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परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 129वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब हसरत मोहानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ख़ुशी ऐसी भी होती है अलम ऐसा भी होता है "

1222               1222         1222             1222

 मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन

बह्र:  हजज़ मुसम्मन सालिम

रदीफ़ :-  ऐसा भी होता है
काफिया :- अम( कलम, सितम, करम, ग़म, सनम, बहम  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 मार्च दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 27 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय रचना जी, नमस्कार

बहुत बहुत शुक्रीया आपका हौसला अफ़ज़ाई और त्रुटि से अवगत कराने के लिए।।

गलतियाँ सुधारकर कबीर sirji के cmnt पे reply किया है।।

सादर।।

मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मुझे अपना बनाएगा वहम ऐसा भी होता है'

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द "वह्म" 21 है,देखियेगा ।

'मेरा दीवाना लगता है , ये मुझसे इश्क़ करता है
मेरी ज़ानिब ही आता है ये ग़म ऐसा भी 

होता है'

रिया" जिसकी वजह से दर्द तेरा रोज बढ़ता है

वही कर पाएगा ये दर्द कम ऐसा भी होता है'

इन दोनों अशआर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ कुल्ली दोष है,देखियेगा,मक़्ते के ऊला में 'वजह' ग़लत शब्द है सहीह शब्द है "वज्ह" 21 इसकी जगह "सबब" कर सकती हैं ।

आदरणीय कबीर जी, नमस्कार
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ग़लतियाँ बताने औऱ मार्गदर्शन के लिए।
बदलाव के साथ पोस्ट की है ग़ज़ल कृपया देखियेगा

सादर।

1222 1222 1222 1222

मुहब्बत उसको मुझसे है भरम ऐसा भी होता है
कहीं जाऊँ वही रहता बहम ऐसा भी होता है।1

मेरी हसरत है उस से वस्ल हो लेकिन मेरा हमदम
नहीं मिलता सताता है सितम ऐसा भी होता है।2

तरसते हैं मुहब्बत को मगर कुछ तो मिले उससे
हमें वो ग़म ही देता है करम ऐसा भी होता है।3

तेरे मिलने से पहले ही बिछड़ने का है रहता ग़म
"खुशी ऐसी भी होती है अलम ऐसा भी होता है"।4

सियासत चल पड़ी ऐसी लगी है सच पे ही बोली
जो सच को झूठ न लिख्खे कलम ऐसा भी होता है।5

वो मेरा जी जलाता है हमेशा दूर रहकर क्यों
वहीं से मुस्कुराता है सनम ऐसा भी होता है।6

कभी तो दिल तिरा पिघले मुझे ले ले तू बाहों में
निकल जाए तेरी बाहों में दम ऐसा भी होता है।7

मेरा दीवाना लगता है , ये मुझसे इश्क़ है करता
मेरी ज़ानिब ही आता है ये ग़म ऐसा भी होता है।8

"रिया" जिसकी सबब से दर्द तेरा रोज है बढ़ता
वही कर पाएगा ये दर्द कम ऐसा भी होता है।9

मिरा दीवाना लगता है , ये मुझसे इश्क़ है करता
मेरी ज़ानिब ही आता है ये ग़म ऐसा भी होता है।8

तरमीम अच्छी है,लेकिन ये शैर:-

'कभी तो दिल तिरा पिघले मुझे ले ले तू बाहों में
निकल जाए तेरी बाहों में दम ऐसा भी होता है'

ऊला में 'ले ले तू बाँहों में' और सानी में 'ऐसा भी होता है', इस कथ्य पर थोड़ा ग़ौर करें ।

आदरणीय,

आपकी बात को समझ कर एक शेर कहा है कृपया देखियेगा।

बहुत बहुत धन्यवाद आपका मार्गदर्शन के लिए।।

सादर।।

कभी इक दूसरे को ढूँढते रहते हैं हरपल हम
कभी हरपल ही होते साथ हम ऐसा भी होता है।

ये शैर ठीक है ।

आदरणीय 

बहुत धन्यवाद आपका

सादर।

आदरणीया रिचा यादव जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

आदरणीय

बहुत धन्यवाद

सादर

आ. रिचा जी, सुधार के बाद गजल निखर गयी है । हार्दिक बधाई ।

आदरणीय

बहुत धन्यवाद 

सादर।

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