For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 ट्रेन के चलते ही एक तरुण दैनिक यात्री  द्वितीय श्रेणी के स्लीपर क्लास में दाखिल  हुआ. आरक्षित श्रेणी के यात्री अधिकांशतः अपनी बर्थ पर अधपसरे हुए थे . एक बर्थ के कोने पर खाली जगह देखकर वह बैठने जा ही रहा था कि उस पर बैठे अधेड़ व्यक्ति ने गुर्राकर कहा –‘आगे बढ़ो, यह बर्थ रिजर्व है. . 

तरुण बैठते-बैठते रुक गया और धीरे से बोला-‘ रिजर्व तो सारा डिब्बा है, मुझे बस ज़रा से जगह बैठने के लिये चाहिये. आधे घंटे बाद मेरा स्टॉप आ जाएगा. ’

‘नहीं बिल्कुल नहीं ‘- अधेड़ के सामने वाली बर्थ पर अधलेटे मोटे व्यक्ति ने आवेशित होकर कहा- ‘हम पैसे अपने आराम के लिए खर्च करते हैं ?‘

तरुण ने असहाय होकर गैलरी की ओर निगाह डाली कि शायद कोई और दैनिक यात्री दिख जाए तो उसके दावे को बल मिले, पर कोई नजर नहीं आया. उसने अंतिम प्रयास करते हुए कहा –‘ देखिये मैं दैनिक यात्री हूँ, हम रोज ही इस तरह यात्रा करते है, अभी आप ठीक से लेटे भी नहीं है, मैं बस ज़रा सी जगह में बैठ जाऊंगा .’

दैनिक यात्री के अनुरोध पर वे आग बबूला हो उठे. आखिरकार वह सहम कर चुप हो गया और बर्थ के सहारे खडा हो गया.  उसकी यह हालत देखकर दोनों के चेहरे पर विजयिनी मुस्कान आयी. मोटे वाले ने ‘हिप हिप’ की आवाज निकाली. दोनों हंस पड़े.

अब तक ट्रेन की रफ़्तार कुछ तेज हो गयी थी. अचानक गेट पर एक जोरदार हलचल हुयी और चार जवान दैनिक यात्री तूफ़ान की तरह कम्पार्टमेंट में प्रविष्ट् हुए. कोई फ़िल्मी गीत गा रहा था . कुछ एक दूसरे को गरिया रहे थे . युवकों का यह दल वही आ गया जहाँ तरुण सहमा खड़ा था . एक ने तरुण को पहचान कर कहा- ‘ओये यार, तू खडा क्यों है, इतनी जगह है और तू बैठा नहीं .’

अब तरुण का साहस भी दूना हो चुका था. उसने दोनों यात्रियों की ओर इशारा करते हुए कहा –‘ ये लोग किसी सूरत बैठने ही नहीं दे रहे , कहते है बर्थ आरक्षित है .’

‘ए भाई साहिब, उठ कर बैठिये ‘- एक लम्बे वाले लड़के ने यात्रियों को चेतावनी देते हुए कहा 

‘देखिये, आप लोग आगे जगह देख लीजिये हमारी तबियत ठीक नहीं है ‘-मोटे वाले ने रुखे स्वर में जवाब दिया .

‘ओये मोटे, ऐसी नौटंकिया हम रोज देखते हैं ‘- एक अन्य लड़के ने गुर्राकर कहा-‘सीधे उठता है या नहीं और बुड्ढे , तू भी उठ.  हम यहाँ बैठकर ताश खेलेंगे .

दोनों यात्री बिना एक शब्द बोले उठ कर बैठ गए. अब तरुण यात्री के चेहरे पर वही  विजयिनी मुस्कान उभरी. उसने भी मुख से वैसी ही आवाज निकाली- ‘हिप हिप ’

 ( मौलिक /अप्रकाशित )

 

 

Views: 400

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2017 at 5:23pm

जिसकी लाठी उसकी भैंस ! .. लेकिन यह तो जंगलराज का नमूना है न ! वैसे, डेली पैसेंजरों की दुर्दशा तभी होती है जब वे अकेले होते है. वर्ना रूट कोई हो, दिल्ली-अलीगढ़ या पटना-आरा या लखनऊ-कानपुर इनकी दबंगई अंतरराज्यीय स्तर पर बदनाम हो चुकी है. 

आपकी कथा का पात्र इसके बावज़ूद निरीह-सा है. लगता है उसके जीवन का यह दौर नया-नया है.  .. :-)

लेकिन इस प्रस्तुति पर हम एक पाठक के तौर पर क्या महसूस करें आदरणीय ? .. इस विधा के शिल्प आदि पर तो मैं कुछ कह पाने से रहा. कहा मान्य भी न हो. फिर भी, पटल पर प्रस्तुति हेतु धन्यवाद और हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय ..

सादर

Comment by Mahendra Kumar on June 7, 2017 at 7:59pm

आदमी दूसरे का साथ पाकर कैसे रंग बदलता है, इस बात को बहुत अच्छे से उकेरा है आपने अपनी रचना में आ. डॉ. गोपाल नारायन सर. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
29 minutes ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . उल्फत
"आदरणीय निलेश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, दोहों पर आपके प्रयास सधे हुए हैं. किन्तु, कतिपय दोहे मूलभूत नियमों के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service