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पढ़ाते रहे

कभी पढ़ जो पाते

बच्चे का मन ।

 

आदर्शवाद ?

हुआ किताबी भाषा

धूल फाँकता ।

 

घर आँगन

सूना, मन उदास

बची है आस

 

.... मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Neelam Upadhyaya on April 13, 2018 at 10:47am

आदरणीय समर कबीर जी, नमस्कार । आप सभी के मार्गदर्शन की आकांक्षी रहूँगी । आपका बहुत बहुत आभार ।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 13, 2018 at 10:45am

आदरणीय तसदीक अहमद जी, नमस्कार । यूं ही मार्गदर्शन की आकांक्षी रहूँगी । आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 13, 2018 at 10:44am

आदरणीय आरिफ़ जी, नमस्कार । आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए बहुमूल्य हैं और सदा ही उत्साह बढ़ती रहेंगी । यूं ही मार्गदर्शन की आकांक्षी रहूँगी । बहुत बहुत धन्यवाद।

पिछली पोस्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दे पायी । एक तो, दो सप्ताह के लिए रिश्तेदारी निभाने जाना पड़ा । फिर आने के बाद कंधे के दर्द से परेशान रही । लंबे चले physiotherapy के बाद कुछ लिखने पढ़ने की मनःस्थिति में ही नहीं रह पायी । पीछे के काफी पोस्ट अभी तक नहीं पढ़ पायी हूँ । अब फिर से थोड़ा active होने का प्रयास कर रही हूँ । जल्द ही दफ्तर और के बीच समंजस्य बैठ जाएगा । बहुत बहुत आभार ।

Comment by Samar kabeer on April 13, 2018 at 9:48am

मोहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब, अच्छे हाइकू लिखे,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2018 at 9:28am

मुहतर्मा नीलम साहिबा ,सुन्दर हाइकु हुए हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Mohammed Arif on April 12, 2018 at 7:03pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,

                                    बहुत ही लाजवाब हाइकु । हर हाइकु अपने पिछले हाइकु से शैल्पिक दृष्टि से बेहतर है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

नोट :- आपने अपने पिछले हाइकु पोस्ट करके प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा , आख़िर क्यों ?

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