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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १५ (Now Closed with 669 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,


समय कितनी तेज़ी से गुज़र जाता है - पता ही नहीं चलता. अब देखिए न, देखते ही देखते "ओबीओ लाईव महा उत्सव" के १४ आयोजन मुकम्मिल भी हो चुके और १५ वे अंक के आयोजन का समय भी आ पहुंचा. पिछले १४ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों में १४ विभिन्न विषयों बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:

.

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १५   

विषय - "तलाश"  
आयोजन की अवधि रविवार ८ जनवरी २०१२ से मंगलवार १० जनवरी २०१२ 
..

"तलाश" महज़ एक शब्द ही नहीं अपितु एक विस्तृत विषय भी है और एक विचारधारा भी. आज के में कौन ऐसा होगा जो किसी न किसी चीज़ की तलाश में न हो ? कोई सुख की तलाश में है तो कोई शांति की, कोई सफलता की तलाश में तो कोई सुकून की. कोई रौनक की तलाश में है तो कोई एकांत की, अंधेरों को रौशनी की तलाश है तो तारों को चाँद की. कोई पाँव तलाश कर रहा है तो कोई जूते. यानि "तलाश" शब्द का दायरा इतना वसीह और बहु-आयामी है कि एक रचनाकार इसे हर रंग और हर ढंग से इसको परिभाषित कर सकता है. तो आईए मित्रों ! वर्ष २०१२ के पहले "ओबीओ लाईव महा उत्सव" अंक-*१५ में, उठाइए अपनी कलम और रच डालिये कोई शाहकार रचना. मित्रो, बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए.

.

महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है:

.

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 .

अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १५ में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ  ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो रविवार ८ जनवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )


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"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies to This Discussion

आदरणीय अविनाश जी, बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना, और वो भी सामयिक और ज्वलंत मुद्दों के तड़के के साथ.

//बाबाओं के पाखंड से , आजीज़ होकर  यूँ,
गरीब की कुटिया में रब को तलाश करता हूँ. //


ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह गयीं....हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.

THANKs Dharamendra ji

आदरणीय,

धन्य हुआ आपकी दाद पाकर.
आभार आपके दिये हुए शब्द-बल का.

बहुत बढ़िया  अविनाश जी ........हार्दिक बधाई स्वीकारे  करे ...

..असीम आभार.

हकीकतन मै तो खुद को तलाश करता हूँ.
बिखरा पड़ा है झूठ पतझर के पत्तों कि तरह,
उन्हें हटा कर थोडा सच को तलाश करता हूँ.......
 
Behtareen Ashaar se saji hue ek umda Ghazal.behad khubsurat ..ek umda peshkash..pe dili daad

aabhar Siya ji

कभी इसको कभी उसको तलाश करता हूँ.
हकीकतन मै तो खुद को तलाश करता हूँ..........

अविनाश जी ! ज़िंदगी में यही तो अक्सर भूल जाते हैं, गैरों का पता पूछते-पूछते उम्र गुजर जाती है,खुद से ही मुलाकात नहीं हो पाती.
बिखरा पड़ा है झूठ पतझर के पत्तों कि तरह,
उन्हें हटा कर थोडा सच को तलाश करता हूँ.

बहुत ही उम्दा शेर.हौसला बुलंद हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं वरना झूठ के पत्तों के तले राई के दाने की तरह सच को तलाशना बड़ा ही मुश्किल काम है.
बाबाओं के पाखंड से , आजीज़ होकर यूँ,
गरीब की कुटिया में रब को तलाश करता हूँ.

बड़ा तीक्ष्ण व्यंग.....वाह !!!
छान आया हूँ सारे जहां के तिलस्मों को,
अपने भीतर आज जग को तलाश करता हूँ.

सबकुछ अपने ही भीतर है, काश ! सभी इसे जान पाते.
भ्रूण-हत्या को चिढाती उड़ान ' कल्पना' की,
फिर उसी उम्दा महारत को तलाश करता हूँ.

सृष्टि ही जब नष्ट होगी, सृजन की फिर कल्पना क्या

पूरने वाली न हो तो द्वार पर फिर अल्पना क्या (श्रीमती सपना निगम)

अविनाश जी , दस पंक्तियों में सारा संसार उतार दिया है.बधाई....

अरुण भाई इतने विस्तार से मेरी रचना पर आपने अपना मनोगत व्यक्त किया और सपना जी भी साथ हो ली.

शब्द कम पड़ेंगे आभार के लिये.

क्या कहने है अविनाश भाई जी - वाह वाह वाह.

आपका बड़प्पन है...आभार.
बाबाओं के पाखंड से , आजीज़ होकर  यूँ,
गरीब की कुटिया में रब को तलाश करता हूँ. 
बहुत अच्छे अविनाश जी 

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