For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 169 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब 'क़मर' जलालवी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को'
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
1212 1122 1212 22/112

मुज्तस मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ़ मुसक्किन

रदीफ़ -- को

क़ाफ़िया : (आने की तुक) फ़साने, आशियाने, बनाने, दिखाने, ख़ाने आदि....

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 26 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 जुलाई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1928

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

गिराके बर्क़ मुझे ख़ाक में मिलाने को 

उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को 

मेरे लहू की हरिक बूंद में है इक ख़ुशबू 

मचल रही हैं जिसे तितलियाँ चुराने को 

शकिस्ता दिल से कोई दिल्लगी भी करता है 

ये दिल मेरा ही मिला तुमको दिल लगाने को 

इसे भी अम्न की ख़ातिर हटाया जाएगा 

निशान-ज़द है मेरा आशियाँ गिराने को 

सियासतों के मकड़जाल में फँसा है समाज

लटक रहे हैं सभी मह्ज़ छटपटाने को

 

छुपाके ज़ात न बेचे ख़ुराक अब कोई 

ये हुक्म जारी हुआ है दुकाँ चलाने को

हसद की आग में सिकती हैं रोटियाँ उन की 

कि जिनके चूल्हे में ईंधन नहीं जलाने को 

बिछे थे कल जो तने हैं वो रू-ब-रू मेरे 

'ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को' 

दुहाई देने लगे हैं सदन में रुक्न-ए-रकीन 

'अमीर' सफ़ में खड़े हैं पनाह पाने को 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल से मुशायरे का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब! 
अच्छी ग़ज़ल से मुशाइरे का आग़ाज़ करने के लिए बधाई स्वीकार करें।

गिराके बर्क़ मुझे ख़ाक में मिलाने को
उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को

दोनों मिसरों में बर्क़/बिजली गिराने का भाव रिपीट हो रहा है

जो मतले को प्रभावशाली नहीं होने दे रहा।
सुझाव -
वजूद आज  मिरा ख़ाक में  मिलाने को
उमड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को


शकिस्ता दिल से कोई दिल्लगी भी करता है
ये दिल मेरा ही मिला तुमको दिल लगाने को
( शकिस्ता या शिकस्ता ? )

छुपाके ज़ात न बेचे ख़ुराक अब कोई
ये हुक्म जारी हुआ है दुकाँ चलाने को
( सहीह शब्द है ख़ूराक 221 )

हसद की आग में सिकती हैं रोटियाँ उन की
कि जिनके  चूल्हे में  ईंधन  नहीं जलाने को
अच्छा शे'र , वाह

बिछे/झुके थे कल जो तने हैं वो रू-ब-रू मेरे
'ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को'

               // शुभकामनाएँ //

आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, हौसला अफ़ज़ाई और इस्लाह का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

मतले पर आपसे सहमत हूँ आपने बहतर सुझाव दिया, मैं मशकूर हूँ, मैंने इसे यूँ किया है देखिएगा -

'मेरा वजूद अभी ख़ाक में मिलाने को

उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को'

( शकिस्ता या शिकस्ता ? )..... जी शिकस्ता।

छुपाके ज़ात न बेचे ख़ूराक अब कोई... क्या यहाँ मात्रा गिराई जा सकती है? 

ये हुक्म जारी हुआ है दुकाँ चलाने को

या मिसरा यूँ किया जाए - 'छुपा के ज़ात न बेचे ग़िज़ा यहाँ कोई'

' बिछे थे... (यहाँ उन अपनों की बात हो रही है जो कल तक दण्डवत थे) 

 

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी,

//मेरा वजूद अभी ख़ाक में मिलाने को

उमँड़ रही है घटा बिजलियाँ गिराने को//

जी ये भी ठीक है,  बस सानी या उला में से

किसी एक में बिजली  गिराने वाले भाव को हटाना था।

जी ख़ूराक में  ख़ू का मात्रा पतन  संभव नहीं क्योंकि मात्रा पतन 

शब्द के दाहिनी तरफ से होता है। बाईं तरफ से नहीं।

कुछ शब्द जैसे दीवाना 222 / दिवाना 122 दोनों तरह से भाषा में मान्य हैं।

पर यह स्पष्ट करना चाहूँगा की यह मात्रा पतन का नहीं अपितु भाषा का विषय है।

आशा करता हूँ संशय दूर हुआ होगा। शुभकामनाएँ ।

//मात्रा पतन  शब्द के दाहिनी तरफ से होता है। बाईं तरफ से नहीं।// मात्रा पतन का मूल नियम है. आभार 

"मात्रा पतन शब्द के दाहिनी तरफ से होता है। बाईं तरफ से नहीं।" 

इस नुक़्ते को बताने के लिये हार्दिक आभार आदरणीय।

//कुछ शब्द जैसे दीवाना 222 / दिवाना 122 दोनों तरह से भाषा में मान्य हैं, पर यह स्पष्ट करना चाहूँगा की यह मात्रा पतन का नहीं अपितु भाषा का विषय है।//

आदरणीय मेरे विचार से वर्तमान में हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं की आम बोलचाल में 'दिवाना' की तरह 'ख़ुराक' 'ख़ूराक' से कहीं ज़ियादा प्रचलित है।... अगर 'दिवाना' स्वीकार्य है तो फिर 'ख़ुराक' क्यों नहीं ? 

 

 

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, अभ्यास के क्रम में किये गए प्रयासों से सभी लाभान्वित होते हैं. सादर 

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, "अभ्यास के क्रम में किये गए प्रयासों से सभी लाभान्वित होते हैं" यक़ीनन मैं सहमत हूँ।

आदरणीय अमित जी, बहुत बढ़िया सुझाव दिए हैं आपने. इसका लाभ सभी को मिलता है. आपका हार्दिक आभार ... सादर 

बढ़िया सुझाव ............ सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"इस पटल के लघुकथाकार अपनी प्रस्तुतियों के साथ उपस्थित हों"
41 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"उत्साहदायी शब्दों के लिए आभार आदरणीय गिरिराज जी"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आदरणीय अजयन  भाई , परिवर्तन के बाद ग़ज़ल अच्छी हो गयी है  , हार्दिक बधाईयाँ "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आदरणीय अजय भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई ,  क्यों दोष किसी को देते हैं, क्यों नाम किसी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. नीलेश भाई बेहद  कठिन रदीफ  पर आपंर अच्छी  ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. नीलेश भाई , बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ,सभी शेर एक से बढ कर एक हैं , हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

१२२२    १२२२     १२२२      १२२मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं हैइसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन…See More
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं

मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं मगर पाण्डव हैं मुट्ठी भर, खड़े हैं. .हम इतनी बार जो गिर कर खड़े हैं…See More
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)

देखे जो एक दिन का भी जीना किसान का समझे तू कितना सख़्त है सीना किसान का मिट्टी नहीं अनाज उगलती है…See More
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service