For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के साथियों, आज इस फोरम के माध्यम से मैं आप सब से एक सामान्य किन्तु महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करना चाहता हूँ |

कुछ समय पहले तक साहित्य को पढ़ने हेतु केवल प्रिंट माध्यम ही था, जहा पर सामान्य लोगो की रचना प्रकाशित होना एक जटिल और दुरूह कार्य था या यह कहे कि कुछ असंभव सा कार्य था वहां केवल स्थापित और नामचीन साहित्यकारों को ही जगह मिल पाता था, यह उन साहित्य प्रकाशन करने वाली संस्था के लिये भी व्यावसायिक जरूरत भी थी | किन्तु आज हम सभी सौभाग्यशाली है कि वेब की दुनिया मे बहुत सारी साईट उपलब्ध है और जहाँ पर हम साहित्य पाठन और लेखन कर पाते है और वह भी बिलकुल मुफ्त |

ओपन बुक्स ऑनलाइन भी आज साहित्य के क्षेत्र मे एक स्थान बना चूका है और यह कहने मे मुझे तनिक भी हिचकिचाहट नहीं है कि जितनी सुविधायें इस साईट पर उपलब्ध है वो और किसी साहित्यिक साईट पर नहीं है |

आज हमलोग लाइव कार्यक्रम संचालित करते है जहा आप रियल टाइम बेस्ड कार्यक्रम मे शिरकत करते है, आप कि रचनायें हुब हु और आप के द्वारा प्रकाशित होती है साथ ही टिप्पणियाँ भी तुरंत प्रकाशित होती है | यह प्रिंट माध्यम मे असंभव था | उदाहरण स्वरुप "OBO लाइव महा इवेंट" तथा "OBO लाइव तरही मुशायरा" आप के सामने है |

मुझे जो एक बात खलती है कि लेखक/साहित्यकार घंटों/दिनों मेहनत करने के बाद अपनी रचना पोस्ट करते है और हम पढ़ने के पश्चात् एक टिप्पणी देना भी अपना फ़र्ज़ नहीं समझते, कुछ साहित्यकार भी केवल अपनी रचना पोस्ट करने के पश्चात् उसपर आयी टिप्पणी का प्रत्युत्तर भी नहीं देते और न ही अन्य लेखको की रचनाओं पर टिप्पणी देते है, लेखक को लेखन के बदले मे एक टिप्पणी ही तो मिलती है जो उनको और बढ़िया लिखने हेतु प्रेरित करती है |

क्या हम सभी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ?

इस मुद्दे पर आप क्या सोचते है कृपया अवगत करायें .............

Views: 6450

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय मिथिलेश जी, आपकी प्रतिक्रया और शपथ दोनों सराहनीय है, समय तो किसी के पास नहीं है किन्तु उसी से कुछ पल चुराकर हम सभी इस मंच की सेवा करते हैं. अब मैं क्या कहूँ, मंच प्रबंधन के साथ साथ प्रयास होता है कि साथियों की रचनाओं को सिद्दत से पढ़कर उसपर टिप्पणी करूँ/ और करता भी हूँ. मैं साहित्य सृजन में बहुत फिसड्डी हूँ, कभी कभी मेरी दो रचनाओं के मध्य लम्बा अंतराल हो जाता.

बहुत ही बढ़िया विचार , आदरणीय मिथिलेश जी !

सही कहा आपने किसी भी रचनाकार के लिए पहले एक अच्छा पाठक होना बेहद ही जरूरी है । मै स्वंय पढ़ने में ज्यादा वक्त दे पाती हूँ बजाय लेखन के । प्रत्येक रचना कार के लिए टिप्पणी बेहद अनमोल होता है क्योंकि टिप्पणी ही आगे की लेखन पर अनुशासित होती है । आलोचना और सामालोचना दोनो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है रचना के नवनिर्माण में । आभार

आप के कहे से सहमत हूँ आदरणीया, प्रतिक्रया हेतु बहुत बहुत आभार.

प्रत्येक रचना कार के लिए टिप्पणी बेहद अनमोल होती  है क्योंकि टिप्पणी ही आगे की लेखन पर अनुशासित होती है । आलोचना और सामालोचना दोनो बहुत ही महत्वपूर्ण होता है रचना के नवनिर्माण में ...बहुत सही बात आदरणीया !

\\आलोचना और समालोचना दोनो बहुत ही महत्वपूर्ण होते है रचना के नवनिर्माण में ।\\

आदरणीया कांता जी आपने बहुत सटीक बात कही है. सादर

 क्या हम सभी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ?.........Ye ek aisa prashan hai jo shayad har uss vyakti ko sochane ke liye majboor karega jo kisi lekhak ki rachna paddane ke baad uss par 'comments' karna bhool jaate (Chaahe vo kisi bi kaaran se ho).

 

लेखन कहीं न कहीं विचारों से जुड़ा होता है, वह चाहे काव्य हो, गीत हो, कथा हो, संस्मरण हो, कुछ भी हो। जीवन में विचारों का बहुत महत्व होता है। जब हम किसी सदस्य की कोई रचना पढ़ते हैं तो उसके विचारों से जुड़ते हैं , और कभी - कभी बिलकुल नये विचारों से हमारा साक्षात्कार होता है जो किसी के लिए भी बहुत सार्थक होता है। वैसे भी विचारों का आदान - प्रदान ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्ष खोते कुछ नहीं, पाते दोनों है. मान लीजिये आप एक विचार प्रस्तुत करते हैं तो वह एक विचार है , जब कोई उस पर एक वैचारिक बात करता है तो दो विचार हो जाते हैं और वे दो विचार दोनों पक्षों के पास होते हैं. प्रशंसात्मक टिप्पड़ियाँ रचनाकार का मनोबल एवं उत्साह बढ़ाती हैं जो बहुत अच्छी बात है , पर साथ में यदि वैचारिक विस्तार हो तो साहित्य की अधिक लाभदायक साधना होगी. मेरा अनुरोध है कि हमें प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय अपने विचार भी प्रकट करने चाहिए जिससे चिंतन और सोंच को बढ़ावा मिले , विस्तार हो। वैचारिक स्तर पर सहमति / असहमति दोनों का सकारात्मक योगदान होता है और दोनों पक्ष लाभान्वित होते हैं। अन्य पढ़ने वाले भी लाभान्वित होते हैं।
एक बात और क्या हम एक एक ऐसा स्तम्भ भी बना सकते हैं जहां सदस्य गण अपने नैये विचारों को व्यक्त कर सके और अपने साथियों से वैचारिक स्तर पर जुड़ सकें और वैचारिक आदान - प्रदान कर सकें , जहां लोग अपने संस्मरण, अच्छे प्रेरक अनुभव साझा कर सकें। वह लेखन ही क्या जो कुछ सोचने पर मजबूर न कर दे. इससे ओ. बी. ओ. और विस्तार होगा।
एक निवेदन है, विचार करें।
सादार।

 वैचारिक स्तर पर सहमति / असहमति दोनों का सकारात्मक योगदान होता है और दोनों पक्ष लाभान्वित होते हैं। अन्य पढ़ने वाले भी लाभान्वित होते हैं।.......आपकी इस बात से संपूर्ण रूप से सहमत आदरणीय डॉ विजय शंकर सर !

 सहमत आदरणीय डॉ विजय शंकर सर ! बहुत अच्छी बात कही है आपने.

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, संस्मरण या प्रेरक आलेख आदि भी साहित्य की एक विधा है, इसे भी ब्लॉग कैटेगरी में पोस्ट किया जा सकता है बशर्ते वह स्तरीय और ओ बी ओ पटल पर प्रकाशन योग्य हो. 

लेखन अगर प्रशंसित/आलोचित न हो तो लिखने का मतलब ही क्या."स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा" में भी स्व की उपस्थिति तो है ही.अतःप्रशंसित/आलोचित होना लेखक का अधिकार हो.अतः एक टिप्पणी तो बनती ही है.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. लक्ष्मण जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमीरुद्दीन अमर जी, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी, आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद आपको।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service