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बहुत सुंदर कोमल भाव. पृकृति प्रेम बड़ा सुकूनदायक ही होता है. बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय डा.विजय जी
जल्दी ही दूर कहीं प्रकृति की सूनी गोद में लौट जाता है वह,
वहीं सुकून पाता है वह ,
वहीं सुकून पाता है वह ॥
आदरणीय विजय शंकर सर ,सुन्दर प्रस्तुति है ,वास्तव में प्रकति की गोद में ही सकून मिलता है |सादर अभिनन्दन |
गुरुदेव , हम लोग आपसे सीख रहें हैं ......इससे ज्यादा क्या कहूं सर , बस कभी कुछ गलत कह दूं , तो क्षमा ! सादर
सर,
कुछ और बेहतर....?
प्रकृति के महत्त्व को दर्शाती बेहतरीन कविता ... आदरणीय डॉ विजय शंकर सर बहुत बहुत बधाई
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