For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-95

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-95 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'आशीर्वाद', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-95
"विषय: "आशीर्वाद''
अवधि : 27-02-2023 से 28-02-2023 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 535

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आम 

"सर्र सर्र....." की आवाज बारंबार होती। रुक -रुक कर होती। सोये परिंदे उनींदे -से बड़बड़ाते "चिहुँ चिहुँ"।गिलहरी करती, " किटू किटू"। फिर सब सो जाते। फिर वही " सर्र सर्र" की ध्वनि सबकी नींद भेदती।सब जगते।इधर -उधर देखते।कुछ न पाकर सोने लगते।अबकी बार सब सोने चले तो कौवे के "कांव कांव" सुन ठमक गए। तारों की टिम टिम रोशनी में उन्होंने देखा कि कौवा बड़े आम्र -वृक्ष की ऊंची डाल पर बैठा सबको टेर रहा था,"कांव केँ, कांव केँ"।
गिलहरी समझ गई कि कौवे के स्वर में दर्द है।वह कुछ कहना चाहता है।उसने सबका ध्यान कौवे की तरफ आकृष्ट किया,"किटू के ,किटू के"।
तोते ने उसका भाव सबको समझाया कि कौवे को देखो।सबने कौवे की तरफ देखा।कौवे ने आवाज दी, "कांव केँ, कांव केँ सर्र ..र्र...."।
तोते ने समझाया," सर्र सर्र...की आवाज आम्र काका की है। काक भाई यही कह रहे हैं।"
परिंदों की आवाज लगाई, "चिहुँ चिहुँ के?"
गिलहरी फुदकी, "किटू किटू के?"
तोताराम जी ने कहा," मैं समझ गया।आप सब लोग यह जानना चाहते हैं कि आम्र काका क्या कहना चाहते हैं?"
फिर उसने उन्हें बताया," टें टें हें..."।
"चिहुँ चिहुँ आँ? किटू किटू आँ?" परिंदों की टोली और गिलहरी ने एक साथ पूछ लिया।कौवा भी "कांव कांव आँ?"का वही सवाल दुहराता रहा।
तोताराम बोला, " टें टें हाँ~ वे दुखी हैं।"
"चिहुँ चिहुँ क्याँ,किटू किटू क्याँ, कांव कांव क्याँ?" से वातावरण गूँज गया।
फिर अचानक सबकी नजरें आम्र -वृक्ष पर पड़ीं।उसकी टहनियाँ भींगी हुई थीं। बूंद -बूंद जल टपक रहा था मानो वह रो रहा हो। "सर्र सर्र....।" की आवाज फिर आने लगी।अब वह हृदय विदारक हो चली थी।
अपने पूर्वजों की बात परिंदों को याद आई,जब पुराने जमाने में बूढ़ा आम काका कटा था,तब वे सब खूब रोये थे।लोगों ने उनकी एक न सुनी थी।कच्चे -पके आम भी तोड़ ले गए थे।सुना था तब भी "सर्र सर्र...."की यही आवाज हुई थी।
कांव कांव, टें टें..., चिहुँ चिहुँ....की गूँज होने लगी।तभी आम्र -टहनियाँ चरमराईं।ढेर सारे आम धरती पर गिरे।
ढोर -मंडली भी जग गई। भिन्न -भिन्न ध्वनियों से जंगल जीवंत हो उठा।
"मौलिक व अप्रकाशित"

एक रोचक और गूढ़ अर्थ की लघुकथा। मनन जी आपकी रचनाएँ सदा अभिनव कलेवर से परिपूर्ण होती हैं और यह भी अपवाद नहीं है। उत्तम

आपका हार्दिक आभार आ. अजय जी।

आदाब। इस महत्वपूर्ण विषय पर आपकी लेखनी का एक उल्लेखनीय अनूठा अद्वितीय रूप देखने कुछ मिला। यह एक नवप्रयोगात्मक प्रतीकात्मक मानवेतर रचना है, जिस पर थोड़ा और काम बाद में आप अवश्य करेंगे भी। ऐसी परिकल्पना, सत्य और यथार्थ का कलात्मक लघुकथात्मक प्रस्तुतिकरण आप ही कर सकते हैं। हार्दिक बधाई इस बेहतरीन आग़़ाज़ और पेशकश हेतु जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। बोर्ड परीक्षाओं में उलझे होने के कारण यहाँ विलम्ब हुआ।वास्तव में पशु-पक्षी इसी तरह वार्तालाप कर पर्यावरण की पीड़ा अभिव्यक्त करते होंगे, जिसे आपने शिद्दत से महसूस और सम्प्रेषित किया है। संवादशैली की यथोचित कल्पना ग़ज़ब की है। यह रचना कक्षा दो से लेकर कक्षा दसवीं तक.के.विद्यालयीन पाठ्यक्रम में स्थान पाने की योग्यता रखती है। आम्र काका के पीढ़ी-दर पीढ़ी के अनुभवों और संवेदनाओं और गिलहरी व पक्षियों की यथादृष्टि और यथा संवेदनाओं को बेहतरीन शिल्पबद्ध व्यक्त किया गया है। समापन पंक्तियों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। कहीं इनमें पुनर्विचार की आवश्यकता तो नहीं है? शीर्षक भी रचना अनुसार दिलचस्प व विचारोत्तेजक हो सकता था।

रचना में तनिक सम्पादन/परिमार्जन की गुंजाइश प्रतीत हुई। यथा :

//परिंदों की (ने) आवाज लगाई, "चिहुँ चिहुँ के?"//

सादर मेरी पाठकीय नज़र में टिप्पणी मात्र।

आदरणीय उस्मानी जी,आपका दिली आभार।आपने लघुकथा के साथ -साथ मुझे भी मान बख्शा है।उत्साहित हूं।और अधिक सीखने,समझने और कागज रंगने की ख्वाहिश जीवंत है।

निश्चित तौर पर लघुकथा पुनरावलोकन के दौर से गुजरेगी। हां, "परिंदों ने आवाज लगाई", ही होगा।ध्यान खींचने के लिए आपका पुनः आभार।

जहां तक शीर्षक का सवाल है,तो उसे प्रदत्त विषय के परिप्रेक्ष्य में रखा गया है।आम एक आम फल है।फल वैसे भी मनुष्य के लिए प्रकृति का आशीर्वाद ही तो है।

इसी आशय को ध्यान में रखते हुए शीर्षक का चयन हुआ है।

सदैव की भाँति उत्साहवर्धन हेतु आपका पुनः आभार व्यक्त करता हूं।नमन।

आशीर्वाद की ज़रूरत

********************

चार दिन पहले की घटना से मंत्री जी सकते में थे। अभी तक भी दिल कांप-कांप जा रहा था। कितने ही जुगाड़ भिड़ा कर तो विधायक बने थे- निर्दलीय। गाँधी जी के आशीर्वाद से। बिल्ली के भागों छींका टूटा और अल्पमत की सरकार में मंत्री भी बन गए। उसमें भी गाँधी जी ने भरपूर साथ निभाया। पहले महीने ही एक नए-नवेले पुल का उद्घाटन का फीता काटने पहुँचे तो उनके पाँव रखते ही उनसे आगे का हिस्सा भरभरा कर गिर गया। मंत्री जी बाल-बाल बचे थे। उसी घटना से उबरने का प्रयास हो ही रहा था कि आज उनसे मिलने ठेकेदार आ पहुँचा।

अब तो मंत्री जी सकते के साथ-साथ आश्चर्य में भी आ गए। ऐसी हिम्मत। खैर, मुलाक़ात बैठ गई। ज़रा सी नाराज़गी, ज़रा सी औपचारिकता और ज़रा सी भूमिका बनी। ठेकेदार ने मंत्री जी के चरणों के प्रताप का उल्लेख किया। उन्हें बताया कि जैसे रामचन्द्र जी के चरणों से केवट की नाव का उद्धार हुआ था, उससे भी बढ़कर मंत्री जी के चरणों से पुल का पूर्ण-उद्धार हो गया। पुराने पाप नष्ट हो गए और नए पाप के लिए जगह बन गई। गाँधी जी की कृपा-प्राप्ति का एक अवसर और बन गया। पर मंत्री जी अभी भी रुष्ट थे। जान जाते-जाते बची थी। पर ठेकेदार ने बताया उन्हें कि वो भगवान हैं और भगवान की जान कोई नहीं ले सकता। फिर ठेकेदार ने मंत्री जी की आरती की, और उनका वरद-हस्त अपने सिर पर रख लिया। अगले प्रोजेक्ट में बराबर की हिस्सेदारी भगवान को अर्पण की गई। जिस किसी को भगवान भेजेंगें उसे बिना कहे-सुने सेवा पर रख लेंगे, ऐसी स्तुति से उन्हें प्रसन्न किया गया और फिर भगवान का आशीर्वाद ठेकेदार को प्राप्त हो गया।

और सरकार ने सारा ठीकरा विपक्ष पर फोड़ दिया कि वो साज़िश करके उनके विधायक कम करना चाह रहें हैं।

इस तरह सब जान गए कि मंत्री जी हों, या सरकार, या ठेकेदार, या जनता; सबको आशीर्वाद की ज़रूरत होती है।

#मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय अजय जी,गोष्ठी में सहभागिता हेतु बधाई। आजकल आशीर्वाद इस रूप में फलने -फूलने लगा है,ऐसा समझा जा सकता है। हां,यह प्रचलन की बात है।

बहुत शुक्रिया मनन जी। आपने लघुकथा को पढ़ा और विचारा, यह मेरे लिये सम्मान का विषय है। आभार

नमस्कार। विषयांतर्गत आपकी यह रचना तंजदार लगी।सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी। लेकिन प्रस्तुति मुझे स्पष्ट समझ नहीं आ रही है।

आशीर्वचन (लघुकथा):


"आज तो आपका आशीर्वाद पाकर मैं धन्य हो गया सर!" आज की बोर्ड परीक्षा समाप्त होने पर परीक्षा कक्ष के बाहर छात्र ने आंतरिक पर्यवेक्षक के पैर छूकर कहा।
"आशीर्वाद! कैसा आशीर्वाद, बेटा?"
"आशीर्वाद ही तो है 'गुरुजी'! आज आपने मुझे बुरे मार्ग पर चलने से बचा लिया?"
"बुरे मार्ग से! मतलब?"
"आपने मुझे परीक्षा में नकल करने नहीं दी न!" इतना कहकर छात्र दूर खड़े अपने दोस्त के पास चला गया।
दोस्त बोला, "आज तो हमारे रूम में ज़बरदस्त नकल हुई। सीधे-सादे टीचरों की ड्यूटी थी!"
जवाब में वह छात्र पीछे की तरफ़ इशारा करके बोला , "आज तो मेरी क़िस्मत ख़राब थी! उन महाराज के कारण मैं ज़रा भी नकल नहीं कर सका!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

आज के समय में नकल करने देना भी आशीष ही हो चला है।उससे बढ़कर आशीष तो पर्चा देने के पहले प्रश्न मुहैया करा देना हो गया है,जो ऊँची कीमत पर उपलब्ध होता है।

आज की शैक्षणिक एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं की स्थिति पर सटीक व्यंग्यात्मक लघुकथा हुई है।बधाई लीजिए आदरणीय उस्मानी जी।नमन।

सही कहा आपने। कोरोनाकाल के प्रमोटेड बच्चों को बोर्ड परीक्षाओं में परेशान हाल देखना और मॉडल प्रश्नपत्रों का लेन-देन और कोचिंग बाज़ार हमें परेशान कर रहा है। त्वरित प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल — 2122 1122 1122 22/112 लग रहा था जो मवाली वही अफसर निकलामोम जैसा दिखा दिलबर बड़ा पत्थर…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति हेतु। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता )
"आदरणीय दिनेश जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीया ऋचा यादव जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादगी से जो बयाँ करता था…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीया रचना भाटिया जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी गजल का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। सादर।"
3 hours ago
जयनित कुमार मेहता replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीया रचना भाटिया जी, सादर नमस्कार। आपने उचित प्रश्न पूछा है, जिससे एक सार्थक चर्चा की सम्भावना…"
4 hours ago
जयनित कुमार मेहता replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, सादर नमस्कार! खूबसूरत ग़ज़ल के साथ मुशायरे का आगाज़ करने के लिए आपको हार्दिक बधाई!"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service