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ग़ज़ल (किसी खंजर का मत अहसान लीजिए )

(मफाईलुन-मफाईलुन -फऊलन )

किसी खंजर का मत अहसान लीजिए |
हमारी मुस्करा कर जान लीजिए |

जिसे अपना बनाने जा रहे हैं
उसे अच्छी तरह पहचान लीजिए |

हमारा साथ दोगे ज़िंदगी भर
वफ़ा से पहले दिल में ठान लीजिए |

मुझे तो बाद में चुन लीजिएगा
जहाँ की खाक पहले छान लीजिए |

किसे है ख़ौफ़ दिलबर इम्तहाँ का
कमाँ हाथों में अपने तान लीजिए |

किसी का लीजिए अहसान लेकिन
न दौलत मंद का अहसान लीजिए |

मुहब्बत की कहाँ होती है मंज़िल
ये सच तस्दीक़ पहले जान लीजिए |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 7, 2017 at 10:16pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, सिर्फ लिखने में लीजिये है ,पढ़ने में लीजे है ,अगर लीजे लिखता तो कोई यह भी कह सकता है ,यह लफ्ज़ कौन सा है ।

Comment by Samar kabeer on December 7, 2017 at 9:24pm

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब, 'लीजै' की जगह "लीजिए" रखने की तुक समझ नहीं सका?

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