ग़ज़ल (अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम )
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(फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन)
अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम |
उनके कुचे से वापस न जाएँगे हम |
ज़ुल्म कितने भी ढा ले सितमगार तू
ग़म के हर दौर में मुस्कराएँगे हम |
आपको तो अज़ीज़ों से फ़ुर्सत नहीं
किस तरह हाल दिल का सुनाएँगे हम |
जब भी मिलता है देता है वो ज़ख़्मे नौ
दस्त उलफत का कब तक मिलाएँगे हम |
जब तअस्सुब की आँधी चलाएँगे वो
तब चरागे मुहब्बत जलाएँगे हम |
हाकिमे वक़्त आवाज़ ,हक़ के लिए
चाहे अंजाम कुछ हो उठाएँगे हम |
वक़्ते रुखसत है सीने से लग जाइए
लौट कर अब न तस्दीक़ आएँगे हम |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
अच्छी ग़ज़ल हुई है मोहतरम तस्दीक अहमद खान साहब, बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत ख़ूब ..अच्छी ग़ज़ल हुई है ..कूचा कर लें..टाइपिंग में कुचा हो गया है
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