(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
ग़म को क़रीब से मियाँ देखा है इसलिए
अपना ही दर्द ग़ैर का लगता है इसलिए'
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जब और कोई राह न सूझे ग़रीब को
रस्ता हुज़ूर ज़ुर्म का चुनता है इसलिए
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बाज़ार के उसूल हुए लागू इश्क़ पर
बिकता है ख़ूब इन दिनों सस्ता है इसलिए
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आसाँ न दरकिनार उसे करना ज़ीस्त से
दिल का हुज़ूर आपके टुकड़ा है इसलिए
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उनके ज़मीर के हुए चर्चे जहान में
मिट्टी के भाव में उसे बेचा है इसलिए
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ना-जायज आप फ़ायदा उसका उठायें मत
हद से ज़ियादा आदमी अच्छा है इसलिए
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आते हैं ग़म भी ज़ीस्त में अक़्सर ख़ुशी के बअ'द
शायद बहुत क़रीब का रिश्ता है इसलिए
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कुछ लोग दाद क्यों तुझे देते नहीं 'तुरंत'
अब भी सुख़नवरी में तू कच्चा है इसलिए
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
२८/०६/२०१९
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Samar kabeer साहेब |
सलामत रहें |
मतला यूँ कर सकते हैं:-
'ग़म को क़रीब से मियाँ देखा है इसलिए
अपना ही दर्द ग़ैर का लगता है इसलिए'
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,कुछ कुछ इसका अहसास मुझे भी था | लेकिन तात्कालिक उपाय कुछ सूझा नहीं, क्या कोई उपाय हो सकता है ? सादर | पड़ती है मार.... को तो हटा सकते हैं लेकिन मतले क्या क्या किया जाये ? कृपया रास्ता दिखाएँ | "अपना सा दर्द गैर का लगता है इसलिए " क्या सही रहेगा ? सादर |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'लगता है दर्द ग़ैर का अपना है इसलिए'
इस मिसरे में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो सका,देखियेगा ।
'पड़ती है मार पर उसे सच्चा है इसलिए'
इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,आप जो कहना चाहते हैं स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।
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