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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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मेरी हद तंग करो ना भाई भाई के झगड़े में
रोते रोते हमसे गमगीं पुरखों की दीवार कहे।
संजय भईया , बेहद पुरजोर तरीके से आपने अपनी बात को आयाम दिया है , बहुत ही उम्द्दा शे'र , साथ में "बिन्तों से ही कुनबा बढता" वाला शे'र तो गहरा तक जेहन में उतरता है , दाद कुबूल करे |
सलील जी आपके तारीफ़ के शब्द मेरे लिये
बहुत बड़ा ईनाम है , आभार आपका।
अभिनव जी हौसला अफ़ज़ाई के ये शब्द
मेरी कलम की गति को और बढायेगी ऐसी
मुझे उम्मीद है, शुक्रिया।
आदरणीय दानी साहब
ज़दीद खयालो से सजी गज़ल के लिए दाद कबूल करें
बहुत बहुत बधाई
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