने वाया वाट्स ऐप अपनी प्रतिक्रिया  उपलब्ध कराया I परिचर्चा का प्रतिवेदन अलग से बनाया गया है I

कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्यगोष्ठी के अंतर्गत पहला आह्वान सुश्री कौशांबरी जी के लिए हुआ I उनकी कविता में एक शाम जी लेने का भाव है I जैसे-

भाव सूने मन विकल है

प्राण व्याकुल पुनः जी ले I

विगत पथ पर चल पड़े मुड़

फिर सुरों को मधुर लय दे II

बाँध कर बीते दिनों को

मन चाहा संसार रच ले I

आओ मिल ये खेल खेलें

संग मिल एक शाम जी लें ।I

सुश्री नमिता सुन्दर जी ने ‘मिजाज’ नामक अपनी कविता में रिश्तों पर प्रकाश डालने हेतु सड़कों और गलियों का उपयोग रूपक की भाँति किया i जैसे -

गलियाँ

छज्जों की कानाफूसी, झरोखों का प्यार

चौकन्नी निगाहों की ताका-झाँकी

धर-पकड़, चीख-पुकार तेज तकरार

सब कुछ खदबदाता है

गली भीतर बटलोई में अदहन सरीखा I

डॉ. अशोक शर्मा ने अपनी कविता में मुस्कराने का निहितार्थ रूपायित किया- 

कम-कम से आज तो

मुस्कराना है दिन भर

और खड़ा करना है

सपनों का एक संसार

पर भूल जाता हूँ l

जाने कब सीख पाऊँगा मैं ,

जबकि जानता हूँ

मुस्कराना

जीवन में मुस्कराहटें भर देता है

श्री आलोक रावत ’आहत लखनवी’ ने मनुष्य के सात्विक और तामस भावों को उदाहरण सहित अपने गीत में उकेरा-

ईर्ष्या का भाव जब कैकेयी के उर में जगा था,

राम का वनवास तब पाषाण-हृद होकर चुना था,

छवि समर्पण, त्याग की ऐसी कहीं देखी नहीं है,

जो भरत, लक्ष्मण के भावों में सतत रहती रही है I

सुश्री निर्मला जी ने संबंधों को लेकर मन की विभिन्न स्थितियों को अपनी कविता में ढाला-

मन से मन की दूरी

तो आज भी उतनी ही है,

है कोई ऐसा विज्ञान

जो मिटा दे

दिलों के फासले

जगा सके भाव मन में

प्यार का I  

डॉ. शरदिंदु मुकर्जी ने ‘चातक’ नामक अपनी कविता में कवि का रूपक उतार कर उसकी मन:स्थितियों में गहरी पैठ बनाई -

मैं,

शब्द-शब्द तरसता हूँ

चातक बनकर-

अधूरी रह जाती हैं रचनाएँ,

प्यासी रह जाती है चेतना;

लेकिन क्यों!

पृथ्वी के गर्भ से

व्योम के असीम तक

व्याप्त है तुम्हारी कविता-

शब्द, सुर और रस का

अनन्त भंडार लिए;

मैं फिर भी रह जाता हूँ तृषित

सुश्री कुंती मुकर्जी ने अपनी कविता में बसंत के आगमन पर कल्पनाओं के मनोरम पट खोले -

अमलतास

बारी-बारी से मेरी बातों में रंग भरता रहता.

रातरानी मेरी बातों की खुशबू लेकर

चाँदनी से कहती-

"तुम भी आओ..

कुछ गुफ़्तगू कर लो..

हम बाग-बाग  हुए

डॉ. अर्चना प्रकाश ने ‘’मधुमास’ नामक कविता में बसंत के प्रकृति परिवर्तन पर अपनी शब्द-दृष्टि कुछ इस प्रकार फेरी - 

लो आ गया मधुमास !

शीत की गागर रीत गयी, धुंध कोहरे की बात गयी ।

नीलाम्बर में भरी उजास, कण-कण छाया उल्लास । 

लो आ गया मधुमास !

श्री मृगांक श्रीवास्तव ने हास्य की छवि से हटकर स्वयं को संवेदना और व्यंग्य के रंग में उतारा -

धरना प्रदर्शन जारी है

अब उन्हें भोले-भाले गाँव वाले या किसान

कहना बेईमानी होगी

एजेंडा चलाया जा रहा है

देशद्रोहियों, दुश्मन देशों और

अंतर्राष्ट्रीय गिरोहों संग

खूब काला धन लगाकर

जनजीवन ठप कर दिया है I

डॉ. अंजना मुखोपाध्याय ने संवाद कविता में स्त्री के दर्द को एक बार फिर से शब्दों से नये स्वर दिए -

रूढ़िवादियों ने यूँ तरसाया।

नारी हो न नर से करो मुकाबला

'अधिकार' 'बराबरी' बढ़ाये फासला।

शिक्षा, पेशा, आज़ादी के हक में भागीदार

हद की रेखा न करो अनदेखा

मिलती रही कि हम रहे सौजन्य साझेदार।

श्री भूपेन्द्र सिंह ’होश’ ने अपनी ग़ज़ल में कुछ बहुत ही माकूल शेर कहे I एक बानगी यहाँ प्रस्तुत है -

अगर हमने मुहब्बत की तो हरदम डूब कर है की

कभी सोचा नहीं ये बेवफ़ा या बावफ़ा क्या है.

 अगरचे "होश" में हूँ पर अजब इक बेख़ुदी सी है,     

मैं आख़िर किस से ये पूछूँ ख़ुदा तेरा पता क्या है.

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने देश के सैनिको की भावनाओं को प्रकट करते हए देशभक्ति की संवेदना को एक नया आयाम दिया-

समर-क्षेत्र में युद्ध-वाद्य जब बजते हैं 

सारा वपु-अभिमान वहीं मिट जाता है I

अब मरना है और मार कर मरना है

अन्तस में यह भाव शेष रह जाता है II

अगर बचेंगे तो फिर माँ के माथे पर, जय का तिलक लगा जन-गण-मन गाएंगे I

दृप्त सिपाही हम नगण्य से भारत के हम सीमा पर विजय-केतु फहराएंगे II

संचालिका सुश्री आभा खरे ने युग परिवर्तन में अन्दर तक धँसे जीव के अवसाद को प्रकट करने वाली कविता प्रस्तुत की I यथा-

दूर-दूर तक नीम न पीपल, छाया वीराना

भूले हम लय-ताल ख़ुशी की, बे-सुर है गाना

सपनों जैसे अब पंछी के

मधुगान हुए हैं

फ्लैटों में गुम छत ,आँगन औ'

दालान हुए हैं

अवसादों की कड़ी धूप में मुरझाया बाना

दूर-दूर तक .....

अंत में अध्यक्ष श्री अजय कुमार श्रीवास्तव ‘विकल’ ने ‘चाँद’ शीर्षक से अपना बड़ा ही मनोहारी गीत प्रस्तुत किया I उदाहरण निम्नवत है - 

तब वही संताप व्याकुल अश्रु कण नभ ने गिराए l

थिर गए धूमिल हृदय पर सोमरस शशि ने पिलाये ll

बह गयी उन्माद में उर्वी सुनाती थी विभा को रागिनी l

प्रात प्राची से अरुण लेता रहा फैली धरा की चाँदनी ll

     साँझ रस में डूब कर तब ले लिया प्रतिकार है l

     कालिमा काजल विभा-तन श्वेत रसमय धार है II

आज की साहित्य संध्या का यह आख़िरी दीप था i इसके बाद बस विश्राम – विश्राम ----- आज बासंती रंग कविता में बहुत निखरा पर मैंने कुसुमायुध को बहुत-बहुत उदास देखा I शायद-----

कामदेव का पुष्प बाण अब खंडित होगा I

शासन कोई नया यहाँ पर मंडित होगा II

विभा रात भर ही अपना, नर्तन है करती 

और प्रभा का भी है बस प्रभात का फेरा I

नहीं  एक को मिलता है दिनकर का दर्शन ]

और दूसरे को भी कब हिमकर ने टेरा ?

नये सिरे से प्रकृति-कथा बाँची जायेगी,

अहो व्यास आसन पर अब नव पंडित होगा I

कामदेव का पुष्प बाण      -------------------

बरसाकर पुरुषार्थ आग, ढलता है सूरज

और चाँदनी-राग बिछा शशि ओझल होता I

मुट्ठी में अमरत्व बाँध कब कोई आया

चिर होता जागरण-बोध कोई क्यों सोता ?

यहाँ काल ने दुराधर्ष कितने है मारे?

शासन कौन यहाँ अविचल अविखंडित होगा

कामदेव का पुष्प बाण      ----------------

अधिक प्रणय के गीत न गा मानस के मधुकर 

नहीं  रहेंगी बहुत दिनों तक सुमनावलियाँ I

यह परिमल मधुमय पराग दो दिन भर ही है

नहीं  चटक पाएंगी कल उपवन में कलियाँ II

प्रेम यहाँ अब मात्र रोग पर्याय बनेगा 

निरपराध भी यहाँ सखे अब दंडित होगा

कामदेव का पुष्प बाण      ----------------- (सद्य रचित )

 (मौलिक एवं  अप्रकाशित )

Views: 340

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
10 hours ago
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Saturday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Friday
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Thursday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Thursday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Oct 30

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Oct 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service