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आदरणीय विजय शंकर सर, राजनीति में व्याप्त विद्रूपताओं की वास्तविकता को खोलती हुई बहुत बढ़िया लघुकथा है. निसंदेह रचना आपके गहन चिंतन का परिणाम है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
वाह डॉ० साहब राजनीति की छद्मी दुनिया की परत परत उतरने वाली कथा, तीखा तंज भी चुभोती है. हार्दिक बधाई..
बहुत बढ़ीया आदरणीय विजय शंकर जी । /राजनीति में कहीं , कुछ भी , कभी भी , तब तलक गलत नहीं होता जब तलक खुद तुम्हें उससे कोई नुक्सान नहीं होता।/ ये तो एक ही पंक्ित में आपने राजनीति में व्याप्त विद्रूपताओं की कलई खोल दी । सादर
आधुनिक राजनीतिज्ञों ने राजनीति की परिभाषा ही बदल दी है | अच्छा कथानक चुना आ. डॉ. विजय शंकर जी | सादर
राजनीति स्वार्थनीति में परिवर्तित हो ही गयी है, स्वयं के नुकसान पर सही भी गलत हो जाता है और लाभ पर गलत भी सही| यथार्थ को उजागर करती इस कालजयी रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर|
यानि राजनीति में गलत-सही की परिभाषा निजी लाभ-हानि से तय की जाती है, बहुत खूब आ० डॉ विजय शंकर जी I इस विषयानुरूप प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
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