For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढाकिये अपने ही तन के जख्म कोई गम नहीं ...गजल

2122-2122-2122-212

.

खूबसूरत है चमन चश्मा हटा कर देखिए।।
जीस्त में उल्फत भरा किरदार ला कर देखिए।।

ढाकिये अपने ही तन के जख्म कोई गम नहीं।
पर ये खुशियाँ गैर के चेहरे सजा कर देखिए।।

एक सा होगा नही हर आदमी हर दौर का।
भ्रान्तियों का आँख से चश्मा हटा कर देखिए।।

इक भलाई प्यार की देती है लज्जत बे सबब।
बस जरा घी सोंच में अपनी मिला कर देखिए।।

आदमी से आदमी को बाँटिये हरगिज नही।
मजहबी होता न हर आदम वफ़ा कर देखिए।।

झोंक देते हैं जिसे हम मजहबी इस आग में।
उस पडोसी से कभी नजरें मिला कर देखिए।।

अब अमन ही चाहती है मुल्क की हर सांस बस।
अब जमीं पर अम्न के कुछ गुल बिछा कर देखिए।।

.

आमोद बिंदौरी /मौलिक-अप्रकाशित

Views: 503

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 11:50pm

शब्द सुधार हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर जी ।

सादर 

Comment by Samar kabeer on March 5, 2018 at 11:08pm

जनाब आमोद बिंदौरी साहिब आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,इस प्रस्तुति पर बधाई लीजिये ।

2रे,4थे,और 5वें अशआर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, ग़ौर कीजियेगा ।

आख़री शैर के ऊला मिसरे में 'अमन'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "अम्न",और हैरत की बात है कि सानी मिसरे में ये शब्द सही लिखा है,ये फ़र्क़ क्यों?,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-

'अम्न ही अब चाहती है मुल्क की हर साँस बस'

Comment by Samar kabeer on March 5, 2018 at 10:59pm

हर्ष जी,

//इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल की पेशगी पर//

'पेशगी' शब्द का अर्थ होता है 'एडवांस',ऐसे जुमले यूँ लिखा करें :-

'ये या इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल को पेश करने के लिये'

Comment by Mohammed Arif on March 5, 2018 at 5:17pm

आदरणीय आमोद जी आदाब,

                           ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है मगर ग़ज़ल अभी काफ़ी वक़्त चाह रही है । वर्तनीगत ढेरों अशुद्धियाँ हैं  गुणीजन ही कुछ कह पाएँगे । हार्दिक.बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 1:27pm

आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल की पेशगी पर ।

आमोद जी ग़ज़ल के दूसरे शेर के उला में 'ढाकिए' शब्द कुछ खटक रहा है । ये शब्द शायद ढकिये होना चाहिए । मगर इस शब्द से मिसरा बहर से खारिज हुआ जाता है । बाकि गुणीजनों की पारखी नज़र ही बता सकती है ।

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service