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मेरे कहे मान देने के लिए आभार आदरणीया रश्मि जी
शतरंज की चालों तरह जीवन में कोई भी खेल खेलते समय अपनी स्थिति को अवश्य देख लेना चाहिये कि हम स्वयं कितने पानी में हैं| शीर्षक को सार्थक करती इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
वाह ,पासा पलट गया .घर घर बिछी बिसात मोहरे बने रिश्तेदार .
क्या ही जबर्दस्त शह पर मात दे दी आ० रश्मि तरीका जी. बहुत महीन से क्षण को आपने जिस ढंग से उभार दिया है, उससे दिल खुश हो गया. मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें. वैसे यदि इस कहानी में बच्चों के स्थान पर जेठ द्वारा जेठानी के फास्ट फ़ूड आदि खाने पर अंकुश की बात होती तो शह और मात का वज़न बराबर का हो जाता. सोचकर देखें.
बढ़िया लघु कथा आदरणीय रश्मि तरीका जी अंतिम पंक्ति ने तो पूरी शतरंज ही बदल दी! सादर बधाई आपको
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