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मेरी आवाज़ .....
आवाज़,जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,
उसे कोई दबा नहीं सकता|
दीवार ,जो मेरी आवाज़ दबा सके,
कोई बना नहीं सकता|
जब जब चाहा जालिमों ऩे,आवाज़ दबी हो,
किस्सा, कोई बता नहीं सकता|
क़त्ल कर सकते हो मेरे जिस्म को, कातिल ,
विचारों को कोई दबा नहीं सकता|
खिलेगा कोई फूल उपवन मे,देखना उसको,
खुशबू को कोई चुरा नहीं सकता|
कहाँ से पाला भ्रम अमर होने का,सियासतदानों ,
मौत से कोई पार पा नहीं सकता|
दबाओ के कब तलक मेरी आवाज़ ,दरिंदो ,
हवाओं को कोई बाँध नहीं सकता|
सजा कर एक परिंदा पिंजरे मे,जाने क्या समझे ,
परिंदों से गगन खाली रह नहीं सकता|
उड़ेगा बाज़ जब आसमां के सीने पर ,
मौत किसकी लिखी,बता नहीं सकता|
लिखा तकदीर मे तेरी क्या,क्या जाने ,
जो लिखा बदलवा नहीं सकता|
ध्यान रख,कोई और है दुनिया चलाने वाला,
बिना मर्ज़ी के, हाथ हिला नहीं सकता|
समझते थे कुछ लोग खुदा,खुद को मगर,
कहाँ खो गए ,कोई बता नहीं सकता|
ना कर गुरुर अपनी ताकत पर, नादान,
साँसों की गिनती,गिना नहीं सकता |

  • डॉ अ कीर्तिवर्धन

          ९९११३२३७३२

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Comment

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Comment by dr a kirtivardhan on January 14, 2012 at 10:28pm

main aaap sab mitron ka atyant aabhari hun jinhone apne viharon se mera hausala badhaya.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 9:38pm

दीवार ,जो मेरी आवाज़ दबा सके,
कोई बना नहीं सकता|

वाह वाह, डॉ साहब बहुत खूब, काफी ओजस्वी रचना है यह, सच ही तो है यदि सच्ची लगन हो कुछ करने का तो उसे कौन रोक सकता है, बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई स्वीकारे श्रीमान |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2012 at 10:00am

विचारों को शब्द में ढालना, उन्हें विधाओं (छंदबद्ध या छंदमुक्त) की कसौटी पर कस संप्रेषणीय बनाना साहित्य-कर्म है. यह कर्म मात्र एक व्यक्ति (पाठक) ही नहीं पूरे समुदाय की सोच को प्रभावित करता है. तभी तो यह सतत अभ्यास और निष्ठ-संलग्नता की मांग करता है. 

आद. कीर्तिवर्द्धनजी, हम पाठक-गण आपकी रचनाओं से परिचित हो रहे हैं.  आपकी रचनाओं और प्रविष्टियों का होना ओबीओ पर एक उत्साहजनक समय बना रहा है.

इस मंच पर पहले भी कई रचनाएँ प्रस्तुत हुई हैं, जिनमें कई-कई स्तरीय और कालजयी हैं. वो रचनाएँ आपकी सार्थक टिप्पणीयों और मार्गदर्शी प्रतिक्रियाओं की सादर आकांक्षी हैं.  हम आप उन स्तरीय रचनाओं से बहुत कुछ बिना कहे आश्वस्त हो कर सीखते भी जाते हैं. 

आपके ज़ज़्बे को सलाम. सहयोग बना रहे.  

सधन्यवाद.

 

Comment by Abhinav Arun on January 13, 2012 at 9:03pm

आपके जज्बे को सलाम है आदरणीय श्री कीर्तिवर्धन जी !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2012 at 11:25am

देश और कौम की भलाई की खातिर आपका स्वर यूं ही बुलंद रहे आदरणीय डॉ कीर्तिवर्धन जी. 

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