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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक ३७ में सम्मिलित सभी गज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन

सादर प्रणाम,

सैंतीसवें मुशायरे का संकलन हाज़िर है| इस बार के मुशायरे की ज़मीन लगातार पिछले कई मुशायरों के बनिस्बत आसान दी गई थी जिसके पीछे का उद्देश्य यह था की जो नए लोग इस मंच से जुड़ रहे हैं वह अपने आप को सहज महसूस कर सकें, पुराने लोग जो ग़ज़ल विधा में पारंगत हो चुके हैं यह उनका फ़र्ज़ है की नए लोगों का हाँथ थाम कर उन्हें भी अपने बराबरी में ले आयें और उस्तादों से निवेदन है कि आप हमेशा मोनिटर करते रहें अर्थात कहीं पर नए लोग कोई गलत चीज सही न मान बैठें|

चलिए अब बात करते हैं बीते मुशायरे की| एक समय था कि इसी मंच पर लोग ग़ज़ल बह्र में कहने की जद्दोजहद में लगे थे, मुशायरे में ८०% गज़लें बेबहर आती थी| आज यह स्थिति है की एक दो ग़ज़लों को जाने दें तो  लगभग सभी लोग कम से कम बह्र में तो लिख ही रहे हैं, जिन एक दो लोगो की बात कर रहा हूँ वह स्वयं को पहचाने क्योंकि आपको भी इस मंच से जुड़े हुए अरसा हो चुका है और आप भी जल्दी से बह्र में आ जाएँ| बह्र से आगे बढ़ते हुए इस बार आई ग़ज़लों में जो विशेष समस्याएं चिन्हित हुई हैं उन्हें क्रमवार प्रस्तुत कर रहा हूँ|

१. भर्ती की ग़ज़ल:- मुशायरे में दो ग़ज़लें प्रस्तुत करने की छूट है इसका मतलब यह नहीं है की दो गज़लें अवश्य करके ही प्रस्तुत की जाएँ| अगर शायर के कहन में दम है तो उसकी एक ग़ज़ल ही छाप छोड़ने में कायम रहेगी| ज्यादातर केस में(गौर करें ज्यादातर) देखा गया है कि दूसरी ग़ज़ल केवल दूसरी ग़ज़ल कहने के लिए ही पेश की जाती है....मुशायरों में इसे भर्ती की ग़ज़ल कहा जाता है और ऐसे शायरों को भर्ती का शायर|

२. भर्ती के शेर:- आपने एक बहुत ही संजीदा ग़ज़ल कही पर उसमे एक दो शेर ऐसे डाल दिए जो ग़ज़ल में होने ही नहीं चाहिए थे ...उदाहरण के लिए कई बार देखा गया है की अच्छी ग़ज़ल के बीच में शायर ओ बी ओ की शान में एक दो शेर कह देता है या अपनी दिनचर्या से एक दो शेर बनाकर कह देता है ..अगर वह शेर ग़ज़ल की तासीर का है ही नहीं तो उसे ग़ज़ल में रखने का क्या मतलब ..ऐसे शेर भर्ती के शेर कहलाते हैं इनसे बचना चाहिए|

३. भर्ती के लफ्ज़:- शेर में ऐसे लफ़्ज़ों का प्रयोग जिनका कोई अर्थ ही नहीं है या महज़ शेर को वजन में फिट करने के लिए बीच में घुसाया गया हो भर्ती के शब्द कहलाते हैं| उदाहरण के लिए मिसरे  के प्रारम्भ में "कि" लगा देना,  अभी के साथ भी लगाकर अभी भी, क्रिया में कर लगाने के बावजूद बाद में के लगाना जैसे खाकर के आदि| इन भर्ती के शब्दों से हमेशा बचना चाहीये|

४. "ना" अथवा "न":- मिसरों में नहीं की जगह अक्सर ना का प्रयोग करते देखा गया है| दरअसल "ना" स्वीकार्य ही नहीं है सही वजन में इसे "न"  लिखना और गिनना चाहिए| शायरों में देखा गया है की जहां १ वज्न लेना है "न" लिख दिया और जहां २ लेना है "ना" लिख दिया, स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब एक ही शेर में दोनों तरह से प्रयोग किया गया हो| इस बार भी जहां मिसरों में "ना" आया है उसे लाल रंग से चिन्हित किया गया है| अगली बार से सावधान रहें|

५. कि अथवा की:- यहाँ भी ऊपर वाली बात , शुद्ध रूप "कि" है अगर आप "की" लिखते हैं तो उसका अर्थ कार्य करने से हो जाएगा|

६. विकृत होती हिंदी:-  आप जाओ, आप खाओ, तेरे को जाना चाहिए, आपकी जेब में देखो, आदि आदि अकसर हम रोज़मर्रा की भाषा में बोल रहे हैं| इस प्रकार के वाक्य व्याकरण के लिहाज़ से गलत हैं और ग़ज़ल में तो इनका कतई प्रयोग न करें|

७. उर्दू के अल्फ़ाज़ का बिना जाने प्रयोग:- उर्दू के जिन लफ़्ज़ों का अर्थ और प्रयोग हमें ठीक से न मालुम हो उनके प्रयोग से बचना चाहिए...अक्सर ऐसे प्रयोगों में एकवचन बहुवचन, पुल्लिंग स्त्रीलिंग जैसी व्याकरण की त्रुटियाँ हो जाती है| इसलिए इनका प्रयोग संभलकर करें| उर्दू और हिंदी के शब्दों को आपसे में इजाफत और  वाव-ए-अत्फ़ के माध्यम से जोड़ना भी नहीं चाहिए उदाहरण के लिए नदिया-ए-अश्क, निशा-ए-रंज, शामो प्रभात आदि| और मेरा तो व्यक्तिगत तौर पर मानना है की एक ही शेर में शुद्ध हिंदी और उर्दू के लफ्ज़ एकसाथ आने पर बदमज़गी पैदा करते हैं|

८. रब्त:- इस बार के मुशायरे में कई शायरों के शेरो के मिसरों में रब्त की कमी साफ़ नज़र आई जिसे कई जगह इंगित भी किया गया है| रब्त अर्थात दोनों मिसरों में सामंजस्य, जुड़ाव, एक की बात को दूसरा पूरी करे| शेर के मुकम्मल होने के लिए बहुत ही महत्वपर्ण है रब्त , इसलिए इसका विशेष ध्यान दें|

९. रदीफ़:- उस्तादों का कहना है कि आप शेर में केवल रदीफ़ निभा ले जाइए शेर अपने आप अच्छा हो जाएगा...जिसने रदीफ़ को पकड़ लिया ..उसकी ग़ज़ल मुकम्मल हो गई| इस बार की रदीफ़ आसान न थी ...आपको स्वयं को केंद्र में रखकर सारे शेर कहने थे| अपनी गज़लें फिर से देखें और रदीफ़ के दोष को पहचाने|

१०. मात्रा गिराना:- अरूज़ में मात्राओं को गिराने की छूट दी गई है, परंतु अगर मात्रा गिराने से अर्थ का अनर्थ हो रहा हो तो इससे बचना चाहिए| जैसे की किसी मिसरे में लफ्ज़ आया "चारा" जिसका वजन होना चाहिए २२ पर मिसरे में जब इसे गिराकर बह्र में पढ़ा तो २१ के वज्न में चार पढ़ा जाएगा| अब दोनों अलग अलग शब्द है और दोनों के अर्थ भी अलग, जिससे मिसरे के मायने ही बदल जाते हैं| इस प्रकार  के मिसरे बेबहर की श्रेणी में आते हैं| इस प्रकार से मात्रा गिराने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए|

विशेषज्ञों से निवेदन है की कुछ छूट रहा हो तो उस पर अवश्य चर्चा करें

मिसरों को तीन रंगों से रंगा गया है, लाल अर्थात पूरी तरह से यह मिसरे बेबह्र है , हरे मिसरे भी बेबह्र हैं परन्तु वहां बह्र की चूक शब्दों के वजन को उनके तद्भव रूप में लेने से हुई है| नीले मिसरे ऐसे मिसरे हैं जिनमे कोई न कोई ऐब है| नीले मिसरों को चिन्हित करते समय जिन ऐबों को नज़र में रखा गया है वह है तनाफुर, तकाबुले रदीफ़, शुतुर्गुर्बा, ईता, काफिये के ऐब और ऐब ए ज़म| गौरतलब है की बहुत से मिसरों और भी ऐब हैं परन्तु इस मंच पर चल रही कक्षा में जिन ऐब पर चर्चा हो चुकी है उन्हें ही ध्यान में रखा गया है| कई मिसरों में ऐब ए तनाफुर भी है पर इसे छोटा ऐब मानते हुए छोड़ा गया है,  यक़ीनन ऐब तो ऐब होता है और शायर को इस ऐब से बचना चाहिए| 

प्रस्तुत है ग़ज़लों का संकलन :-

ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) 

मैं गुलशन इस लिए पछता रहा हूँ
नज़र से उनकी गिरता जा रहा हूँ

सितम को मैं सितम कहता रहा हूँ
ज़ुबा को इस लिए कटवा रहा हूँ

मैं मुफ़लिस का दिया टूटा हूँ लेकिन
बहरसू रौशनी फैला रहा हूँ

खुदा जाने वो लौटे या न लौटे
मैं अब तक मुन्तज़िर उसका रहा हूँ

तुम्ही तो थे मेरी सांसो मैं अब तक
मैं तुम को भूल का पछता रहा हूँ

मैं शायर हूँ ज़माने की नज़र में
मैं आशिक़ आज तक तेरा रहा हूँ

वो जिससे फ़ैज़ मिलता है जहाँ को
उसी का मैं भी नक़्शे पा रहा हूँ

खिलौनों की तरह खेलो ना दिल से
तुम्हारा घर है ये समझा रहा हूँ

मुबारक हो तुम्हे अब मेरी दुनिया
मैं वापिस अपने घर को जा रहा हूँ

मिली है दौलत-ए-ग़म जब से मुझको
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

तुम्ही तो जान-ओ-दिल ईमा हो "गुलशन"
कहाँ मैं दूर तुमसे जा रहा हूँ

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Mohd Nayab 

जहाने-तीरगी पे छा रहा हूँ
चरागों की तरह जलता रहा हूँ

ख़यालों में उन्ही को ला रहा हूँ
मैं दिल को इस तरह बहला रहा हूँ

मुझे देखो न तुम तिरछी नज़र से
मैं तुमको फिर यही समझा रहा हूँ

अगर चाहो तो फिर वापस बुला लो
तुम्हारी ज़िंदगी से जा रहा हूँ

उनकी आँख का तारा था अब तक
तो फिर अब क्यों खटकता जा रहा हूँ

भुला कर देख लो मुझको भी दिल से
भुला कर मैं तुम्हे पछता रहा हूँ

खिलौनों से मैं क्या खेलूँ कि अब तक
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

न क्यूँ "नायाब" ठहरू हर नज़र में
किसी से फ़ैज़ अब तक पा रहा हूँ

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डॉ. सूर्या बाली "सूरज" 

जहां की भीड़ में तन्हा रहा हूँ॥
तुम्हारी याद में रोता रहा हूँ॥

न कोई कारवां राहें न मंज़िल,
अकेले ही सफ़र पे जा रहा हूँ॥

मेरी वीरानियाँ गुलज़ार कर दो,
अँधेरों से बहुत घबरा रहा हूँ॥

मेरी फ़ितरत में ही झुकना नहीं है,
खिलाफ़त ज़ुल्म की करता रहा हूँ॥

अभी ठहरो मुझे फ़ुर्सत नहीं है,
किसी की ज़ुल्फ़ को सुलझा रहा हूँ॥

शब-ए-फ़ुरकत क़यामत ढा रही है,
“तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ” ॥

तड़प दीवानगी फ़ुरकत मिली है,
मुहब्बत कर के मैं पछता रहा हूँ॥

मेरे अ’शआर में तेरी कशिश है,
ग़ज़ल तुझपे ही कहता आ रहा हूँ॥

कभी भी झूँठ से रिश्ता न रख्खा,
हमेशा सच का ही बंदा रहा हूँ॥

भले कोई भी मेरा साथ ना दे,
मगर दिल से ही मैं सबका रहा हूँ॥

कभी होगी तेरी नज़रे इनायत,
यही बस सोचकर जीता रहा हूँ॥

ख़बर कर दो हमारे दुश्मनों को,
सितारों से भी आगे जा रहा हूँ॥

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arun kumar nigam 

इसी आंगन सदा साया रहा हूँ
भरे सावन में भी सूखा रहा हूँ ||

नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
उसी की आँख में चुभता रहा हूँ ||

जवानी खो गई थी परवरिश में
सदा तेरे लिये बूढ़ा रहा हूँ ||

मुझे तू भूल कर परदेश बैठा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||

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MOHD. RIZWAN

मैं राहे हक़ पे बढ़ता जा रहा हूँ..
तेरे दर से ही सर टकरा रहा हूँ..

नही है तू हमारे पास तो क्या ?
"तेरी यादो से दिल बहला रहा हूँ..

मिले हैं ज़ख़्म जो उलफत मे तेरी..
ज़माने को कहाँ दिखला रहा हूँ

न करना अब किसी पर तू भरोसा
मैं अपने दिल को ये समझा रहा हूँ

जो अहले फ़न हैं मैं उनकी नज़र में
न जाने क्यूँ खटकता जा रहा हूँ

कहो तो जान-ओ-दिल कुर्बान कर दूं
मैं राहे हक़ पे जो चलता रहा हूँ

क़यामत पास है "रिज़वान" अब तो
ख़ुदा के ख़ौफ़ से घबरा रहा हूँ

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sanju singh 

हमेशा दांव में पहला रहा हूँ
ग़ज़ल के शेर में मतला रहा हूँ

पते की बात मैं बतला रहा हूँ

बहुत खाया मगर पतला रहा हूँ

अमानत हो किसी की फिर भी यूँ ही
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

मूझे कुछ कम मिली हर चीज़ यारों
कि बेटा बाप का पिछला रहा हूँ

घड़ी इज़हार की आती रही जब
उसे लगता कि मैं हकला रहा हूँ

तेरे बिन हाल कुछ बेहाल सा है
कि दिल के जख्म अब सहला रहा हूँ

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amit kumar dubey ansh

तुझे पाकर के खुद खोया रहा हूँ
तेरे ही इश्क में डूबा रहा हूँ

तु मुझसे रूठकर जब से गयी है
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

मेरे ख्वाबों में ही आये कभी वो
इबादत रोज़ मैं करता रहा हूँ

कहा उसने तो हमने जान दे दी
बहुत वादे का मैं पक्का रहा हूँ

फ़साने याद फिर आने लगे वो
मुसलसल रात भर रोता रहा हूँ

अज़ब ही बात थी उसकी गली में
अभी भी मैं वहाँ जाता रहा हूँ

बहुत प्यारी लगी हमको जो चीज़ें
उसे पाने को मैं तरसा रहा हूँ

चरागाँ कर लिया हमने भी घर को
अंधेरों में बहुत घुटता रहा हूँ

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rajesh kumari 

ज़माने में बहुत पिसता रहा हूँ
इरादों का सदा पक्का रहा हूँ

रकीबों ने मुझे कितना बुझाया
मुहब्बत में मगर जलता रहा हूँ

रकाबत से कभी डरता नहीं मैं
तगाफ़ुल में तेरी फलता रहा हूँ

बिछा दूँ जब कहे दिलकश सितारे
तेरी रुसवाई से घबरा रहा हूँ

छुपा न दें तुझे दर्दें रिदाएँ
तेरे कांटें सदा चुनता रहा हूँ

बहा ना दें तेरी नूरे तबस्सुम 
समंदर की लहर उल्टा रहा हूँ

जमाने ने मुझे परखा हमेशा
कसौटी पर सदा घिसता रहा हूँ

ग़मे फ़ुर्कत भरा तेरा तसव्वुर
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

निग़ल ना लें मुझे दिन के उजाले 
हक़ीकत से सदा छुपता रहा हूँ

मिले धोखे मुझे यूँ जिंदगी में
सबक दिल पर सदा लिखता रहा हूँ

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Sarita Bhatia

आते ही पास तेरे गा रहा हूँ 
ये दिल पागल को मैं समझा रहा हूँ

तेरे नयना सुरा के हैं दो प्याले
तेरे नयनों में डूबा जा रहा हूँ

तेरा आना सबब कोई यक़ीनन
तेरे से मिल के मैं हर्षा रहा हूँ

मेरे ख्वाबों में जब से आप आए 
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

मेरे सजना अदा तेरी है कातिल
तेरी तालों पे नाचे जा रहा हूँ

तेरी खातिर ही हर चौखट झुका मैं
खुदा दर से दुआएं ला रहा हूँ

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गीतिका 'वेदिका'

कि खुद से दूर जितना जा रहा हूँ
तेरे नजदीक उतना आ रहा हूँ

तेरे अहसास में बहता रहा हूँ
तेरे ही प्यार का दरिया रहा हूँ

कभी तो आ के ले ही जा सकोगे
इसी की चाह में तन्हा रहा हूँ

भले ही बांध लूँ गिरहों पे गिरहें
मगर एक टूटता रिश्ता रहा हूँ

न जानूं, कौन बेईमां है साया
दरकता एक आईना रहा हूँ

तेरी अठखेलियों को याद करके
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

लहर तू मस्त, मै टूटा शिकारा
तुझी में देख डूबा जा रहा हूँ

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Shijju S.

मै अपनी शर्त पे जीता रहा हूँ
यही तो वज्ह थी तनहा रहा हूँ

मेरी बेचैनियाँ तनहाइयों की
उदासी, दर्द ये सहता रहा हूँ

मुहब्बत की तेरी ये इल्तिजा थी
हज़ारों ग़म सही हँसता रहा हूँ

कई बातें लिखी, औराक़ फाड़े
न जाने कब से यूँ उलझा रहा हूँ

अधूरी ख़्वाहिशें आहें दबी सी

वो किस्से अनकहे कहता रहा हूँ

गुजश्ता उन पलों की रौशनी में
''तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ''

ये ख़्वाबों की अजब सी है रविश भी
वो आयें जब मैं ख़्वाबीदा रहा हूँ

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मोहन बेगोवाल 

भरी महिफल मगर तन्हा रहा हूँ !
लगा अपनी खुदी अजमा रहा हूँ !!

कहाँ तुम हो गये मुझ से पराये, 
“तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ”!!

हमें वो भी कभी ऐसे मिलेंगे,
मेरे दिल ये तुझे बतला रहा हूँ !!

अभी मैं देखना अंजाम उसका,
तभी हर बात को पलटा रहा हूँ !!

चलो दिल चल रहे सच्च को तलाशें,
कभी का झूठ को अपना रहा हूँ !!

मिले वो तो हकीकत समझ आई ,
क्यों इस आग में जलता रहा हूँ !!

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Abhinav Arun 

चमक फीकी है पर ललचा रहा हूँ ,
मैं बीते दौर का सिक्का रहा हूँ ।

खिलौनों से बहलता हूँ मैं अब भी,
कभी मासूम सा बच्चा रहा हूँ ।

मुझे रस गंध से पहचान लेना ,
तेरी आँखों का मैं सपना रहा हूँ ।

तुम्हारे अंतरों में भी नहीं अब ,
कभी हर गीत का मुखड़ा रहा हूँ ।

गली की हर ज़बां पर मैं ही मैं था ,
जवानी का तेरे किस्सा रहा हूँ ।

जिसे पढने से पहले चूमती तुम ,
मैं उस बेनाम खत जैसा रहा हूँ ।

मुहब्बत ? हाँ कभी मुझको हुई थी ,
अभी तक ज़ख्म को सहला रहा हूँ ।

मधुर संतूर है पुरवाइयां हैं ,
तेरी यादो से दिल बहला रहा हूँ ।

मुहब्बत की ज़मीं मेरी नहीं पर ,
ग़ज़ल में गालिबन मीठा रहा हूँ ।

मेरे दुश्मन बड़ी तादाद में हैं ,
जुबां का मैं सदा सच्चा रहा हूँ ।

भले ही मुझको आजादी कहो तुम ,
मैं जनता को मिला धोखा रहा हूँ ।

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Kewal Prasad 

हसीना देख कर ललचा रहा हूं।
अभी मैं प्यार को अजमा रहा हूं।।

हुआ है शोर आंगन में सुबह से,
कॅुआरी रश्मि को फुसला रहा हूं।

ये जालिम नीम की छाया अड़ी जो,
हवा से हांक कर बहका रहा हूं।

खुशी तुलसी से मिलती है प्रभा में,
जरा सा जल गिराता जा रहा हूं।

अजी बस लाज आती है मचल कर,
कभी हंसता, कभी पगला रहा हूं।

न पूछो हाल उनका हॅस-हॅसा कर,
बड़े शातिर हैं वो, घबरा रहा हूं।

वे रातों को कॅपाते सर्द करते,
लिहाफों में घुसा गरमा रहा हूं।।

बेदर्दी का गिला-शिकवा नही है।
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूं।।

सुहानी रात में रोता-बिलखता,
सड़क पर दामिनी चिल्ला रहा हूं।

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vandana 

हकीकत है कि जो मुस्का रहा हूँ
रफू कर जख्म को सिलता रहा हूँ

हताहत हो के रह जा श्राप मुझको
कि सर दीवार से टकरा रहा हूँ

सभी शामिल रहे उस कारवां में
बिकाऊ भीड़ का हिस्सा रहा हूँ

दबे पांवों चला यादों का मेला
कुसुम राहों में खुद बिखरा रहा हूँ

लगा चुकने न हो अब नेह साथी
नमी आँखों की फिर सहला रहा हूँ

गुलाबों चाँद में दिखता है हर सू
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

हवाओं पर लगे पहरे भले हों
पतंगें थाम कर इठला रहा हूँ

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ram shiromani pathak

विरह की आग में जलता रहा हूँ!
मै अब तो राख बनता जा रहा हूँ!!

किया है कत्‍ल किसने क्‍या बताऊँ
सभी को ख़ुदकुशी बतला रहा हूँ!!

कभी कोई मुझे भी खत लिखेगा
सभी को तो पता लिखवा रहा हूँ !!

ये तेरी ही जुदाई है की हरदम!
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ!!

लगाकर आग बस्ती में कहे वो
दिया हूँ रौशनी फैला रहा हूँ!!

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Albela Khatri

नदी की मौज सा लहरा रहा हूँ
ख़ुशी से आज फूला जा रहा हूँ

गयी है अपने पीहर वो ख़ुदाया

पड़ोसन को यहाँ बुलवा रहा हूँ

चली आओ, चली आओ पड़ोसन 
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

हज़ारों दीप दिल में जगमगाये
उजालों में बदन नहला रहा हूँ

नहीं कोई दरोगा आज घर में
लगा कर पैग फैला जा रहा हूँ

हुई है आज पूरी वो दुआएं
बड़ी मुद्दत से जो करता रहा हूँ

न पूछो आज कोई बात यारो
ग़ज़ल तरही सुनाने जा रहा हूँ

ये ओ बी ओ से आया है बुलावा
वहीँ पर 'अलबेला' मैं जा रहा हूँ

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sanju singh

किसी के इश्क में खोया रहा हूँ
मुहब्बत जो किया रोता रहा हूँ

मेरी तकदीर में जो तू नहीं है
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

विदा के वक़्त वो मिलने का वादा
उसी इक बात पे जिन्दा रहा हूँ

ज़माने हो गये इक ख़त मिला था
उसे ही रोज़ मैं पढ़ता रहा हूँ

मेरे दिल में जो आकर बस गई वो
हिफ़ाजत दिल की मैं करता रहा हूँ

वफ़ा की हद सनम ही अब खुदा है
उसे ही रात दिन जपता रहा हूँ

तमन्ना दिल की पूरी हो गई पर
खलिश महसूस मैं करता रहा हूँ

रवायत इश्क की भाती नहीं है
जफ़ा की रस्म में उलझा रहा हूँ

हबीबी निभ गई अपनी भी यारों
कि चाकू पीठ पर खाता रहा हूँ

फ़लों की डाल हूँ झुकना तो तय था
मगर मैं शाख से कटता रहा हूँ

मिला कुछ इस तरह महबूब मुझसे
जुदाई में ही मैं अच्छा रहा हूँ

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अरुन शर्मा 'अनन्त' 

जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,

यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,

मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,

अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,

जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..

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arun kumar nigam
कमाई का फकत जरिया रहा हूँ
तेरी खातिर बचत खाता रहा हूँ ||

पिलाता ही रहा मैं जाम बन कर
कसम तोड़ी नहीं प्यासा रहा हूँ ||

बनाये जब मकां तो काट डाला
यहाँ तुलसी का मैं बिरवा रहा हूँ ||

न बाहर घर के कोई बात आई
कभी गूंगा कभी परदा रहा हूँ ||

चला भी आ कभी गुजरे जमाने
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

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Albela Khatri 

वतन खोरी के ढब समझा रहा हूँ
सियासी पैंतरा दिखला रहा हूँ

गरीबी किस तरह मैंने मिटाई
वही सन्तान को सिखला रहा हूँ

नहीं मैं भूल पाया रंगे -दिल्ली
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

न उसका था न इसका ही रहूँगा
खिलाता माल जो उसका रहा हूँ

चुनावों में मेरा सत्कार होगा
यही शुभकामना करता रहा हूँ

पहन उजली कड़क खादी हमेशा
घिनौनी साजिशें रचता रहा हूँ

ये भोली भीड़ है भोजन हमारा
हरा चारा ये मैं चरता रहा हूँ

मैं अलबेला नहीं है गम से रिश्ता
कटी जब नाक मैं हँसता रहा हूँ

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आशीष नैथानी 'सलिल'

किसी की आँख का सपना रहा हूँ
मैं उसका कीमती लम्हा रहा हूँ ।

ये कैसा शक तुम्हारा मुझको लेकर
हमेशा से मैं बेपर्दा रहा हूँ ।

पुरानी एलबम खोली है मैंने 

अजी ! मैं भी कभी बच्चा रहा हूँ ।

वो तन्हा घर जहाँ कोई नहीं है

कभी उस घर का मैं, छज्जा रहा हूँ ।

मराशिम टूटते देखे हैं मैंने
गरीबी तुझसे क्यों उलझा रहा हूँ ।

ये खुद्दारी नहीं तो और क्या है
जो उनके तोहफ़े लौटा रहा हूँ ।

अकेले कमरे में ख़ुद बन्द होकर 
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ।"

कोई आकर घड़ीभर बात कर ले
मैं लम्बे वक़्त से तन्हा रहा हूँ ।

मुहब्बत की सियाही चढ़ न पायी
मैं कागज़ कोरा था, कोरा रहा हूँ ।

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CHANDRA SHEKHAR PANDEY

जमाने से अलग दिखता रहा हूं
सुझाने से सदा बचता रहा हूं।

किनारों ने मुझे हर दम डुबोया
समंदर में सदा तिरता रहा हूं।

तुझे अपना न पाया मैं तभी तो
निगाहों से तेरे रिसता रहा हूं।

मुझे हासिल कभी मय थी नहीं तो
निगाहे जाम से खिचता रहा हूं।

खुदाई मिल गई तो क्या हुआ जी,
खुदा बिन देख मैं घुटता रहा हूं।

खिलौने सब पुराने हो गये हैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूं।

तुझे कातिल कहूं कैसे सनम मैं?
कि अपना कत्ल खुद करता रहा हूं।

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बृजेश नीरज

खुशी है, गाँव अपने जा रहा हूँ
महक मिट्टी की सोंधी पा रहा हूँ

डगर पहचानती है, साथ हो ली
मैं छाले पाँव के दिखला रहा हूँ

फिज़ाओं में यहाँ रंगत अजब सी
भ्रमर सा फूल पर मॅंडरा रहा हूँ

सदा सुनकर मैं इन तन्हाइयों की
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

मधुर संगीत सा है इस हवा में
तभी तो खुद को मैं बिसरा रहा हूँ

नदी की धार से ले चंद बूँदें
उसी में डूबता उतरा रहा हूँ

मचानों पर जो मैंने चढ़ के देखा
हिमालय को भी छोटा पा रहा हूँ

 

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amit kumar dubey ansh 

इरादों का बड़ा पक्का रहा हूँ
खुदा का नेक दिल बंदा रहा हूँ

मेरी किस्मत में शायद तू नहीं है
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

सितारे घर मेरे उतरे थे लेकिन
ख़ता ये हो गई सोता रहा हूँ

मेरे घर फूल बरसाओ बहारों
कि खारों से बहुत ऊबा रहा हूँ

तिज़ारत दिल का वो करने लगे हैं
हिसाबे -प्यार में कच्चा रहा हूँ

मुक़म्मल हो गया आने से तेरे
तेरे दीदार कों तरसा रहा हूँ

सज़ा दे दी मुझे मेरे खुदा ने
कि तेरे बाद भी जिन्दा रहा हूँ

कि रिश्तों में नहीं है बात अब वो
लगा यूँ बोझ मैं ढोता रहा हूँ

मुरादों से भरी जब शाम आई
तभी मैं ज़ाम में उलझा रहा हूँ

बगावत कर लिया हमने जो घर से
दुखा के मां का दिल रोता रहा हूँ

ये नादाँ दिल मेरा माने न माने
जहानत से इसे बांधा रहा हूँ

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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)

हमेशा तीरगी पर छा रहा हूँ
मैं शम्मा बन के जलता जा रहा हूँ

मेरे दिल से वो अब तक खेलते हैं
खिलौना आज भी उनका रहा हूँ

तुम्हे जब से बसा रक्खा है दिल मे
मैं हर दिन आज़माया जा रहा हूँ

मैं खुश्बू में बसा हूँ फूल ऐसा
सभी के ज़हनो दिल महका रहा हूँ

न खेला कर मेरे दिल से खुदारा
ज़माने से तो मैं तेरा रहा हूँ

तड़पता हूँ मैं तुमसे दूर रह कर
करीब आकर बहुत पछता रहा हूँ

तखय्युल में है जो तस्वीर तेरी
"उसी से अपना दिल बहला रहा हूँ"

हुई है मुझपे ये किसकी इनायत
.ग़ज़ल के शेर कहता जा रहा हूँ

कभी "गुलशन" ने जो आँखों से देखा
वही मंज़र तुम्हे दिखला रहा हूँ

****************************

Sulabh Agnihotri 

व्यथा पर सान धरता जा रहा हूँ।
मैं सूरज हूँ मगर धुँधला रहा हूँ।

हताशा की गुफाओं में प्रकंपित
मैं बरबस चीखता सा गा रहा हूँ।

ग़ज़ल हूँ मैं, तरन्नुम है मगर तू
तेरे बिन हर जनम सूना रहा हूँ।

हथेली के फफोलों को न देखो
मैं एक दीपक का हमसाया रहा हूँ।

अकेलेपन में सन्नाटे से सहमा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ।

कहाँ जाता अकेले रश्मियों संग
ठहर जा दोस्त मैं भी आ रहा हूँ।

***************************

गीतिका 'वेदिका' 

भले ताउम्र बेगाना रहा हूँ
मै उसकी ज़ात का हिस्सा रहा हूँ

नही गुमराह हूँ, कमजोर हूँ पर
दबिश की जिन्दगी जीता रहा हूँ

रहूंगा तेरा पहलू बन के हमदम
तेरा ही वक्त मै बीता रहा हूँ

कि तन्हा हो के भी तन्हा नही मै
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

नही आसान फिर से इश्क़ करना
कि टूटे दिल को ये समझा रहा हूँ

चरागों को खबर कर दो न जा के
मै दिल हूँ उम्र भर जलता रहा हूँ

न जाने क्या लिखा किस्मत में अपनी
वफा करके भी मै तन्हा रहा हूँ

तुझे अपनाने को आऊँगा इक दिन
कई सालों से कहता आ रहा हूँ

समझते ही नही वे, क्या करूं मै
कई जन्मों से मै समझा रहा हूँ

या ठुकरा दे या अपना ले मुझे तू
मै तेरे दर पे ही झुकता रहा हूँ

महाभट खा गया लाखों हजारों
धरा का दर्द मै सुनता रहा हूँ

****************************

Shijju S. 

मचलता और उठता जा रहा हूँ
तअक्कुब में तेरे चलता रहा हूँ

कमी है जिन्दगी में तेरी जानाँ
''तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ''

वो तेरा अक्स मेरे सामने था
या फिर मै आज बहका जा रहा हूँ

मेरे टूटे हुए ख़्वाबों के रेज़े
वो बिखरे हैं उन्हें चुनता रहा हूँ

मैं खुद को ढूंढता हूँ अपने अंदर
खुद अपनी हस्ती में छिपता रहा हूँ

असर तेरी दुआओं का है मुझ पर
मैं इस हालत में भी ज़िन्दा रहा हूँ

******************************

Sarita Bhatia 

मुहब्बत कर अभी पछता रहा हूँ
निरंतर दर्द पीता जा रहा हूँ ||

अदाओं पे तेरी मैं हूँ फ़िदा क्यों?
मेरे दिल को ही मैं समझा रहा हूँ||

आये सैलाब तू मुझको जो छू दे 
तेरे छूने से मैं घबरा रहा हूँ ||

मेरी तक़दीर में शायद नही तू
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

मेरी तनहाइयों के उन पलों में
अधूरी ख्वाहिशें बुनता रहा हूँ ||

ये आतिश आप ना आगोश लेना 
गरीबी में ही खुद जलता रहा हूँ ||

गज़ल तुम हो बना हूँ काफिया मैं
तेरे अशआर में मतला रहा हूँ ||

समंदर हूँ अगर सरिता तू मेरी
तेरे को खुद समेटे जा रहा हूँ ||

*************************

सानी करतारपुरी 

बना सब के लिए आइना रहा हूँ,
तभी तो उम्र भर तन्हा रहा हूँ।

मंज़िलों का ज़रिया सा रहा हूँ,
सभी के लिए मैं रस्ता रहा हूँ।

तेरे लम्स ने अब शिनाख्त दी है, 
बड़ी मुद्दत तक गुमशुदा रहा हूँ।

सच हूँ! कोई तारीख़ उठा देखो, 
हर सूली पे मैं ही चढ़ा रहा हूँ।

रिश्तों की दावेदारी थी आखिर,
तक्सीम नफ़स-नफ़स होता रहा हूँ। 

बदन काँच का है शह्र पत्थरों का,
जिधर भी मैं गया टूटता रहा हूँ।

कभी चिराग़ बुझा गयी थी मेरे,
हवा के पीछे तब से पड़ा रहा हूँ।

सरे-मकतल सर कटने तक भी,
अपनी पगड़ी संभालता रहा हूँ।

उजालों की बस्ती की तलाश में,
जुगनुओं के पीछे करता रहा हूँ।

मिरे नफ़स से रवायतें तो जलेंगी, 
निवाले ज़हर के खाता रहा हूँ।

गुमशुदा हैं मेरे खेतों की बारिशें,
मैं समंदर खंगालने जा रहा हूँ।

*********************************

CHANDRA SHEKHAR PANDEY 

पियादों से सदा पिटता रहा हूं।
वजीरे खारजा उनका रहा हूं।

सियासत में मुझे इतना गिराया,
मुहब्बत में सदा मिटता रहा हूं।

जड़ें वो खोद के बैठे हुए हैं,
वफा खातिर यहां उगता रहा हूं।

कहां बैठा हुआ कातिल अभी तक,
यहॉं बैठे हुए उकता रहा हूं।

चला आ आज फिर तेरी कसम है,
सितम गिनने को मैं बैठा रहा हूं।

***************************

Arun Srivastava 

समन्दर से कहीं गहरा रहा हूँ
कभी कतरा उन आँखों का रहा हूँ

तुम्हीं हो जिन्दगी पर ये भी सच है
तुम्हारे बिन भी मैं जिन्दा रहा हूँ

तुम्हारी मंजिलें हैं जो अलग थीं
वगरना मैं भी इक रस्ता रहा हूँ

न जाने क्यों छलक जातीं हैं आँखें
मैं तप कर भी बहुत कच्चा रहा हूँ

न छेड़ो बात अब दरियादिली की
तुम्हारे साथ भी प्यासा रहा हूँ

कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की
ये मैं जो आज तक पर्दा रहा हूँ

मैं बन्जारामिजाजी छोड़ देता
कई आँखों का पर .तारा रहा हूँ

जुदा होकर न तुझको भूल जाऊं
तेरी यादों से दिल .बहला रहा हूँ

**************************

अरुन शर्मा 'अनन्त'

उजाले से जो मैं टकरा रहा हूँ,
अँधेरे में फिसलता जा रहा हूँ,

खता की मैंने भी तो दिल लगाकर,
सजा अब तक तभी तो पा रहा हूँ,

मुनाफा तुममें डॉलर सा हुआ है,
रुपैया सा मैं लुढ़का जा रहा हूँ,

तसव्वुर में तुझे अपना बनाकर,
अँगूठी प्रेम की पहना रहा हूँ,

ग़ज़ल तुम बिन रदीफ़ों काफियों की,
सदा मैं बेबहर मिसरा रहा हूँ,

सवेरे शाम हर पल रात दिन अब,

तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ,

***************************

Dr Ashutosh Mishra 

दिले नादान को बहला रहा हूँ
अभी सावन के नगमे गा रहा हूँ

मेरे गेसू उदासी के आलम में
तेरे बदले इन्हें सहला रहा हूँ

मिला है चाँद यूं तनहा फलक पर
अभी मैं चाँद से बतिया रहा हूँ

तू ना आयी तो तेरी याद आयी
तेरी चुनरी को मैं लहरा रहा हूँ

मिटा दूं कैसे वो यादें तुम्हारी
तुम्हे सीने में जब धड़का रहा हूँ

भुलाना तुम को चाहा पर न भूला
भुलाता कैसे जब याद आ रहा हूँ

कभी हमने न खाई रोटी तुम बिन
निबाला याद कर हर खा रहा हूँ

तेरे क़दमों की आहट रोज सुनकर
गुलों को राह पर बिखरा रहा हूँ

खिलौना खेलने की अब उम्र ना
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

अरे क्यूँ आशु पागल इस तरह हो
कहो ना उससे पगली आ रहा हूँ

******************************

Laxman Prasad Ladiwala 

इसी पानी से मै बढ़ता रहा हूँ
सभी की आँख का तारा रहा हूँ |

जवानी खो दी यूँ ही सारी मैंने
अभी जाकर संभलता जा रहा हूँ |

कभी था मै भी आँखों का तारा 
अभी आँखों में साले जा रहा हूँ |

जवानी में वक्ता यूँ गँवा बैठा 
तेरी यादो से दिल बहला रहा हूँ

क़यामत आ रही नजदीक अब तो
अभी ढलती सांझ से घबरा रहा हूँ |

******************************

Tilak Raj Kapoor 

तुम्‍हें मैं स्‍वर्ण मृग दिखता रहा हूँ
मगर मैं सिर्फ़ इक धोखा रहा हूँ।

सज़ा-ए-इश्‍क की तन्हाइयों में
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ।

तेरे ख़त की इबारत को समझकर
तेरे चेहरे को पढ़ने आ रहा हूँ।

कबीरा आप कहलें या कि नीरो
मैं घर को फूँक नग़्मे गा रहा हूँ।

नसीबा था हवा के साथ उड़ना
खि़लाफ़त में सदा उड़ता रहा हूँ।

नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम
अभी इक ज़ुल्‍फ़ मैं सुलझा रहा हूँ।

बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से
मेरी आदत है मैं झुकता रहा हूँ।

*****************************

Rana Pratap Singh 

मैं भीतर से ज़रा बच्चा रहा हूँ
तभी तो सच का मैं चेहरा रहा हूँ

बियाबाँ और भी हैं इस डगर में
मगर मैं हूँ कि बढ़ता जा रहा हूँ

मुनासिब है नहीं अब ज़िक्र मेरा
मैं गुज़रे दौर का हिस्सा रहा हूँ

सिमट जाता है हर एक साल जो वो
मैं हिन्दुस्तान का नक्शा रहा हूँ

सितारे अब चमकना छोड़ देंगे
जिगर की आग मैं सुलगा रहा हूँ

सदा हक मांगना पड़ता है मुझको
समय के हाथ का कासा रहा हूँ

मुहब्बत, बस मुहब्बत ही मुहब्बत
ज़माने को यही सिखला रहा हूँ

न देखो पाओं के इन आबलों को
मैं जलती रेत पर चलता रहा हूँ

इलाही मुझको बस इतना बता दे

मैं क्या हूँ? और क्या करता रहा हूँ?

नहीं कर पाओगे तुम ख़त्म मुझको
मैं नुक्कड़ का कोई बलवा रहा हूँ

भरी महफ़िल में बैठा हूँ मगर मैं
"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ"

*****************************

arvind ambar

कभी तेरा मैं आईना रहा हूँ !
नहीं नाआशना चहरा रहा हूँ !!

लगा था ज़ख्म -ए -दिल गहरा कभी जो ,
''तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ''!!

भुला दे आज चाहे तो मुझे ही ,
कभी दिल का तेरे हिस्सा रहा हूँ !!

कभी लौटे तू फिर राहे -मुहब्बत ,
मैं मोती अश्कों के बिखरा रहा हूँ !!

कटा हरदम ही जो बेटो की खातिर ,
मैं भारत भूमि सा बँटता रहा हूँ !!

कभी तो दिल पसीजेगा वो ''अम्बर''
यही तो सोचकर जीता रहा हूँ !!

******************************

 

 

 

गज़लें मुशायरे में जिस क्रम में आई हैं उन्हें उसी क्रम में स्थान दिया गया है| किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

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एक जिज्ञासा थी -

//३. भर्ती के लफ्ज़:- शेर में ऐसे लफ़्ज़ों का प्रयोग जिनका कोई अर्थ ही नहीं है या महज़ शेर को वजन में फिट करने के लिए बीच में घुसाया गया हो भर्ती के शब्द कहलाते हैं| उदाहरण के लिए मिसरे  के प्रारम्भ में "कि" लगा देना,  अभी के साथ भी लगाकर अभी भी, क्रिया में कर लगाने के बावजूद बाद में के लगाना जैसे खाकर के आदि| इन भर्ती के शब्दों से हमेशा बचना चाहीये|//

मेरे इस मिसरे में में मैंने यही किया है ! शे'र की कहन को ध्यान में रखते हुए क्या इसेभी भरती का लफ्ज कहेंगे ? असमंजस इसलिए कि इसे रंगीन नहीं किया गया ! और मुझे भी लगता है कि ये शब्द शे'र के भाव को पुष्ट कर रहा हैं ! हालाँकि मैंने लिखा है तो मुझे तो वैसे भी कमी नहीं लगेगी ! :-)))))))
मार्गदर्शन चाहूँगा !

कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की
ये मैं जो आज तक पर्दा रहा हूँ

अरुण जी 

कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की

इस मिसरे में आया "कि" पूरी तरह भर्ती का ही है ..क्योंकि मिसरे में इसे अगर  न  भी लगाएं तो उसका अर्थ नहीं बदल रहा है, आप अगर मिसरे को ऐसा कर दें तो इससे निजात पा सकते हैं 

हुई ज़ाहिर न उरयानी वफ़ा की 

मिसरों में रंग भरते समय किन ऐबों को ध्यान में रखा गया है मैं ऊपर ही लिख चुका हूँ, अभी भरती के अलफ़ाज़ पर मिसरों में रंग भरना प्रारंभ नहीं किया है|

इस त्वरित उत्तर के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! सुधार कर लूँगा ! :-))

सादर !

आदरणीय श्री  राणा जी ,. गजलों के  संकलन के साथ ही बहुत ही शिक्षा प्रद जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आप का  बहुत बहुत आभार 

mera pahala anubhaw aapke saath.........bahut maza aaya............aap logon ka aatmik vandan!!

      maine isi manch se pad pad kar gazal ko samjha ab yahan ka kuchh karz louta saka to mera aho bhagya!!

आदरणीय मंच संचालक जी 

सादर नमन ,

आपकी मेहनत और आपके मार्गदर्शन को प्रणाम ,इस विद्यालय से जुड़कर विश्वास हो रहा है कि ग़ज़ल सीखी जा सकेगी बहुत बहुत आभार  

bahut bada kaam .............

aapke is mahati kaary ko pranaam

और अब पेश है उस ग़ज़ल के चंद अशआर जिस पर इतना बड़ा आयोजन हुआ|

मुसलसल हंस रहा हूँ, गा रहा हूँ 

तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ 

किनारे मेरी जानिब बढ़ रहे हैं 

मगर मैं हूँ कि डूबा जा रहा हूँ 

यहाँ झूठों को तमगे मिल रहे हैं 

मैं सच्चा हूँ तो परखा जा रहा हूँ 

अज्म शाकिरी

लाजवाब! काश! पूरी गज़ल होती तो मजा आ जाता!

बहरहाल, जो मिला वह भी कम नहीं।

ये अशआर आपने साझा किए, इसके लिए आपका आभार आदरणीय!

बेहतरीन गज़लें 

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