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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 155 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'जॉन एलिया' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

"जो भी ख़ुश है हम उससे जलते हैं"
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1212 22/112
बह्र-ए-ख़फ़ीफ़ मुसद्दस सालिम मख़बून महज़ूफ

रदीफ़ --हैं

काफिया :-(अलते की तुक) ढलते,पलते,निकलते,चलते,मलते,खलते आदि...

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 26 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय अमित जी बहुत शुक्रिया 

बहुत ख़ूब भाई शिज्जु जी। बढ़िया ग़ज़ल हुई है। क्या कहने। वाह वाह 

आदरणीय दिनेश भाई, आपकी आमद और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आपका बहुत शुक्रिया 

आ. शिज्जू भाई,
आपको भोपाल में मिस किया लेकिन आपने यहाँ अच्छी ग़ज़ल पेश कर के कमी पूरी कर दी ..
बधाई स्वीकार करें .

बहुत शुक्रिया आ. निलेश भाई, भोपाल आने की इच्छा तो मेरी  भी बहुत थी, मगर ट्रेन की समस्या को लेकर इरादा बदलना पड़ा।

आदरणीय शकूर जी नमस्कार

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई, हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है

बुलबुल के बच्चे वआआह, बधाई स्वीकार कीजिये

सादर

सराहना के लिए आपका बहुत शुक्रिया आदरणीया ऋचा जी

आदरणीय शिज्जु भाई उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशाइरे में सहभागिता के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें ।

आदरणीय रवि भैया, बहुत-बहुत शुक्रिया आपका

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी ग़ज़ल की रवानी और एहसास बहुत खूब निलके हैं

बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय गुप्ता जी

//है मुहब्बत का रंग भी शामिल

मेरे अशआर जिनमें ढलते हैं//

सच बयान करता बेहद मासूम और सच्चा शेर।

वास्तव में मुहब्बत के रंग से ही शाईरी और जिन्दगी निखरती है।

ढेरो दाद और मुबारकबाद आदरणीय।

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आवश्यक सूचना:-

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