For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-67

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 67 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा-ए-सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|


"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है"

212   212     1222

फाइलुन फाइलुन मुफाईलुन 

(बह्र: खफीफ मुसद्दस् मख्बून मक्तुअ )
रदीफ़ :- से उठता है 
काफिया :- आँ ( कहाँ, जहां, आसमां, जाँ आदि)

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 जनवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 12712

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरनीय सरना भाई , आपकी पहली गज़ल पढ रहा हूँ , आपको गज़ल कहते देख बहुत अच्छा लगा ! बढिया गज़ल कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

अब  भरोसा   नहीं   लकीरों  पे 
अब यकीं हर निशाँ से उठता है--------वाह !!! बेहद शानदार ग़ज़ल बन पड़ी है आप की यहां आदरणीय सुशील जी।  बधाई स्वीकार कीजिये। 

वाह्ह्ह्ह्ह् बहुत खूब प्रस्तुति हुयी है.....क्या आगाज है आगे राह आसान होगी...हार्दिक बधाई आ सुशील सरना सरजी
वाह...वज़न तो है न पेशकश में..
//अब भरोसा नहीं लकीरों पे
अब यकीं हर निशाँ से उठता है!!३!!
जल चुका है जिस्म न जाने फिर
"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है"!!४!!//... बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी।

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुशील जी हार्दिक बधाई 

ग़ज़ल

जब यकीं दरमियाँ से उठता है
एक रिश्ता वहाँ से उठता है।

रोती है क़ायनात ये सारी
जब फ़रिश्ता जहाँ से उठता है।

शोर वो कान खोल दे सबके
जो कलम की ज़बाँ से उठता है।

धुंधली धुंधली दिखे हरिक शय ही
जब धुआँ आसमाँ से उठता है।

दश्त में आग लग गयी क्या फिर
"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है ।"

सांस सब थाम कर ज़रा बैठो
शेर दिल के मकाँ से उठता है।

आखिरी सीन पे पहुंच कर ही
पर्दा हर दास्ताँ से उठता है।

तन का जलता है कागज़ी पैकर
जब कोई कारवां से उठता है।

आग जलती नहीं अगर कोई
फिर धुआँ क्यूँ यहां से उठता है।

होगा कोई न कोई तो घायल
तीर जब भी कमां से उठता है।

एक बस तेरे ही नही "सीमा"
दर्द हर दिल जवाँ से उठता है।

सीमा शर्मा मेरठी

आदरणीया सीमा जी, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने.... शेर दर शेर दाद हाज़िर है -

जब यकीं दरमियाँ से उठता है
एक रिश्ता वहाँ से उठता है।.............बहुत बढ़िया मतला 

रोती है क़ायनात ये सारी
जब फ़रिश्ता जहाँ से उठता है।........... ये शेर पढ़कर राष्ट्रपति कलाम जी याद आ गए ......

शोर वो कान खोल दे सबके
जो कलम की ज़बाँ से उठता है।..........बहुत खूब  

धुंधली धुंधली दिखे हरिक शय ही
जब धुआँ आसमाँ से उठता है।............ बहुत बढ़िया 

दश्त में आग लग गयी क्या फिर
"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है ।"............ बढ़िया गिरह लगाईं है 

सांस सब थाम कर ज़रा बैठो
शेर दिल के मकाँ से उठता है।.................. बहुत खूब 

आखिरी सीन पे पहुंच कर ही
पर्दा हर दास्ताँ से उठता है।............ सस्पेंस मूवी वाला शेर हो गया 

तन का जलता है कागज़ी पैकर
जब कोई कारवां से उठता है।................. बहुत बढ़िया 

आग जलती नहीं अगर कोई
फिर धुआँ क्यूँ यहां से उठता है।............ बढ़िया शेर 

होगा कोई न कोई तो घायल
तीर जब भी कमां से उठता है।............ बहुत खूब..... कोई का बढ़िया प्रयोग 

एक बस तेरे ही नही "सीमा"
दर्द हर दिल जवाँ से उठता है।.............शानदार मक्ता.

इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

बहुत अच्छी, दिलकश, शानदार एवं कामयाब ग़ज़ल की प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें मोहतरमा सीमा जी !!!

 मोहतरमा सीमा शर्मा साहिबा ,  बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ...

आदरनीया सीमा जी, आपकी गज़ल शायद पहली बार पढा , बहुर खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ आपको

जब यकीं दरमियाँ से उठता है
एक रिश्ता वहाँ से उठता है।------वाह !!! लाज़वाब कर दिया आपने। बधाई कबूल फरमाइयेगा आदरणीया सीमा जी।

वाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह् क्या खूब उम्दा ग़ज़ल हुयी...सभी शेर बाकमाल हुए है जैसे मोती पिरोया हो माला में...बहुत बहुत बधाई मुबारकबाद आ.सीमा जी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service