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ग़ज़ल नूर की- ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है

१२२२/१२२२/१२२
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ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है   
मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.
.
अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन
तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.
.
हमारी बात का मतलब अलग था,
अगरचे आप ने समझा ग़लत है.
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मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा
मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.
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कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों
हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.
.
कहे नंगे को नंगा एक बच्चा
कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.  
.
ग़लत साबित मुझे करने की ज़िद में
तुम्हारा यूँ बहक जाना ग़लत है.
.
तो आओ “नूर” से आँखे मिलाकर
बताओ उस को वो कितना ग़लत है.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 7:42pm

शुक्रिया आ. अजय तिवारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 7:42pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 7:41pm

शुक्रिया आ. संतोष dada

Comment by Ajay Tiwari on March 14, 2018 at 7:20pm

ग़लत साबित मुझे करने की ज़िद में 
तुम्हारा यूँ बहक जाना ग़लत है.

बहुत खूब! आदरणीय निलेश जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 14, 2018 at 10:47am

आदरणीय भाई निलेश जी ..लाजबाब  ग़ज़ल हुयी है तमाम रंगों को अपने में समेटे इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by santosh khirwadkar on March 13, 2018 at 10:26pm

 

क्या बात है आदरणीय भाई श्री नीलेश जी , बेहतरीन ग़ज़ल हुई !!
'हकीकत में जुदा होना ग़लत है" बहुत खूब !!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 13, 2018 at 1:47pm

शुक्रिया आ हर्ष जी

Comment by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 11:47pm

वाह आदरणीय नूर साहब । हर शेर दाद के काबिल है , दिली दाद इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए । हार्दिक बधाई ।

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 12, 2018 at 7:06am

शुक्रिया आ लक्ष्मण जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 12, 2018 at 7:05am

शुक्रिया आ नादिर खान साहब

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