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आधा तेरा साथ और आधी जुदाई है ।

बह्र:-221-2121-2221-212

आधा है तेरा साथ ओर आधी जुदाई है।।
कुछ इस तरह चिरागे दिल की रौशनाई है ।।

चहरे में मुस्कुराहटें आई हैं लौट कर ।
जब जब भी मैंने याद की ओढ़ी रजाई है।।

विस्मित नहीं हुई अभी,अपनी हो आज भी।
रिश्ता जरूर बदला है अब तू पराई है।।

कितना भी पढ़ लो जिंदगी की इस किताब को ।
मासूस हो यही अभी,आधी पढाई है।।

नजरों से हूबहू अभी वो ही गुजर गया।
जिसकी है जुस्तजू मुझे, तन पे सिलाई है ।।

जब से हुए हो दूर तुम,खुद से हूँ लापता।
मालूम जिंदगी को है , कैसे बिताई है।।

मशगूल हो गए हो अब मालूम हो गया ।
अब लौट कर के हिचकियाँ बैरंग जो आई हैं।।

आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 23, 2018 at 10:22am

आ शेख सहजाद उस्मानी साहब प्रणाम 

हौसला,आफजाई के लिए आभार ...

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 23, 2018 at 6:43am

बहुत बढ़िया पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी।

कृपया ध्यान दे...

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