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गजल(क्या करेगा...)

2122 2122 212
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क्या करेगा माँद का मारा हुआ
बन गया मुजरिम अभी हारा हुआ।1

लोग कसते फब्तियाँ,बेजार वह
'लाल' कल का आज बेचारा हुआ।2

मौसमों की मार खाकर शीत जल
पर्वतों से भी ढुलक खारा हुआ।3

दी हवा जब,थरथरायीं चोटियाँ,
छटपटाता आज,नक्कारा हुआ।4

बंदगी में थे खड़े सब लोग तब
अब ठिठोलीबाज जग सारा हुआ।5

जो मिली कुर्सी,सलामत भी रहे
हर दिशा में आज यह नारा हुआ।6

सीढियाँ दी तोड़ जब ऊपर चढ़े
आदमी का आदमी चारा हुआ।7

मुँह जबानी बाँटते ठंढ़क बहुत
आसमानी आजकल पारा हुआ।8
'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by narendrasinh chauhan on June 24, 2017 at 4:32pm

सुन्दर रचना 

Comment by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 6:46pm

सीढियाँ दी तोड़ जब ऊपर चढ़े
आदमी का आदमी चारा हुआ।7
वाह आदरणीय मनन जी बहुत सुंदर ग़ज़ल बनी है ... दिल बधाई स्वीकार करें।

Comment by Mohammed Arif on June 23, 2017 at 2:44pm
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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