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                                     ग़ज़ल

 

मैंने  दुनिया  की  दुश्मनी  देखी,  दोस्त  तू  भी  मुझे  भुला देना |

तेरे दिल को ये हक है चाहे तो,  मेरा   नाचीज़  दिल  जला  देना ||


तुझको हमराज़-हमनशीं कर के, मैंने खुशियों के ख्वाब देखे थे,

मुझसे गर भर गया हो दिल तेरा,  क़त्ल कर के मुझे सुला देना ||


दिल की ये आरज़ू- तमन्ना थी,  तू  मेरा प्यार हो, मोहब्बत हो,

तुझको  मंज़ूर  गर नहीं है ये,  चाँद  को  अपने  घर  बुला  लेना ||


हक  है  तेरा  यूँ  रूठना   मुझसे,   फ़र्ज़   है  मेरा,  मैं  मनाऊंगा,

इसकी खातिर सलीब पर आखिर,  तू जो चाहे मुझे झुला देना ||


तू न रोना जो शौक़ हो तुझको, कैसे कोई  ? आंसुओं को पीता है,

सारी दुनिया का गम मुझे देकर,  चाहे जितना मुझे रुला लेना ||

 

                                               रचनाकार - अभय दीपराज

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Comment

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Comment by Anita Maurya on December 11, 2010 at 4:32pm

gehre pyar ki sundartam anubhuti... bahut khoob...

Comment by Bhasker Agrawal on December 9, 2010 at 8:06am
तू न रोना जो शौक़ हो तुझको, कैसे कोई आंसुओं को पीता है,
सारी दुनिया का गम मुझे देकर, चाहे जितना मुझे रुला लेना //...kya baat hai !! kya baat hai !!

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