सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ चौबीसवाँ आयोजन है.
इस बार का छंद है - भुजंगप्रयात छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
21अगस्त’ 2021 दिन शनिवार से 22 अगस्त’ 2021 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
(चित्र अंतर्जाल से)
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
भुजंगप्रयात छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो
21अगस्त’ 2021 दिन शनिवार से 22 अगस्त’ 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
ये तो जनाब सौरभ भाई ही बताएँगे कि मोर है कि मोरनी ।
हा हा हा .. जय हो..
इस तल्लीनता से नन्हें चूजे मोर के पास कम ही मिलते हैं. या नहीं मिलते. नर पक्षी चूजों के पालन-पोषण में मादा पक्षी को सहयोग अवश्य देता है. लेकिन खुल कर पालता नहीं है. सो तर्किक समझ के अनुसार यह मोरनी ही हो सकती है. कि, इसका पूरा चित्र भी उपलब्ध नहीं है.
सो, इसे मोरनी ही माना जाय.
पुन:, जय हो.. :-)))
जय हो ।
आदरणीय समर साहब, तुरंता का जवाब नहीं.. हा हा हा ..
वैसे, इस छंद पर इसी आयोजन में आपने पहले सार्थक काम किया है. बहरहाल, प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ. तिस पर जिन परिस्थितियों में आपने अपनी प्रस्तुति साझा की, वह विशेष महत्त्वपूर्ण है.
आदरणीय अशोक भाईजी ने जिस तथ्य को यमाता की चार आवृतियों में बताया है, उसका तार्किक पहलू यह भी है, कि समवेत उच्चारित दो लघु गुरुवत मान्य नहीं होंगे. कि, प्रयास शुद्ध छंद का हो रहा है. छंद का वाचिक पक्ष होता तो उस परिपाटी का निर्वहन किया जाता. ऐसे में यह छंद 'मुत़कारिब मसम्मन सालिम' की तरह निभाया जा सकता है.
शुभातिशुभ
जनाब सौरभ भाई, सराहना के लिये धन्यवाद ।
बहुत समय छंदों पर प्रयास नहीं हुआ था और ग़ज़ल की आदत ऐसी पड़ गई है कि 'सब' 'जब' को गुरु समझ बैठा, ख़ैर आगे से ये भूल नहीं होगी ।
जी, आदरणीय, मैं समझ सकता हूँ.
एक खुलासा कान में... अगले महीने आयोजन में यही छंद रहेगा.
:-)))))
बहुत शुक्रिय: भाई, अगली बार आपकी भरपूर दाद अवश्य लूँगा, इंशा अल्लाह:-)))
जय-जय ..
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार बेहतरीन छन्द हुए हैं । हार्दिक बधाई।
जनाब लक्ष्मण धामी जी, रचना की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।
जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब, प्रदत्त चित्र को सार्थक करते बहुत सुंदर छंद हुए हैं, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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