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विरहणी; भाई ,पति का
संदेश तुम्ही से कहती थी
अपने भावों को पहुँचाने
तुम्हे निहोरा करती थी

स्वर्ण रश्मियों की डोरी से
चन्द्र उतर कर तुम आते
तपते मन के ज़ख़्मों पर
ठंडे फाए रख कर जाते

साथ लिए परमाणु अस्त्र
अब,चलना तो बोझिल होगा
कुटिल मनुज के कर्म-कलापों
को सहना मुश्किल होगा

अहंकार की तेज छुरी से
अपनी गरिमा नष्ट करे
जिस कारण आस्तित्व स्वयं का
इक पल में वह ध्वस्त करे

फिर भी तुम ओजोन परत को
चीर , सदा आ जाते हो
अमॄत वर्षा कर धरणी पर
प्रेम - पराग लुटाते हो

मौलिक एवं अप्रकाशित











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Comment

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Comment by Usha Awasthi on March 24, 2022 at 11:54am

आ0 सुरेन्द्र कुमार  शुक्ला जी, हार्दिक आभार आपका,जय श्री राधे

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 24, 2022 at 11:44am

वाह बहुत सुन्दर भाव , जय श्री राधे

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