For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनुनासिक - अनुस्वार समझ मात्र गिनिये मीत:


अनुनासिक - अनुस्वार समझ मात्र गिनिये मीत:

संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता                                                                                                     

 

संस्कृत की वाचिक परंपरा हिंदी में प्रारंभिक दौर में ही अवरुद्ध हो गयी. विविध अंचलों में भाषा के विविध रूप प्रचलित होने से शब्दों व क्रियापदों के रूप-उच्चारण में अंतर आया. इस कारण छंदों का प्रयोग कठिन प्रतीत होने लगा चूँकि छंद में लय के अनुसार शब्द संयोजन करना जरूरी है. मुग़ल काल में प्रशासन की भाषा उर्दू होने से उर्दू की शिक्षा विधिवत लेनेवाले उस्ताद-शागिर्द परंपरा में बोलने तथा लिखने (तक़्तीअ करने) के अभ्यस्त हो गये. उर्दू के विविध रूप दिल्ली, लखनऊ तथा हैदराबाद में विकसित हुए किंतु तक़्तीअ के नियम एक से ही रहे.

हिंदी में खड़ी बोली के विकास से भाषा के मानकीकरण का दौर प्रारंभ हुआ किंतु अंग्रेजी तथा आंचलिक भाषा रूपों के प्रति लगाव ने बाधा उपस्थित की. संस्कृत व्याकरण-पिंगल पर आधारित हिंदी में मात्रा गणना के लिये अनुनासिक और अनुस्वर को समझना आवश्यक है. 
अनुनासिक और अनुस्वर--
       
इस सर्वोपयोगी चर्चा को आगे बढ़ाने के पूर्व यह जान लें कि कहना और लिखना एक दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं. निस्संदेह भाषा पहले बोली गयी फिर लिखी गयी. बोले गये में अलग-अलग स्थानों, बोलनेवाले के ज्ञान, उच्चारण क्षमता तथा अभ्यास के कारण परिवर्तन होने पर शुद्ध रूप को लिखने की आवश्यकता हुई. 

संस्कृत में वाचिक परंपरा में आश्रमों में गुरु उच्च स्वर से पाठ करते थे जिन्हें सुनकर शिष्य स्मरण करने के साथ-साथ उच्चारण विधि भी सीख लेते थे. ज्ञान राशि के विस्तार तथा जटिलता के कारण श्रुति-स्मृति युग का स्थान लिपि युग ने लिया जो अब तक चल रहा है. संभव है कि भविष्य में विविध भाषाओं में प्राप्त विज्ञान तथा साहित्य सबके लिये सुलभ बनाने के लिये शब्द संकेतों के स्थान पर  यांत्रिक ध्वनि संकेतों का प्रयोग हो जिसे हर भाषा-भाषी समझ सके. अस्तु...


अनुनासिक: जिन वर्णों में ध्वनि मुख के साथ-साथ नासिका से भी निकलती है, उन्हें नासिक ध्वनि (Nasal  sound) के कारण अनुनासिक  कहते हैं. प्रत्येक वर्ण समूह का पाँचवाँ अक्षर अर्थात क वर्ग (क, , , , ), च वर्ग (, , , , ), ट वर्ग (, , , ढ, ), त वर्ग (, , , ध, ), प वर्ग (, , , भ, ) आदि के अंतिम पंचम वर्ण ङ्, ञ्, ण, न, म 'अनुनासिक'  कहलाते हैं. उच्चारण को सरल रूप से समझने के लिये अनुनासिक के स्थान पर अर्ध ध्वन्याक्षर का प्रयोग प्रचलन में है. 

शुद्ध पाञ्चजन्य = प्रचलित पान्चजन्य, प्रत्यञ्चा = प्रत्यंचा,  
शुद्ध वाङ्मय / वाङ् मय = प्रचलित वांग्मय, गङ्गा = गंगा, तरङ्गिणी = तरंगिनी,
उद्दण्ड = उद्दंड = उद्दन्ड,  अखण्ड = अखंड = अख
न्ड

अन्य  (इसे अंय नहीं लिख सकते)  क्यों ?
प्रणम्य (यहाँ आधे म को हटाकर उसके स्थान पर पूर्वाक्षर पर बिंदी नहीं रख सकते)


अनुस्वर: स्वर के बाद  बोला जाने वाला  हलंत (अर्ध ध्वनि) अनुस्वार कहलाता है जिसका उच्चारण अनुनासिक वर्णानुसार किया जाता है ! इसका चिन्ह . वर्ण के ऊपर बिंदी (जैसी यहाँ बि पर लगी है) होता  है ! जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वर (बिंदी) हो उसका अगला अक्षर जिस वर्ण समूह का हो उसके पंचम अक्षर की अर्ध ध्वनि अनुस्वर के स्थान पर बोली जाती है. यथा: शङ्का = शंका, शङ्ख = शंख, गङ्ग = गंग, उल्लङ्घन = उल्लंघन, प्रपंच , लांछन , सञ्जय = संजय, झंझट, घण्टा = घंटा = घन्टा, कण्ठ = कंठ = कन्ठ, दण्ड = दंड = दन्ड, माण्ढेर = मांढेर, मान्ढेर, संत = सन्त, पंथ = पन्थ, छंद = छन्द, धंधा = धन्धा, चंपत = चम्पत, गुंफित = गुम्फ़ित, कंबल = कम्बलदंभ = दम्भ, मंजूषा = मन्जूषा  आदि.
                                                                                                

-- संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की मात्रा की गणना नहीं होती.  
यथा प्रचुर = १ १ १ = ३, क्रय १ १ = २, क्रिया १ २ = ३, क्रेता = २ २ = ४, विक्रय = २ १ १ = ४, विक्रेता = २ २ २ = ६, ग्रह = १ १ = २, विग्रह = २ १ १ = ४  किन्तु  अनुस्वार वाले शब्द  की मात्रा २ गिनी जायेगी ! 

हंस (पक्षी) और हँस (क्रिया हँसना) के उच्चारण पर ध्यान दें तो शब्दों में कहाँ बिंदी और कहाँ चन्द्र बिंदी लगाना है स्पष्ट होगा. प्रायः इसमें गलती होती है.                            

(उर्दू में भी ऐसी ही गणना होती है और उसे ’वज़न’ कहते हैं और वह भी ’मल्फ़ूज़ी’ (यानी तल्फ़्फ़ुज़=उच्चारण के आधार पर होती है. दो-हर्फ़ी कलमा को ’सबब’ और 3- हर्फ़ी कलमा को ’वतद’ और 4-हर्फ़ी कलमा को फ़ासिला’ कहते हैं.)

‘क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है न कि तालव्य श का.
                                                                       88888888

Views: 25374

Replies to This Discussion

इस जानकारी के लिए आचार्य जी का बहुत बहुत धन्यवाद

आदरणीय आचार्य जी सादर प्रणाम इस हिन्दी की कक्षा के लिए आपका बहुत आभार , इससे हम जैसे लोगों का काफी फायदा होगा . एक बार पुनः धन्यवाद . 

बहुत बहुत धन्यवाद

 आदरणीय आचार्य जी सादर प्रणाम, बहुत कुछ सीखने को मिला.

एक शंका रह गयी है  -- आपने 

विक्रेता = २ २ १ = ५  लिखा है, क्या ये सही है ? 

यहाँ विक्रेता = २ २ २ = ६ नहीं होना चाहिए ?


आप सही हैं, नीरजभाईजी. 

ऐडमिन द्वारा सुधार कर दिया गया है.

बहुत बहुत शुक्रिया ..सादर नमस्ते

bahut sundar sarthak jaankari salil ji dhanyavad

आदरणीय प्रणाम ,मैंने आज ही आपकी हिंदी की पाठशाला पढना शुरू किया है बहुत प्रसन्न हूँ यहाँ आकर की बहुत कुछ सीखा आज ही और आगे भी सीखने को मिलेगा ..अभी आपके द्वारा दिया गया अनुनासिक और अनुस्वार का पाठ पढ़ा ..एक दो शंकाएं हैं एक तो मात्रा  में 

विक्रेता में मात्रा  = २ +२+२ =6 होंगी जैसा आपने दुसरे  उदाहरण में बताया फिर ये 5 कैसे हुई? 

दूसरा आपने बताया की अनुस्वार वाले शब्द की मात्रा २ गिनी जायेगी कृपया उसके भी एक दो उदाहरण दे दीजिये तो स्पष्ट हो जाएगा पूरी तरह 

हार्दिक धन्यवाद 

आपका कहना बिल्कुल सही है कि विक्रेता की कुल मात्रा २ + २ + २  = ६ होगी.  इस पाठ में विक्रेता की ५ मात्राएँ बताना टंकण त्रुटि है.

ऐडमिन द्वारा सुधार कर दिया गया है.

अनुस्वार वाले शब्दों की मात्रा यों गिनी जायेगी.

अंक = २+१ = ३

मयंक = १+२+१ = ४

शंख = २+१ = ३  .. आदि.

हमें अनुस्वार और चंद्रविन्दु के उच्चारण में हुए अंतरको समझना चाहिये. चन्द्रविन्दु एक मात्रिक होता है. जबकि अनुस्वार द्विमात्रिक.

हँस = १ +१ = २

हंस = २+१ = ३

अंध = २ +१ = ३

अँधेरा = १+२+२ = ५ ... आदि

सौरभ जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद :-) 

बहुत सुन्दर जानकारी मिली बिंदु और चन्द्र बिंदु के संदर्भ में।  आभार 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
10 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service