2122 1212 22
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दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे
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मैं शिनावर हूँ तैर जाऊँगा नाव का इंतजार कौन करे
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-----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० कल्पना भट्ट जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
वाह्ह्ह आह्ह्ह अच्छी चर्चा हो गई ग़ज़ल पर आद० समर भाई जी ,आपने शेर दर शेर ग़ज़ल की समीक्षा की मेरे दिल को कुछ सुकून मिला दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .एक दो बातों से मैं भी असमंजस में आ गई थी बीएस आपके ग़ज़ल पर आने की प्रतीक्षा थी |आपकी इस्स्लाह सदा शिरोधार्य है
'इश्क़ की पुरख़तर सदा राहें----पुरखतर होती इश्क की राहें
हैं मगर ये विचार कौन करे'----इतना लेकिन विचार कौन करे/किन्तु इस पर विचार कौन करे /जानकार भी विचार कौन करे
इसमें कौन सा सही होगा भाई जी
आद० महेंद्र कुमार जी, ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |
आद० दिनेश कुमार जी, ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया
आद० राजनवादवी जी, ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया. इस्स्लाह के लिए शुक्रिया आपका| किन्तु जिस नजरिये से मैंने ये शेर कहा है उसमे कत्ल ही मुनासिब होगा.(यहाँ भाव अरमानों के कत्ल का है )|
जनाब अफरोज़ साहब ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया
आद० सुशील सरना जी ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया मेरा लेखन सार्थक हुआ
आद० मोहम्मद आरिफ जी ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया |
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीया राजेश दी | हार्दिक बधाई
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