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हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी (४९)

हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी
इस चमन में साथ साथ फूल भी हैं ख़ार भी
**
देखते बदलते रंग मौसमों के इश्क़ में
हिज्र की ख़िज़ाँ कभी विसाल की बहार भी
**
इंतज़ार की घड़ी नसीब ही नहीं जिसे
क्या पता उसे है चीज़ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार भी
**
कीजिये सुकून चैन की न बात इश्क़ में
इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी
**
चश्म इश्क़ में ज़ुबान का हुआ करे बदल
जो शरर बने कभी कभी है आबशार भी
**
प्यार एक फ़लसफ़ा है और नैमत-ए-ख़ुदा
रंज़ है इसे बनाते लोग कार-ओ-बार भी
**
इश्क़ जो करे जनाब रूह से उसे नसीब
अज्मल-ए-जहान और ज़बीन पर निखार भी
**
ख़ौफ़ दिल में है अगर तो दूर इश्क़ से रहें
इश्क़ के नसीब में लिखी गई है दार भी
**
प्यार का वक़ार और दबदबा रहे ख़ुदा
इल्तज़ा 'तुरंत' की है वक़्त की पुकार भी
**
गिरधारी सिंह गहलोत तुरंत' बीकानेरी |

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 5, 2019 at 4:38pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी ,हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2019 at 11:42am

आदरणीय गिरधारी भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाईयाँ

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 25, 2019 at 2:27pm

आदरणीय  Samar kabeer  साहेब ,आपकी इस्लाह बहुत ही पुरअसर है और मिसरे को वाजिब अर्थ देने के लिए आवश्यक भी | संशोधन कर रहा हूँ | सादर आभार एवं नमन | इसी तरह कृपा बनायें रखें | 

Comment by Samar kabeer on June 25, 2019 at 11:50am

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हिज्र है विसाल भी है वस्ल और है तड़प'

इस मिसरे का शिल्प बहुत कमज़ोर है,आप जो कहना चाहते हैं,बयाँ नहीं हो रहा,इसे बदलने का प्रयास करें ।

'इश्क़ बा-क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी'

इस मिसरे में 'बा क़रार'शब्द मुनासिब नहीं,मिसरा  यूँ कर सकते हैं:-

इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी' 

'जो शरर बने कभी कभी हैं आबसार भी'

इस मिसरे में 'हैं' को " है" कर लें,और 'आबसार' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "आबशार"

'इश्क़ रूह से करें फ़क़त उन्हें नसीब हो'

इस मिसरे को यूँ कर लें तो बात साफ़ हो जाएगी:-

इश्क़ रूह से करें  जो उनको ही नसीब हो'

'इश्क़ में लिखी नसीब में किसी के दार भी'

इस मिसरे को यूँ कर लें तो बात साफ़ हो जाएगी:-

'इश्क़ के नसीब में लिखी गई है दार भी'

बाक़ी शुभ शुभ ।

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