(मफाईलुन-मफाईलुन-फऊलन )
जो अज़मे तर्के उल्फ़त कर रहा है|
ये दिल फिर उसकी हसरत कर रहा है |
लगाए ज़ख़्म देने वाला मरहम
ये दिल यूँ ही न हैरत कर रहा है |
वफ़ा मिलती कहाँ है हुस्न में वो
जिसे पाने की जुरअत कर रहा है |
दिले नादां दगा जिसकी है फ़ितरत
उसी से तू महब्बत कर रहा है |
मरीज़े इश्क़ की लौटी हैं साँसें
कोई शायद अयादत कर रहा है |
मिलेंगे हश्र में यह बोल कर वो
मुझे कूचे से रुख्सत कर रहा है |
कोई तस्दीक़ उम्मीदे वफ़ा में
दगाबाज़ों की मिन्नत कर रहा है |
जुरअत--हिम्मत , अयादत --बीमार को देखना
मिन्नत --खुशामद
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,
अच्छे अश'आरों से सजी ग़ज़ल । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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