For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 "अरे  ...  ये तुम्हारा नेटवर्क कभी भी आता - जाता रहता है। मैं तो परेशान हो गया। पुराना बदल कर, ये तुम्हारी कम्पनी का नया वाला ब्रॉडबेंड लिया। उसका भी यही हाल है। 

 तुम ही बोल रहे थे न , ...  कि इसमें कोई दिक्कत नहीं होगी।  सर्विसिंग भी अच्छी है। अब तुम्हारे साथ भी वही रोना है।" शर्मा जी  ने गुस्से से कहा।
नहीं सर, आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।
"ये लीजिये कनेक्टिविटी आ गई।",  उसने मॉडेम सेट करते हुए बोला । 
सर, "मेरा नाम चंद्रशेखर है। आपके एरिये का सर्विस इंजीनियर हूँ। ये मेरा कार्ड रख लीजिये।" 
अच्छा बेटे, कोई प्रॉब्लम होगी तो फ़ोन करूँगा। 
बिल्कुल सर, "आप कभी भी कॉल करिये। मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"
बेटे,  वैसे तो मुझे इस सिस्टम से कोई मतलब है, नहीं। अब यूट्यूब पर गाने सुनने और पिक्चर देखने के दिन तो रहे नहीं।  
"वो क्या है न, कि दोनों बच्चे यूएस में  हैं।"  
 "हम बुड्ढे - बुढ़िया को बस उनके वीडियो कॉल की ही तो प्रतीक्षा रहती है।" 
"उसी समय ये तुम्हारा नेट वर्क बिजी हो जाता है।"
 अब हमारा क्या है ? 
"इसी के सहारे तो ज़िन्दा हैं। उनकी सूरतें दिख जातीं हैं, ... ... ...   तो दिल को तसल्ली हो जाती है।" 
.
( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on July 23, 2018 at 2:27pm

आदरणीय मुज़फ्फर इक़बाल साहब,  नमस्कार।  समाज में बुजुर्गों के  एकाकीपन का आभास दिलाती सुन्दर रचना की प्रस्तुति ।  हार्दिक बधाई ।  

Comment by babitagupta on July 23, 2018 at 2:07pm

बुजुर्गों की समाज की हालत बहुत ही दयनीय हैं, समस्या का समाधान सिर्फ माता पिता ही अपने आपको धैर्य की गठरी बांधकर  आभासी दुनियां बनाकर जिए.समाज की अनगिनत समस्याओं में से एक समस्या यह भी हैं,बेहतरीन रचना द्वारा प्रस्तुत करना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

Comment by Samar kabeer on July 22, 2018 at 11:53am

जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 22, 2018 at 9:01am

हमारे समाज के बुज़ुर्ग मां-बाप के एक अहम मसले और आभासी तसल्ली को उभारती विचारोत्तेजक व सामाजिक सरोकार की बहुत बढ़िया रचना के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी साहिब। शुरू के भाग मेंं कुुुछ शब्द कम किये जाने की गुंजााइश लगती है।सादर।

Comment by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on July 21, 2018 at 6:17am

बहुत बहुत आभार ,आदरणीय 

Comment by Shyam Narain Verma on July 20, 2018 at 12:41pm
सुन्दर सार्थक रचना  ने लिये आपको बधाई ….

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
9 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service